जेबा जोरिया एहसान वर्षों से वाटर कंजरवेशन और क्लाइमेट चेंज पर काम करती आई हैं। इस सामजिक काम को वे भारत के अलग-अलग राज्यों में अंजाम देती आई हैं। भारत के पड़ोसी देशों नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश की सरकारों के साथ मिलकर भी वे इस दिशा में काम करती आई हैं। क्लाइमेट चेंज पानी के संरक्षण पर उनकी बनाई फिल्म पुरस्कृत भी हो चुकी है। आइये हेल्थशॉट्स से उनसे हुई बातचीत में उनके जीवन की प्रेरणादाई कहानी (Zeba Zoriah Ahsan Inspirational Story) जानते हैं।
पर्यावरण की रक्षा के लिए दुनिया भर में लोगों को जागरूक करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व पर्यावरण दिवस मनाता है। विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की थीम प्लास्टिक खत्म करें और इकोसिस्टम रिस्टोर करें (#BeatPlasticPollution, Ecosystem Restoration) है।
जेबा जोरिया एहसान का जन्म असम के दुलियाजान शहर में हुआ। इसी शहर में उनकी स्कूलिंग भी हुई। बाद में हायर स्टडीज के लिए वे सिक्किम और फिर बाद में दिल्ली गयीं। उन्होंने करियर बनाने के लिए मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। लेकिन असम के हालातों ने उन्हें पानी की तरफ मोड़ दिया। दरअसल असम में हमेशा पानी और बाढ़ की समस्या रही है। हर साल वहां हजारों हेक्टेयर जमीन बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। पानी से हुए कटान के कारण इंसान, पशु के साथ-साथ पर्यावरण भी इसकी चपेट में आ जाता है। वहीं देश के दूसरे कोने यानी राजस्थान, महाराष्ट्र और बुंदेलखंड जैसे स्थान में पानी की कमी के कारण जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है। यह सब देखकर बचपन से ही ज़ेबा पानी की समस्या के बारे में सोचती रहती। वे कहती हैं, ‘जलवायु परिवर्तन और पानी की समस्या को गहराई से जानने की इच्छा बचपन से थी। अपने टीचर्स और पिता से बातचीत करने के बाद मैंने इस क्षेत्र के लिए काम करने का मन बना लिया।’
पुख्ता रूप से काम करने के लिए उन्होंने वाटर कंजरवेशन और क्लाइमेट चेंज में मास्टर कोर्स किया। यह कोर्स उन्होंने दिल्ली से वाटर साइंस एंड गवरनेन्स (Water Science & governance), टेरी से किया। जेबा कहती हैं, जलवायु परिवर्तन और जल संरक्षण आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन गयी है। इसलिए इसके बारे में सभी को समझना और जानना चाहिए। किसी न किसी रूप मन क्लाइमेट चेंज हर व्यक्ति को प्रभावित कर रहा है। अब मैं खुद को पूरी तरह वाटर कंजर्वेशन के प्रति समर्पित कर चुकी हूं।’
आज भी वे वाटर कंजरवेशन पर लगातार शोध (Research on Water Conservation) करती रहती हैं। वे इस बात पर जोर देती हैं, ‘हिंदुस्तान जैसे बड़े देश में पानी पर कोई एक समाधान नहीं हो सकता है। हर राज्य की अलग समस्या है। कहीं पानी की अधिकता है, तो कहीं पानी की कमी है। पानी की समस्या दोनों जगह है। वाटर कंजरवेशन से अधिक वाटर मैनेजमेंट (Water Management) की जरूरत ज्यादा है।’
ज़ेबा को लगातार इस पर काम करना पड़ता है। गांव-गांव जाकर लोगों को समझाना पड़ता है। अगर फील्ड वर्क के दौरान वे किसी गांव में जाती हैं, तो उनका अनुभव बिल्कुल अलग होता है। ज़ेबा कहती हैं, ‘हमारा देश पितृसत्तात्मक है।
इसलिए किसी लड़की या महिला के सामने समस्या भी अलग तरह की आती है। उसके चैलेंजेज भी पुरुषों से अलग होते हैं। कई जगह ग्लास सीलिंग होती है, जिसे तोड़ कर महिलाओं को आगे बढ़ना होता है।’
ज़ेबा कहती हैं, किसी दिन काम थोड़ा ज्यादा रहता है, तो कुछ दिन कम। मेरा मानना है कि कोई भी काम अगर आपको बोझ लगता है, तो उस काम को करने में काफ़ी मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। चूंकि मुझे पानी के संरक्षण पर काम करना पसंद है, तो यह मुझे आसान लगता है। सबसे जरूरी है वर्क लाइफ बैलेंस (Work Life Balance) होना।’
ज़ेबा को लोगों से बातचीत करने, उन्हें इस विषय के बारे में समझाने के अलावा लगातार लेखन भी करना पड़ता है। कई बार लोगों को समझाना इतना आसान नहीं होता है, लेकिन कोशिश करने पर परेशानियां हल हो जाती हैं।
अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क और टेरी के तहत ज़ेबा ने कई स्टोरीज और विडियो बनाये। वाटर इन अर्बन इंडिया विषय पर उन्होंने और उनकी टीम ने एक शॉर्ट फिल्म भी बनाई। इसमें असम के गुआहाटी शहर के वेटलैंड की समस्या के बारे में हाईलाइट किया गया था। इस फिल्म को बहुत सराहा गया। ज़ेबा फिल्म स्टूडेंट नहीं हैं, इसके बावजूद उनके लिए यह अनुभव अच्छा रहा। उन्हें बहुत कुछ सीखने को भी मिला। पानी की समस्या पर उन्होंने असमिया भाषा में भी एक फिल्म बनाई। इस फ़िल्म को सिल्वर बॉयोस्कोप अवार्ड (Silver Bioscope Award) भी मिला।
वाटर प्रोफेशनल बनने में सबसे बड़ा योगदान उनके माता पिता का रहा। उनके पेरेंट्स उन्हें बहुत प्रोत्साहित करते। खासकर उनक पिता। ज़ेबा कहती हैं, ‘जब भी उन्हें देश के किसी स्थान में पानी से संबंधित समस्या के बारे में पता चलता है, वे मुझे तुरंत सूचित करते हैं। वे मेरे साथ पानी की समस्या पर लम्बी चर्चा भी करते हैं।” स्वच्छ भारत सर्वेक्षण जैसी सरकारी योजनाओं के साथ साथ ज़ेबा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका के सरकारों के साथ जुड़कर भी काम कर चुकी हैं। इससे क्रॉस कंट्री लर्निंग हो पाई।
ज़ेबा जोरिया एहसान बचपन से ही अपने आसपास के परिवेश और सामाजिक काम के प्रति सजग थीं। वे लोगों से अपील करती हैं कि सभी लोगों को पर्सनल स्तर पर समाज की समस्याओं के प्रति जागरूक होना चाहिए। भारत सरकार की योजनाओं की जानकारी रखनी चाहिए, ताकि वे राज्य और देश में लागू होने वाली योजनाओं को जान और समझ सकें। अपना भला तभी होगा जब देश और समाज का भला होगा।
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