मंदिरों में चढ़े फूलों से हर्बल गुलाल बना रहीं हैं अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट, आजमगढ़ की संतोष सिंह

अपनी सुविधाओं, उत्सवों और प्रगति के साथ-साथ प्रकृति का भी संरक्षण करना ही मॉडर्न एप्रोच है। संतोष सिंह ने इसे बखूबी जानती हैं। इसलिए अपने इस छोटे से प्रयास के साथ वे स्त्री की आत्मनिर्भरता और प्रकृति के संरक्षण दोनों के लिए काम कर रहीं हैं।
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फूलों से गुलाल बनती हैं संतोष सिंह।
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रंगो के त्योहार होली (Holi – festival of colors) आखिर आ ही गया। होली यानी रंग, गुलाल, मेवा-मिष्ठान्न और खुशियां। आप कई वर्षों से विभिन्न प्रकार के गुलाल से यह त्योहार मनाते होंगे। इसमें बहुत से ऑर्गेनिक भी होंगे और कुछ केमिकल युक्त पक्के रंग। लेकिन क्या आपने कभी ऐसे गुलाल (Gulal) का इस्तेमाल किया है, जो पुराने फूलों से तैयार किए गए हो? सुनकर आश्चर्य हो रहा है, है न? फूलों से होली खेलने के बारे में तो सुना था। लेकिन पुराने फूलों से गुलाल बनाना काफी अलग है। लेकिन यह पूरी तरह से संभव है और इसे संतोष सिंह ने कर दिखाया है। आज हम आपको संतोष सिंह के बारे में बता रहें हैं, जिन्होंने हर्बल गुलाल बनाने के अलावा पुरानी और खराब चीजों से सजावट का सामान बनाकर कई घरों तक खुशियां पहुंचाई है।

जानिए आखिर कौन हैं संतोष सिंह 

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में डॉक्टरेट करने के बाद संतोष सिंह ने साज फाउंडेशन  (Saz Foundation ) की शुरुआत की। उनका यह फाउंडेशन ऐसे वेस्ट पर काम करता है, जो वातावरण को नुकसान पहुंचा रहा हो। थर्माकॉल,प्लास्टिक और अन्य पदार्थों का सही इस्तेमाल करना इस फाउंडेशन का उद्देश्य है। यहां तक कि मंदिर या पूजा में चढ़ाए गए फूलों से गुलाल बनाने का विचार भी इनका ही है। संतोष सिंह का पर्यावरण के प्रति प्रेम और जज़्बा उन्हें कुछ नया करने को प्रेरित करते रहता है। 

इकोनॉमिक्स में डॉक्टरेट हैं संतोष।

संतोष सिंह बताती हैं, “मैं साज फाउंडेशन चलाती हूं। इसमें बहुत सारी ऐसी महिलाएं, लड़कियां या लड़के हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर है, परंतु उनका कलापक्ष बहुत मजबूत है। वे कुछ नया करना चाहते हैं। मैं इन लोगों के हुनर को निखारने के लिए कोई न कोई कला सिखाती हूं। इससे वे स्वावलंबी बनते हैं।” 

संतोष को इस काम के लिए अब तक कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे बताती हैं, “मैंने माननीय प्रधानमंत्री जी के स्वच्छ भारत अभियान से जुड़कर इन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शहर के कूड़े-कबाड़ से कलाकृतियां बनाने के लिए तैयार किया। थर्माकॉल, प्लास्टिक की बोतलें, पुराने अखबार कुछ ऐसी चीजें हैं, जो हर रोज़ टनों की मात्रा में बाहर आता है और शहर को गंदा करता है। इनसे कलाकृतियां बनाना आसान नहीं है। लेकिन बच्चे उस शहर के कूड़े कबाड़ को इकट्ठा करते हैं और उनसे हैंडिक्राफ्ट बनाकर उन्हें मार्केट में बेचते हैं। इससे वे अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत कर सकते हैं।” 

मंदिर से निकले फूलों से आया गुलाल बनाने का आइडिया 

संतोष द्वारा बनाए गए गुलाल को 100% ऑर्गेनिक कहा जाए, तो बिल्कुल भी गलत नहीं होगा। यह फूलों से तैयार किया जाता है और इसमें मुल्तानी मिट्टी शामिल करने के बाद यह त्वचा के लिए और भी ज्यादा फायदेमंद हो जाता है। संतोष बताती हैं कि मंदिरों में जो फ्लावर वेस्ट होते हैं, उन्हे पवित्र नदियों में प्रवाहित किया जाता है। इससे जल प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। इस समस्या को हल करने के लिए उन्होंने इन खराब फूलों से गुलाल बनाने के बारे में सोचा। 

वह कहती हैं, “गुलाल बनाने के लिए ऐसे फूलों को इकट्ठा करना आवश्यक है। इसके लिए हम मंदिरों से फूल लाते हैं। हमने पुजारियों से बात कर रखी है, वे हर सुबह हमें फूल जमा करके दे देते हैं। इससे फूल नदियों में नहीं जाते हैं।”

संतोष कहती हैं, “बाजारों में जो गुलाल मिलते हैं वह हमारी स्किन के लिए बिल्कुल सही नहीं होते हैं। कई लोगों को गुलाल से रिएक्शन, एलर्जी और रैशेज भी हो जाते हैं। लेकिन हमारे गुलाल में मुल्तानी मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। आप होली के बाद फेस पैक की तरह भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। कौन से फूल से कौन सा गुलाल बनना है यह फूल के रंग पर निर्भर करता है। गुलाब के फूल से गुलाबी गुलाल और गेंदे के फूल से पीला रंग का गुलाल तैयार किया जाता है।”

जानिए कैसे संतोष सिंह बनाती हैं हर्बल गुलाल 

संतोष सिंह कहती हैं, “हम मंदिरों से सारे फूलों को घर लाते हैं। उसके बाद उनके रंग के हिसाब से फूलों को छांट लिया जाता है। फिर फूलों की पत्तियों को पाउडर का रूप दिया जाता है। इसको छांव में या पंखे की हवा में सुखाया जाता है। पूरी तरह से फूलों का पाउडर तैयार होने के बाद गुलाल का बेस मुल्तानी मिट्टी रखा जाता है। जिससे ये गुलाल त्वचा को नुकसान न पहुंचाए। मुल्तानी मिट्टी हमारी स्किन के लिए काफी अच्छी मानी गई है। आप बाद में भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। यह पूरी तरह से नेचुरल है।”

कैसे काम करता है आपका साज फाउंडेशन? 

संतोष बताती हैं,”साज फाउंडेशन में वे लोग काम करते हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। हम पहले उन महिलाओं और बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं। जब उनकी ट्रेनिंग पूरी हो जाती है, तो वे ट्रेनर के तौर पर काम करते हैं। हमारी दी गई ट्रेनिंग पूर्ण रूप से निशुल्क होती हैं। हालांकि शुरुआत में हम लोगों से फीस लेते थे। लेकिन जब हम आर्थिक रूप से पूरी तरह मजबूत हो गए, तो हमने निशुल्क ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया है। 

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साज फाउंडेशन चलाती हैं संतोष सिंह। चित्र : शटरस्टॉक

हमारे ट्रेनर ग्रामीण इलाकों में जाकर वहां की महिलाओं को प्रशिक्षित करते हैं और उन्हें इस फाउंडेशन का हिस्सा बनाते हैं। हमारा गुलाल ग्रामीण इलाकों की महिलाओं द्वारा भी बनाकर भेजा जाता है। हमें ज्यादा क्वांटिटी में सामान चाहिए होता है।”

गोबर का भी इस्तेमाल कर बनाती हैं चीज़े 

संतोष के गोबर से बनाए हुए प्रोडक्ट काफी चर्चित हैं। हमने उनसे जाना कि आखिर गोबर से वह किस प्रकार के प्रोडक्ट्स को तैयार करती हैं। संतोष कहती हैं, “हमने गोबर के साथ बहुत काम किया है। गोबर से दीये बनाने के अलावा हम दिवाली पर लक्ष्मी गणेश की मूर्ति तैयार करते हैं। हाल ही में गोबर से बनाया हुआ गमला लोगों द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है। गोबर का गमला प्लास्टिक छोड़ने का एक अच्छा तरीका है।” 

उन्होंने आगे बताया, “आपने अक्सर देखा होगा कि नर्सरी वाले पौधों को प्लास्टिक बैग में देते हैं, जो बाद में फेंक दिया जाता है। यह हमारी पृथ्वी को नुकसान पहुंचाती है। लेकिन हम नर्सरी वालों को गोबर से बने इस गमले को इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। आपको इसे फेंकने की भी जरूरत नहीं है। आप अपने पौधे का रोपण इस गमले के साथ कर सकते हैं।”

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वे आगे कहती हैं, “हमारे पास गोबर से बने और भी कई प्रोडक्ट है जिसमें फ्रिज मैग्नेट शामिल हैं।  यह आपके घर की नेगेटिविटी दूर करने में आपकी सहायता कर सकता है।”

संतोष उदाहरण देती हैं, “हमारी मान्यता रही है कि गोबर हमें कई बीमारियों से बचा सकता है। यह रेडिएशन को काबू करने में सक्षम है। इसीलिए गांव देहात में गोबर से दीवारों को लीपा जाता है। हमारे यह छोटे-छोटे प्रोडक्ट भी इस नकारात्मकता को दूर करने के काम आ सकते हैं।”

कोविड में भी लोगों का सहारा बनी साज फाउंडेशन 

कोरोना वायरस महामारी (Covid-19 pandemic) की पहली लहर के दौरान भी साज फाउंडेशन ने बढ़-चढ़कर काम किया। कपड़े से बना मास्क हॉस्पिटल तक पहुंचा कर संतोष की फाउंडेशन ने काफी मदद की। संतोष सिंह कहती हैं, “कोविड-19 संक्रमण तेजी से फैलने लगा और अस्पताल में अचानक भीड़ बढ़ने लगी। साथ ही पलायन करने वाले मजदूर भी इस महामारी का शिकार बन गए। ऐसे में मास्क की शॉर्टेज पड़ने लगी, तब हमारे फाउंडेशन ने कतरनों से करीब 7000 मास्क बनाए और उन्हे डोनेट किया।” 

तो लडीज, अपने परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों के साथ सुरक्षित होली खेलना हैं, तो संतोष सिंह के हर्बल गुलाल का इस्तेमाल करना न भूलें। 

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