भले ही हम इसे पसंद करें या नहीं, महिलाओं के बॉडी इमेज काफी हद तक सोसाइटल स्टैंडर्ड और रूढ़िवादी विचारों से बनती है। जहां, फिट होने से ज़्यादा पतला होना मायने रखता है। मगर, इसके लिए आखिर कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी? फिर जीवन में एक समय आता है, जब हमें यह एहसास होता है कि वास्तव में हमारे लिए क्या मायने रखता है। यह तब होता है जब आप हेल्दी वेट लॉस की प्रक्रिया शुरू करते हैं। ठीक ऐसा ही कुछ हुआ 39 वर्षीय राधिका निहलानी के साथ, जो पेशे से एक पब्लिक रिलेशन और कम्युनिकेशन स्ट्रैटिजिस्ट हैं।
आज, वह एक ऐसी महिला हैं जो करियर, मदरहुड और खुद की मेंटल हेल्थ को बेहतर तरीके से संभाल पा रहीं हैं। उनकी इस जर्नी से और भी महिलाएं प्रेरणा ले सकती हैं ।
निहलानी कहती हैं, “जब से मैंने होश संभाला है अपनी बॉडी के साथ मेरा एक लव – हेट रिलेशनशिप रहा है। मैं एक ‘फैट, क्यूट 80 kg की लड़की’ होने से लेकर दिन में 20 किलोमीटर दौड़ने वाली ‘एनोरेक्सिक 48 kg की युवा वयस्क’ भी रही हूं। मेरा फिटनेस या न्यूट्रीशन से कोई मतलब नहीं था… मैं सिर्फ पतला होना चाहती थी।”
जो लोग नहीं जानते उनके लिए, एनोरेक्सिया एक मनोवैज्ञानिक फूड डिसऑर्डर है। जिसमें व्यक्ति खुद को भूखा रखता है। उसे रात – दिन मोटा होने का डर सताता है और वह जल्द से जल्द पतला होना चाहता है।
राधिका अब नियमित जिम जाती हैं और मानती हैं कि खुद को एनोरेक्सिक बनने से रोकने के लिए बहुत सेल्फ – डिसिप्लिन की ज़रूरत होती है।
फिर एक बार जब उन्हें सही बैलेन्स मिल गया, तब उन्होंने एक हेल्दी और फिट जीवन जीना शुरू कर दिया। इसके बाद वह गर्भवती हो गईं! जिसका मतलब था कि उनके लिए अब खाना भी बहुत ज़रूरी हो गया – अपने और अपने बच्चे के लिए।
“प्रेगनेंसी में मैंने अपने आप को पूरी तरह से खुला छोड़ दिया और ऐसे खा लिया जैसे पहले कभी न खाया हो! मुझे विश्वास था कि मैं आसानी से अपना वजन कम कर लूंगी… मैंने पहले भी ऐसा किया था, मैं इसे फिर से कर सकती हूं।”
मगर वास्तविकता ने उन्हें पहली गर्भावस्था के बाद कड़ी टक्कर दी।
राधिका बताती हैं, “प्रसव के बाद मुझे अपने संघर्ष का एहसास हुआ। कभी – कभी मुझे हफ्तों तक जागने का मन नहीं करता था। मेरा शरीर बदल गया था, यह वज़न घटाने को तैयार ही नहीं था। मैं इससे लड़ने की क्षमता खो रही थी।”
कठिनाइयां बहुत हैं – चाहे वह मां बनना हो, करियर हो या वेट लॉस जर्नी। वे आगे कहती हैं “यह मुश्किल है। एक बच्चे को पालना और काम पर वापस जाना। बच्चे की परवरिश करना, फिर काम करना बहुत कठिन है।”
एक निश्चित शेप में आने के लिए महिलाएं खुद पर बहुत दबाव डालती हैं। सोशल मीडिया का इसमें बहुत बड़ा हाथ है।
“जब हम उस शेप को प्राप्त नहीं कर पाते, तो हम खाने पर जोर देते हैं, हम काम नहीं करते हैं – हम वह सब कुछ करते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए। यह एक साइकल है – जिसे तोड़ना लगभग असंभव है। यह आजकल ‘इंस्टा-परफेक्ट’ दिखने के लिए संघर्ष करने वाली हर महिला की पीड़ा को व्यक्त करता है।”
फिर भी, वे इस बात से खुश हैं कि वह धीरे-धीरे अपने शरीर को उसके शेप और रूप में अपना रही है।
वह कहती हैं “आखिर मैं अपने शरीर से प्यार करना सीख रही हूं। क्या इसका मतलब यह है कि मैं अपना वजन कम नहीं करना चाहती? हां बिल्कुल! लेकिन मैंने अपने शरीर से प्यार करना शुरू कर दिया है और मैं महसूस कर सकती हूं कि यह मुझसे प्यार करता है।’
अपनी दूसरी डिलीवरी के बाद ही उन्होंने जिम ज्वाइन किया और यह उनके लिए जीवन बदलने वाला अनुभव रहा। इसने न केवल उनके वजन घटाने की यात्रा को बदल दिया, बल्कि फिटनेस के प्रति उसके दृष्टिकोण को भी बदल दिया।
“अब मैं सिर्फ पतला होने के लिए नहीं, बल्कि मजबूत होने के लिए काम कर रही हूं।”
30 मिनट अपने लिए निकालें। अपने पति, अपने माता-पिता, अपने ससुराल वालों, अपने बच्चों के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए! निहलानी के लिए, ‘मी टाइम’ का एक घंटा उनके लिए सब कुछ है क्योंकि यह उनके जीवन में मानसिक शक्ति को जोड़ता है।
“यह मुझे याद दिलाता है कि मैं खुद को अलग किए बिना पुश कर सकती हूं, यह मुझे याद दिलाता है कि दृढ़ता से आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं।”
फिटनेस का कोई भी रूप चुनें जो आपको पसंद हो और इसे हर दिन करें। यह असंभव लग सकता है, जब आप लगातार कई चीजें कर रहे हों, लेकिन यह संभव है।
धीरे-धीरे आप देखेंगी कि आपका शरीर बदल रहा है – और यह मैजिकल है। “यह एक छोटा स्प्रिंट नहीं है – यह एक मैराथन है। हमें उस पर कायम रहना है। याद रखें कि वजन कम करना अल्पकालिक निर्णय है, और फिटनेस को अपनाना जीवन शैली में बदलाव है।”
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