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सूरत बिगाड़ने वाले नहीं रोक पाए मंगला कपूर की आवाज़, एसिड अटैक से बीएचयू की प्रोफेसर बनने तक, ये है उनके हौंसले की कहानी

‘काशी की लता’ पुरस्कार से सम्मानित मंगला कपूर के जीवन का सफर काफी संघर्ष भरा रहा है। खेलने की उम्र में एसिड अटैक का शिकार हुई मंगला जीवन के प्रति अपने जुझारू व्यवहार के बारे में बता रहीं हैं।
मंगला कपूर हैं फाइटर। चित्र: मंगला कपूर
अदिति तिवारी Published: 1 Jan 2022, 14:00 pm IST
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अक्सर आपने सुना होगा कि परिश्रम और संघर्ष सफलता की चाबी है। एसिड अटैक सर्वाइवर मंगला कपूर इस वाक्य के लिए सही उदाहरण हैं। 11 साल की छोटी उम्र में ऐसिड अटैक होने के बाद, वे टूटी, दर्द झेला, लेकिन अपने लक्ष्य को धूमिल नहीं होने दिया। उन्होंने इस घटना को एक चुनौती की तरह लिया और आज वे कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं। आइए जानते हैं उनके संघर्ष और सफलता की कहानी उन्हीं की जुबानी। 

पारिवारिक रंजिश और वह दर्दनाक हादसा 

मंगला कपूर के परिवार का साड़ी का कारोबार था। व्यापार के मुद्दों को लेकर कुछ अन्य लोगों के साथ उनके परिवार की रंजिश हो गई। जब कोई बात नहीं बनी, तो दुश्मनों ने छोटी बच्ची को अपना शिकार बनाया। इसके लिए घर के नौकर को पैसा देकर रात के 2 बजे का समय चुना गया। तीन भाइयों के बीच इकलौती और खूबसूरत बहन मंगला पर एसिड फेंक दिया गया। वह हादसा इतना भयानक था कि  इसके बाद उन्होंने अपनी पहचान ‘अपना चेहरा’ ही खो दिया। 

हालत इतनी ज्यादा खराब हुई कि एक के बाद एक अलग-अलग शहरों में उन्हें 37 ऑपरेशन करवाने पड़े। इस बीच 2007 में एक एक्सीडेंट के दौरान उनकी जांघ की दोनों हड्डियां भी टूट गईं। लोगों को लगा कि मंगला कपूर का सफर अब समाप्त हो गया है। लेकिन अपने मजबूत मनोबल और जीवन से लड़ने के रवैये के कारण उन्होंने वापसी की। 

बहुत लोगों के लिए प्रेरणा है मंगला कपूर। चित्र:मंगला कपूर

पिताजी बनें जीवन की प्रेरणा 

7वी कक्षा में पढ़ने वाली मंगला को समझ नहीं आया कि उनके साथ क्या हुआ है। दर्द से कराहती, झुलसी हुई त्वचा को लेकर वह तड़पती रहीं। इस मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक तूफान से बाहर निकलने के लिए मंगला के पिताजी उनका  सहारा बनें। 

डॉक्टरों की निगरानी में बनारस से कभी पटना, तो कभी फिर बनारस,  अलग-अलग शहरों में उनके इलाज का सिलसिला शुरू हुआ। इस दौरान मंगला को 37 से ज्यादा ऑपरेशन करवाने पड़े। जिसने उनके परिवार को आर्थिक रूप से भी खोखला कर दिया। इतनी सर्जरी के बाद वह पूरी तरह से टूट चुकी थी। 

वह कहती हैं, “उन्होंने बताया कि इस स्थिति से उबरने के लिए माता-पिता ने उन्हे हमेशा प्रेरित किया। माता-पिता हमेशा कहते थे कि जीवन में जो घटना था वह घट गया। अब आगे देखने का समय है। उनके पिताजी हमेशा कहते थे कि जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित कर उस पर काम करने के लिए आगे बढ़ना है। पीछे मुड़कर देखना आपको और कमजोर कर सकता है। 

आत्महत्या का भी आया ख्याल

मंगला कपूर ने बताया कि जब वह बाहर निकलती थीं तो बहुत व्यंग्य सुनने को मिलते थे। स्कूल में बच्चे उनसे डरते थे और कई बार उनका मजाक भी उड़ाया जाता था। उन्हे अनेक उपाधियां दी जाती थीं। ‘नाक कटी’ जैसी नामों से उन्हे संबोधित किया जाता था। इससे उन्हे बहुत दुख होता था। उन्हे कई बार आत्महत्या करने की इच्छा भी हुई थी। लेकिन पिताजी की बात उन्हे हमेशा याद आ जाती। 

लोगों की बातें सुनकर एहसास हुआ कि कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे सबके मुंह बंद हो जाएं। इसके बाद उन्होंने प्राइवेट पढ़ना शुरू किया। 

संघर्ष के बाद जीवन में आया सकारात्मक बदलाव 

मंगला कपूर ने बीएचयू से बी. म्यूज, एम म्यूज में गोल्ड मेडल और पीएचडी हासिल की। इसके साथ ही उन्होंने संगीत के कार्यक्रम करने भी शुरु कर दिए। उनकी मीठी आवाज को सुनने के लिए लोगों की भीड़ लग जाती थी। आवाज अच्छी होने कारण लोग उन्हें कलाकार के रूप में जानने लगे। 

वे बताती हैं, “देश का कोई ऐसा कोना बचा नहीं होगा, जहां उन्होंने प्रोग्राम नहीं किया। संगीत की दुनिया में उनकी आवाज को बहुत पसंद किया गया। इससे उन्हें जीने का बहुत सहारा मिला और उनकी विल पॉवर बढ़ती गई। मंगला कपूर बताती है कि पीएचडी करने के बाद उन्होंने सर्विस के लिए अप्लाई करना शुरू किया, लेकिन लोगों ने फिर उन्हें ठुकराना शुरू कर दिया। 

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लोग कहते थे कि एक विकृत चेहरे की महिला कॉलेज में आ जाएगी तो अच्छा नहीं लगेगा। पर उन्होंने हार नहीं मानी और प्रयास करती रहीं। आखिर बीएचयू के महिला महाविद्यालय में लेक्चरर की पोस्ट पर उनकी नियुक्त हुई। आज उनके मार्गदर्शन में 13 विद्यार्थियों ने अपनी PhD की पढ़ाई पूरी की है। 

कई पुरस्कारों और उपाधियां हैं मंगला की झोली में 

प्रो. मंगला कपूर को काशी की लता मंगेशकर भी सम्मान दिया जा चुका है। इस बारे में वे बताती हैं, “बीएचयू से मेरा सफर शुरू हुआ और यहीं से रिटायर भी हुईं। खूबसूरत आवाज और सुंदर गायिकी के लिए 1982 में तरंग संस्था द्वारा उन्हें काशी की लता के अवार्ड से सम्मानित किया गया है। हाल ही में राज्य सभा द्वारा उन्हें रोल मॉडल पुरस्कार भी दिया गया है।“

प्रोफेसर मंगला कपूर ने बताया कि वह एक तरफ संगीत पर किताबें लिखती हैं, वहीं दूसरी ओर घर पर बच्चों को निशुल्क पढ़ाने का भी काम करती हैं। जो लोग शुरू से सीखना चाहते हैं उनको भी सिखाती हैं। वे ग्वालियर घराने से हैं और पूरी ईमानदारी और लगन से घराने की संगीत परंपरा को आगे बढ़ा रहीं हैं। 

उन्हे पुरस्कारों से नवाजा गया है। चित्र:मंगला कपूर

समाज से हटाना है एसिड अटैक का टैबू 

मंगला कपूर को बहुत छोटी सी उम्र वह भयानक शारीरिक और मानसिक पीड़ा सहनी पड़ी। जिसमें उनका कोई दोष नहीं था। इसके बावजूद समाज ने उन्हें तिरस्कृत किया। समाज के लोगों का यह बर्ताव उनके भीतर आक्रोश पैदा करता है। 

वह चाहती हैं कि ऐसी घटनाओं का सामना करने वाले लोगों के दर्द को समझा जाए और उन्हें फाइटर माना जाए। सकारात्म्क सोच वाले लोग आगे आएं तो एसिड अटैक सर्वाइवर के प्रति इस सोशल टैबू को तोड़ा जा सकता है।   

अपनी किताब ‘सीरत’ में बयां किया है दर्द 

मंगला कपूर ने अपनी दास्तान को शब्दों में पिरोया है। उनकी यह कथा ‘सीरत’ शीर्षक से किताब में दर्ज है। सीरत में उन्होंने ऐसी घटनाओं का भी जिक्र किया है, जब लोगों ने उनके जले हुए चेहरे को भूल कर उनकी कला का सम्मान किया। एक कार्यक्रम में उन्होंने अंधेरे मंच पर गायन किया था। गायन के बाद जब स्टेज पर प्रकाश हुआ तो खचाखच भरे हॉल में लोगों ने खड़े होकर उनके सम्मान में तालियां बजाई थीं।

मंगला कपूर आज भी नई ऊंचाइयों को छू रहीं हैं, क्योंकि उन्होंने रुकना नहीं सीखा है!

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अदिति तिवारी

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