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हौसले से हर दौड़ जीती जा सकती है, ये है कैंसर विजेता सुनीता मीणा की कहानी 

सर्जरी के कुछ दिनों बाद ही विदेश यात्रा करने और दौड़ में भाग लेने वाली सुनीता मीणा उन सभी के लिए एक मिसाल हैं, जो बीमारी के कारण अवसाद में चले जाते हैं। 
सुनीता मीणा ने कभी हार नहीं मानी और कैंसर से जंग में जीत गईं।
स्मिता सिंह Published: 6 Jul 2022, 21:06 pm IST
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जब बच्चे बड़े हो गए तब सुनीता को दौड़ने के अपने पुराने पैशन की याद आई। पर तब तक उम्र 40 की हो चुकी थी। इसके बावजूद न सुनीता निराश हुईं और न ही उन्होंने हिम्मत हारी। वे इतनी पॉजीटिव रहीं कि ब्रेस्ट कैंसर भी उनके हौंसले को परास्त नहीं कर पाया। आइए सुनते हैं सुनीता की कहानी उन्हीं की जुबानी। 

बचपन से था दौड़ने का शौक 

मथुरा से ताल्लुक रखती हैं सुनीता मीणा। बचपन में स्कूल की दौड़ प्रतियोगिताओं में वे भाग लेतीं और जीत हासिल करतीं। लेकिन बड़ी हुईं, तो एथलीट दिनेश कुमार से शादी हो गई। दो बच्चे हिमांशु और हर्ष हुए। उनकी देखभाल में सुनीता का समय निकलने लगा। जब बच्चे बड़ी कक्षाओं में पढ़ने लगे, तो सुनीता को अपनी इच्छा का ख्याल आया। उन्होंने अपने लिए भी समय निकालने की ठानी। 

बचपन में वे दौड़ लगाती थीं, इसलिए रनिंग की प्रैक्टिस शुरू कर दी। सुनीता बहुत गर्व से बताती हैं, ‘मैंने 40 वर्ष की उम्र के बाद 2018 में फिटनेस के लिए दौड़ना शुरू किया। अब तो रनिंग जरूरत बन गई है। बिना रनिंग के मन नहीं लगता। सुबह 4 बजे उठकर ही प्रैक्टिस के लिए निकल पड़ती हूं।” 

सुनीता ने स्टेट और नेशनल लेवल पर कई मेडल जीते। दिल्ली हाफ मेराथन में वे दूसरे स्थान पर रहीं।

नहीं पता था कि कैंसर हुआ है 

शायद समय सुनीता का इम्तिहान लेना चाहता था। इसलिए मैराथन दौड़ के लिए 2-4 रेस में भाग लेने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें लेफ्ट ब्रेस्ट में दर्द शुरू हो गया। डॉक्टर चूंकि दिनेश के मित्र थे, इसलिए टेस्ट रिपोर्ट आते ही उन्होंने सर्जरी कराने की सलाह दी। 

सुनीता को यह अंदाजा नहीं हो पाया कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर हो चुका है। डॉक्टर ने सर्जरी की तारीख बताई 27 मई 2019, जबकि 4 जून को दोनों पति-पत्नी को रूस सहित यूरोपीय देशों के टूर पर जाना था। सुनीता ने डॉक्टर को मना करना चाहा। लेकिन डॉक्टर ने बताया कि सर्जरी के बावजूद आप घूमने जा सकती हैं। 

सर्जरी के टांकों के साथ की विदेश यात्रा 

नियत तारीख को सुनीता की सर्जरी हो गई। गांठ को निकाल दिया गया। सर्जरी इतनी बड़ी थी कि उन्हें कुल 22 टांके लगे। नियत तिथि पर अपने टांके और पट्टियों के साथ सुनीता पति दिनेश के साथ विदेश घूमने गईं। सिर्फ अपनी हिम्मत और जज्बे के बल पर वहां पहुंचकर उन्होंने घूमने-फिरने के साथ-साथ रनिंग भी की। भारत वापस आने के बाद जब डॉक्टर ने सुनीता से कीमो के बारे में कहा, तब उन्हें पता चल पाया कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर हुआ था। 

इसके बाद तो सुनीता को कई बार कीमोथेरेपी करानी पड़ी। ट्रीटमेंट और ढेर सारी सावधानियों के बावजूद उन्होंने कभी स्वयं को टूटने नहीं दिया। दर्द से मुकाबला करने के लिए वे लगातार घर के कामकाज से जुड़ी रहीं और रनिंग भी करती रहीं।

पति और बच्चे बढ़ाते रहे हौसला 

इस दौरान उनके पति और बच्चों ने उनका खूब साथ दिया। जब भी वे कभी परेशान होतीं, तो बच्चे उन्हें हंसाने की कोशिश करने लग जाते। एक घटना को याद करते हुए सुनीता बताती हैं, ‘मेरे पति इंटरनेशनल एथलीट रह चुके हैं। जब कीमोथेरेपी के कारण मेरे बाल बहुत अधिक झड़ने लगे, तो मैं बहुत दुखी हो गई। मैं अपने टूटे हुए बालों को देखकर रो पड़ती। फिर दिनेश मुझे काफी समझाते। 

वे कहते कि उपचार के बाद बाल तो आ जाएंगे। आप छोटे बाल रख सकती हैं। यदि मन करे, तो कैप लगा सकती हैं। सिर को ढंककर या खोलकर भी रख सकती हैं। उन दिनों मैं यदि कहीं नहीं जाना चाहती थी, तो वे मुझे वहां जरूर ले जाते। पार्टी या दूसरे समारोहों में मुझे ले जाने की कोशिश करते, ताकि मैं अपने गम को भुला सकूं।’

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दर्द को भुलाने की कोशिश

सुनीता की हालत देखकर जब कोई रिश्तेदार उनसे सहानुभूति के कुछ शब्द उनसे कहता, तो उनका मन भर आता। रिश्तेदार उनसे कोई भी काम न करने की सलाह देते। वे उन्हें सिर्फ आराम करने को कहते। इस पर सुनीता उनसे कहतीं कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है। उन्हें बैठना अच्छा नहीं लगता है। बीमारी में परेशान होने से कुछ नहीं मिलता है। सुनीता ने खुद को इसलिए व्यस्त रखा, ताकि दर्द को भुला सकें। 

सुनीता मीणा ने लद्​दाख जैसी ऊंचाई वाली जगह पर कीमोथेरेपी के कुछ दिन बाद ही रेसिंग में हिस्सा लिया।

वे कहती हैं, ‘लद्​दाख में ऑक्सीजन की कमी होती है। फिर भी कीमो लेने के पांच दिन बाद ही पति के साथ वहां चली गई और 7 किलोमीटर मैराथन में पार्टिसिपेट किया।’

संघर्ष करने वालों को संदेश

सुनीता मानती हैं कि खिलाड़ी होने के कारण वे कैंसर से जल्दी उबर पाईं। वे लोगों से कहती हैं कि कोई भी परेशानी आए कभी घबराना नहीं चाहिए। घबराकर या टूटने से काम नहीं चलता। हिम्मत की मदद से हर समस्या से लड़ा जा सकता है। समस्या के सामने मजबूती के साथ डटे रहना पड़ता है। दुख थोड़े दिन का होता है। एक दिन व्यक्ति की जीत जरूर होती है। 

ध्यान सिर्फ इतना देना है कि हेल्दी रूटीन को बरकरार रखना है। कभी निगेटिविटी नहीं आनी चाहिए। पॉजिटिव सोच से कोई भी जंग जीती जा सकती है।

सुनीता मीणा का सपना है कि वह 21 किलोमीटर मैराथन रेसिंग में हिस्सा लें।

सुनीता 10 किलोमीटर की मैराथन रनिंग करती हैं, लेकिन उनका सपना है कि वे 21 किलोमीटर मैराथन में भाग लें। उस रन की तैयारी में वे जुटी हुई हैं। 

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स्मिता सिंह

स्वास्थ्य, सौंदर्य, रिलेशनशिप, साहित्य और अध्यात्म संबंधी मुद्दों पर शोध परक पत्रकारिता का अनुभव। महिलाओं और बच्चों से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करना और नए नजरिए से उन पर काम करना, यही लक्ष्य है। ...और पढ़ें

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