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फेलियर और रिजेक्शन, ऐसे बिल्डिंग ब्लॉक्स है, जो बच्चे को ओवरडिपेंडेंट से इंडिपेंडेंट बनाने की दिशा में काम करते है: डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी

एक केमिकल इंजीनियर से सफल एंटरप्रेन्योर और फिर एक पेरेंटिंग कोच बनने तक का सफर कैसा रहा। जानते हैं डॉ पल्लवी राव चतुर्वेदी से।
बच्चों को छोटा समझना बंद करें और उनमें लाइफ सिकल्स पैदा करने का प्रयास करें।
ज्योति सोही Updated: 13 Mar 2023, 10:51 am IST
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बच्चों की परवरिश तो सभी करते हैं, मगर उन्हें समझने की कोशिश शायद हर कोई नहीं कर पाता। इसके चलते उम्र के साथ बच्चों में आने वाले बदलाव उनके और पेरेंटस के मध्य दूरी का कारण बन जाते हैं। पेरेंटस की इसी उलझन को सुलझाने के लिए पेरेंटिंग कोच डॉ पल्लवी राव चतुर्वेदी ने सोशल मीडिया पर एक मुहिम की शुरूआत की। गेट सेट पेरेंट विद पल्लवी नाम की इस आर्गनाइजे़शन में चाइल्ड उपब्रिंगिंग से जुड़ी टिप्स को लोगों तक पहुंचाया जाता है। तकरीबन दस साल तक बतौर केमिकल इंजीनियर काम करने के बाद डॉ पल्लवी ने कार्पोंरेट की दुनिया को छोड़कर विवाह के बाद फैमिली बिजनेस को आगे बढ़ाया।

आइए जानते हैं, एक सफल इंटरप्रेन्योर, सराहनीय पेरेटिंग कोच और बेहतरीन एजुकेशनिस्ट के तौर पर खुद को साबित करने वाली डॉ पल्लवी के जीवन के कुछ खास पहलू।

डॉ पल्लवी एआईएसईसीटी ग्रुप (अर्ली चाइल्डहुड एसोसिएशन ऑफ इंडिया) की एक्ज़िक्यूटिव वाइज़ प्रेसिडेंट हैं। वे बच्चों की समस्याओं और जरूरतों को समझते हुए 25,000 स्किल डेवेलपमेंट सेंटर समेत पांच प्राईवेट युनिवर्सिटीज़ को आगे बढ़ाने का काम कर रही है। उन्होंने अपने विडियोज़ के ज़रिए गेट सेट पेरेटसं विद पल्लवी नाम की इस आर्गनाइ्रजेशन से लोगों को जोड़ा और आज इस पर उनके छ लाख फालोअर्स हैं। इसके अलावा वो बिजनेस वर्ल्ड 40 अंडर 40 अवार्ड की भी विजेता रही हैं। साथ ही इस्तांबुल में जी 20 युवा उद्यमियों के शिखर सम्मेलन सहित कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उन्होंने एक स्पीकर के तौर पर अपनी विशेष भूमिका निभाई है।

इस सफर को तय करने में आपको किन चुनौतियों से होकर गुज़रना पड़ा।

मेरा मानना है कि अचीवमेंट और हार्डवर्क एक साइकिल के समान है, जो यूं ही चलता रहता है और उसका कोई अंत नहीं होता। चुनौतियां हर फील्ड में आती है। एक एंटरप्रेन्योर के तौर पर सबसे बड़ा चैलेंज यही है कि अपने आइडिया को कैसे एक्जिक्यूट करें। दरअसल, काम कोई भी हो। कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है।

अगर हमारी नज़र हर वक्त हमारे लक्षय पर रहेगी, तो हम आसानी से उसे अचीव कर पाएंगे। टीम वर्क बहुत ज़रूरी है और इसमें कंसिस्टेंसी अहम रोल अदा करती है। दूसरा है वर्क बैलेंसिंग, हमें हर काम को बैलेंस करके चलना होगा। चाहे घर हो या ऑफिस सभी चीजों को मैनेज करना एक बड़ा चैलेंज है। तीसरा है काम्पीटिशन। इस काम्पीटीटिव वर्ल्ड में लोगों के संपर्क में रहना और हर चीज़ पर नज़र बनाए रखना ज़रूरी है।

बच्चों को हर काम में अपने साथ रखें। इससे बच्चा हर दिन कुछ नया सीखेगा।

आपकी लाइफ में वो कौन सी चीज़ है, जो आपको हर दम आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट करती है।

इस बात का क्रेडिट मेरे परेंटस को जाता है। उन्होंने हनेशा हम दोनों बहनों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। हमें विश्वास दिलाया कि कोई भी काम मुश्किल नहीं है। बस इसी सोच के साथ हम आगे बढ़ने लगे। देखते ही देखते, ये हमारी लाइफस्टाइल का हिस्सा बन गया। मेरी मां एक स्कूल प्रिंसिपल थीं और वही हमेशा मेरी रोल मॉडल रहीं।

उनके जाने के बाद पिताजी का पूरा सपोर्ट मिला। इसके अलावा मेरे पति और फादर इन लॉ ने भी काम में पूरा सहयाग दिया है। डॉ पल्लवी कहती हैं कि हमें हमेशा अपने आसपास के इकोसिस्टम से एनर्जी मिलती है। जो हमें आगे बढ़ने के लिए पुश करती है। मैं चाहती हूं कि मैं भी अपने बच्चों के लिए एक रोल मॉडल बनूं।

दस साल के इंजीनियरंग करियर को छोड़कर, विवाह के बाद फैमिली बिजनेस को ज्वाइन करने के बारे में कैसे सोचा।

डॉ पल्लवी बताती हैं कि वे और उनके पति मार्किटिंग प्रोफेशन्लस थे। विवाह के बाद उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर उनके फैमिली बिजनेस को आगे बढ़ाने की ठानी। कार्पोंरेट लाइफ को छोड़कर उन्होने अपने फादर इन लॉ के 45 साल पुराने एजुकेशन बिजनेस को आगे ले जाने का डिसीज़न लिया।

वर्कप्लेस और घर दोनों को कैसे मैनेज करती है।

कोविड ने हमें सिखाया है कि काम करने के लिए ज़रूरी नहीं कि किसी खास वर्कप्लेस की ज़रूरत हो। आप कहीं भी बैठकर काम कर सकती हैं। पोस्ट कोविड हमारी सोसायटी अब ये सीख चुकी है कि आप अपने वर्क को कैसे मैनेज कर सकते हैं। बच्चों की परवरिश के साथ साथ आप काम को बैलेंस कर सकते हैं। दरअसल, इससे हमारे आस पास बनी बाउंड्री समाप्त हो चुकी हैं। खासतौर पर महिलाओं को इससे खूब फायदा हुआ है। साथ ही इसका फायदा एंटरप्रेन्योर्स को भी मिला है।

टीनएज में कदम रखते ही बच्चों का इंटरएक्शन पेरेंटस से कम होने लगता है, इस दूरी को कैसे मिटाया जाए।

छोटी उम्र से ही बच्चों का हर डिसिज़न पेरेंटस लेंते है। बच्चे भी अपने हर काम के लिए कहीं न कहीं माता पिता पर डिपेंड होते है। टीनएज में कदम रखने के बाद बच्चों के व्यवहार में परिर्वतन आने लगता है। मगर पेरेंटस का स्वभाव अथारिटिटेटिव ही रहता है। जो बच्चे अक्सर पसंद नहीं करते है। पहले की तरह ही माता पिता बच्चों के डिसिजन लेने लगते है, उनके कामों में इंटरफेयर करते है, जो वो पसंद नहीं करते।

इसके चलते बच्चे रिबेल करना सीख जाते हैं। वो माता पिता से दूरी बना लेते हैं। हमें बच्चों को बात बात पर इंस्टशन देने की जगह उनसे अपने सुझावों को शेयर करना चाहिए और उन्हें सुनने की आदत डालें। उन्हें समझाने के तरीके में बदलाव लाना होगा। डायरेक्ट अपनी बात को कनवे करने की जगह उन्हें उदाहरण देकर समझाएं।

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बच्चे को इंडिपेंडेंट बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। ।

पढ़ाई से लेकर खेलों तक बच्चे हर काम के लिए गैजेट्स पर निर्भर हैं, बच्चों को गैजेटस से कैसे दूर रखें। 

गैजेट्स हमारे इको सिस्टम का एक हिस्सा बन चुका है। हमें गअली जनरेशन के साथ कदमताल करके चलने की ज़रूरत है। अपने समय के सुझाव और उदाहरण उनसे साझा करने की बजाय नए लाइफस्टाइल को अपनाएं। दरअसल, उनका जन्म गेजेट्स के दौर में हुआ है। ऐसे में उन्हें मोबाइल फोन, टैब, टीवी और कम्प्यूटर से दूर रखना संभव नहीं है। उनकी पढ़ाइ से लेकर फन टाइम तक सब कुछ इनके इर्द गिर्द सिमट चुका है।

स्क्रीन टाइम को सीमित करने के लिए कोशिश करें कि बच्चों के सामने ज्यादा टीवी और फोन न देखें। डब्लयूएचओ की गाइडलाइंस के मुताबिक 1 घंटे से ज्यादा बच्चे को स्क्रीन टाइम न दें। दरअसल, बच्चे के पैसिव और एक्टिव स्क्रीन टाइम में संतुलन बनाएं। एक्टिव स्क्रीन टाइम यानि वो समय जब बच्चा पढ़ाई या अन्य एक्टिविटी के लिए स्क्रीन देख रहा है। ऐसे में एक्टिव स्क्रीन टाइम को ज्यादा प्रेफर करें। पैसिव स्क्रीन टाइम में भी बच्चे को नोटिस करें कि वो किस तरह के विडियो देखने में अपना समय बिताता है।

इंडियन मदर्स का व्यवहार बच्चों की अपब्रिगिंग में कैसे अहम रोल अदा करता है।

भारत, जापान और चीन की मदर्स की परवरिश वेस्टर्न माताओं की देखरेख से बिल्कुल अलग है। हांलाकि, वो इंडियन मदर्स जो अब से 40 साल पहले हुआ करती थीं। अब उनका व्यवहार बिल्कुल बदल चुका है। अब माताएं बच्चों को लेकर ज्यादा पोजे़सिव हो चुकी हैं। बच्चों के लिए पेरेंटस ओवरथिंकिंग करने लगे है और पूरा दिन उन्हीं के साथ किसी न किसी तरीके से इन्वॉल्व रहते है। इससे बच्चा ओवरडिपेंडेट होने लगता है।

माता पिता से हर वक्त घिरे रहने के कारण बच्चे फेलियर से डरने लगते हैं। हमारी एक्सपेक्टेंशस बच्चों से बढ़ने लगती हैं। पेरेंटिंग कोच डॉ. पल्लवी बताती हैं कि बच्चों के लिए जीतने के साथ साथ हारना भी ज़रूरी है। हमें बच्चे को इंडिपेंडेंट बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। ।

आजकल के बच्चे पेरेंटस पर ओवरडिपेंड हो चुके हैं, बच्चों को रिस्पॉसिबल बनाने के लिए कुछ टिप्स दीजिए।

बच्चा जब तक फियर ऑफ फेलियर से बाहर नहीं निकलेगा, वो रिस्पॉस्बिल नहीं बन पाएगा। बच्चों को अपने काम खुद करने दें। उम्र बढ़ने के साथ साथ उनकी जिम्मेदारियों को बढ़ाएं। अपने स्कूल बैग को पैक करने से लेकर मनी मैटर्स तक, हर काम में उनकी भागीदारी ज़रूरी है। बच्चों को हर काम में अपने साथ रखें। इससे बच्च हर दिन कुछ नया सीखेगा।

टीनएजर बॉडी चेज़िज़ को लेकर शाई फील करते हैं, इस सिचुएशन को कैसे हैंडल करें।

इसकी शुरूआत घर से ही होती है। घर का माहौल ऐसा रखें कि हर समय लुक्स के बारे में बात न करें। हर वक्त ऐसा न बोलें कि तुम सुंदर लग रही हो। बच्चों को लुक बेस्ड काम्प्लीमेंटस देने से बचें। उन्हें उनकी पेंटिंग, स्पोर्टस और नए आइडियाज़ के जिए सराहें। दरअसल, बच्चा हर छोटी बड़ी चीज़ और आब्जर्व करता है और फिर वैसा ही व्यवहार करने लगता है। दूसरा, बच्चों के अंदर काफिडेंस बिल्डिंग के लिए ग्रूमिंग की ओर ध्यान दें। तीसरा, बच्चों का ध्यान बार बार इस ओर न ले जाएं कि तुम्हारे दांत टेढ़े हैं, चेहरे पर पिंपल आ गया, तुम सीधा नहीं चलती। वगैरह वगैरह। इन सब बातों को अवाइड करें।

बच्चों को अपना काम खुद करने की आदत डालें।

बच्चों की लाइफ में टाइम मैनेजमेंट कितना ज़रूरी है।

बच्चों को अपना काम खुद करने की आदत डालें। उन्हें एक सिस्टम बनाकर दें कि किस वक्त उन्हें क्या काम करना है। इससे बच्चों की लाइफ में अनुशासन बढ़ने लगता है। साथ ही बच्चों को छोटा समझना बंद करें और उनमें लाइफ सिकल्स पैदा करने का प्रयास करें।

 एक एंटरप्रेन्योर के तौर पर भविष्य को लेकर आपकी क्या योजनाएं है

गेट सेट पेरेंट विद पल्लवी की शुरूआत कोविड में की गई थी। मेरा एक्सपीरिएंस अरली चाइल्डहुड से जुड़ा था और हम ने कम्यूनिटी के पेरेंटस को एडवाइस करना शुरू किया। हमारा मकसद पेरेंटस की ज्यादा से ज्यादा रीच को बढ़ाना है। ब्रेनी बियर प्री स्कूल और ब्रेनी बियर स्टोर की फाउंडर डॉ पल्लवी का कहना है कि वे 0 से 8 साल के बच्चों के लिए टॉयज बनाते है। अब तक 60 से ज्यादा बुक्स पब्लिश कर चुके हैं। हमारा यही उद्देश्य है कि हम ज्यादा इनोविटिव प्रोडक्टस लाएं जो बच्चों के लिए फायदेमंद साबित हो।

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ज्योति सोही

लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं। ...और पढ़ें

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