63 साल की उम्र में, पूर्व एंकर और कॉलम्निस्ट ज्योति पाथारे जोशी, साहस के साथ स्तन कैंसर से लड़ रही हैं। वह ब्लॉगिंग के माध्यम से इसके बारे में जागरूकता फैलाने और उन महिलाओं के लिए एक आदर्श बनने के लिए दृढ़ संकल्प हैं, जो इस कैंसर से जूझ रही हैं।
स्तन कैंसर का अनुभव उनके लिए जीवन बदलने वाला रहा है। पर वे बहादुर हैं और हर दिन यह संदेश देने का प्रयास करती है कि कैंसर रोगियों को सहानुभूति के साथ नहीं देखा जाना चाहिए। ज्योति अपने ब्रेस्ट कैंसर के इस सफर के बारे में बता रहीं हैं।
ज्योति खुद को एक सकारात्मक सोच वाली उत्साही महिला मानती हैं।
वे कहती हैं, “शुरुआती वर्षों के दौरान जीवन सुचारू था जब मैं दूरदर्शन में एक एंकर के साथ स्वतंत्र कॉलम्निस्ट भी थी। 1985 में, मुझे मधुमेह हो गया, और मैं 37 वर्षों से इंसुलिन पर हूं। अन्य समस्याएं जैसे कोलेस्ट्रॉल, हाइपोथायरायडिज्म और रीढ़ की हड्डी में रॉड ने मुझे कुछ समय के लिए परेशान किया।”
करीब 2 साल पहले उनके गॉल ब्लैडर की सर्जरी भी हुई थी। लेकिन उनके लिखने के जुनून को आगे बढ़ने से किसी ने नहीं रोका।
“मैं बेहतरीन खाना बनाती हूं और एक शौकिया ब्लॉगर भी हूं। लॉकडाउन के दौरान, मैं अपने ब्लॉग ‘आइचा हत्चा जीवन’ पर रेसिपी अपलोड करती थी। मेरा मानना है कि किसी की अपनी पहचान होनी चाहिए और इस दिशा में काम करने का प्रयास करना चाहिए।”
किसी भी देखभाल करने वाली मां की तरह, ज्योति ने अपनी बेटी के परिवार की देखभाल की, जब उन्हे कोविड -19 हुआ था। “उनके ठीक होने के बाद, मैंने ब्लॉगिंग फिर से शुरू की और अपनी सामान्य दिनचर्या को फिर से शुरू किया। चूंकि मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है, इसलिए मैंने नए-नए व्यंजन बनाने की कोशिश की और खुद को घर के अन्य कामों जैसे कि साफ-सफाई में व्यस्त रखा।”
लेकिन एक दिन, उनकी जिंदगी बदल गई।
जून 2021 के मध्य में ज्योति ने अपने बाएं स्तन में एक गांठ देखी। इसके अलावा कोई अन्य लक्षण नहीं थे। उन्हे यह चिंताजनक लगा और ज्योति ने अपनी बेटी अमृता के साथ इस पर चर्चा की। जिसके बाद वे तुरंत अस्पताल चले गए। उसका सोनो-मैमोग्राम और बायोप्सी हुआ, और फिर बड़ा खुलासा हुआ: उन्हे स्टेज 2 स्तन कैंसर था।
ज्योति ने कहां, “मुझे नहीं पता था कि मैं क्या प्रतिक्रिया दूं। मेरे परिवार वाले स्तब्ध रह गए। मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी। सब कुछ अचानक हो गया। लेकिन, मैंने इससे लड़ने की ठान ली थी। मैं न रोई और न ही खुद को कमरे में बंद किया। न तो मुझे ऐसा लगा कि ‘मैं ही क्यों?’ या ‘क्या मैं इसके लायक हूं?’ मैंने इन सब बातों में पड़ने की बजाए वास्तविकता को स्वीकार किया।”
“मेरे पास बहुत सारे स्वास्थ्य मुद्दे थे, लेकिन मैं शांत रही और उनका मुकाबला किया। अब, कैंसर उनमें से एक था, और मैं इससे लड़ने के लिए तैयार थी।”
जून के अंत में कैंसर का पता लगाने के लिए हुए स्कैन के बाद, उन्होंने जेन मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल, चेंबूर, मुंबई के एक सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, डॉ तनवीर अब्दुल मजीद से मुलाकात की। जिन्होंने उन्हें बिना किसी देरी के भर्ती होने की सलाह दी। इसके तुरंत बाद, उन्हे रेडिकल मास्टेक्टॉमी से गुजरना पड़ा। इस सर्जरी में उनके बाएं स्तन को शरीर से अलग करना पड़ा था।
ज्योति बताती हैं, “मेरे दाहिने स्तन में भी छोटी-छोटी गांठें थीं जो मुझे भविष्य में परेशानी दे सकती थीं, और उसे भी लम्पेक्टोमी के माध्यम से हटा दिया गया था।”
उन्होंने कहां, “स्तन अक्सर नारीवाद से जुड़ा होता है। महिलाओं के लिए शरीर का एक हिस्सा खोना दर्दनाक होता है। वे चिंतित, तनावग्रस्त, अवांछित महसूस कर सकती हैं और निराश हो सकती हैं। लेकिन, मेरे मामले में, मैं इस बात को लेकर असमंजस में थी कि शरीर के किसी अंग के खोने का दुख हो या कैंसर से छुटकारा पाकर खुश हुआ जाए।”
लेकिन फिर भी, उन्होंने खुद को याद दिलाया कि “स्वीकृति मायने रखती है”।
स्तन कैंसर से पीड़ित हर योद्धा के लिए ज्योति कहती हैं, “मैंने इसे स्वीकार कर लिया और आगे बढ़ गई। कैंसर तभी डरावना होगा जब आप डरेंगे। इसलिए, बिल्कुल भी तनाव में न आएं।”
उन्होंने अब तक डॉ नीलेश लोकेश्वर के नेतृत्व में 4 में से एक सेशन पूरा किया है। उन्हे कब्ज, बालों का झड़ना और यहां तक कि जबड़े में दर्द जैसे कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने कहा, “यह वह समय है जब आपको अपनी मदद खुद करनी होगी। मैं दर्द में बैठकर कभी नहीं रोई। बल्कि मैंने दर्द से बाहर निकलने का उपाय सोचा।”
उन्होंने बताया, “मैं सिर्फ खीरे के 2 छोटे टुकड़े मुंह में रखती थी, और इससे मुझे अपना जबड़ा खोलने में मदद मिलती थी।”
कीमोथेरेपी और कुछ दिन आराम करने के बाद धीरे-धीरे और लगातार, उन्होंने घर पर साफ-सफाई और यहां तक कि खाना बनाना भी शुरू कर दिया। ज्योति ने कहां, “मैं स्वयं ही खुद को इंजेक्शन लगाती थी। बेशक, मैंने अपनी दिनचर्या को फिर से शुरू करने से पहले डॉक्टर से पूछा और मैं कोई भारी वस्तु नहीं उठाती थी। मैं अपनी गति से सब कुछ धीरे-धीरे करती गई, और संतुलित आहार का सेवन किया।”
ज्योति का कहना है कि कैंसर के साथ उनकी यात्रा आश्चर्यजनक रूप से दर्द रहित थी। उन्होंने बताया, “मैंने दर्द पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। मेरा ध्यान कैंसर से लड़ने पर था। मेरा मानना है कि मेरी सहनशीलता की सीमा अच्छी है।”
ज्योति कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वे कहती हैं, “कैंसर ने मुझे निकट भविष्य में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का फिर से सामना करने के लिए बहुत ताकत दी है। इसके अलावा, इसने मुझे एक नया हेयरस्टाइल भी दिया है।” वह अपने परिवार के सदस्यों को “ताकत के स्तंभ” होने का श्रेय देती है।
यह भी पढ़ें: दुबलेपन के लिए बुली होने से मिस दीवा यूनिवर्स बनने तक का सफर, ये है हरनाज़ संधू की कहानी