कोविड से जंग: मेरी बहन अमेरिका में अपने घर में अकेली थीं और हम केवल प्रार्थना कर सकते थे

मेरी छोटी बहन रमा शर्मा कोरोनावायरस से ग्रस्त थीं और उनके सारे टेस्ट नेगेटिव आ रहे थे। यह अजीब बीमारी है, हमें पूरी हिम्मत, सूझबूझ और सतर्कता से इसका मुकाबला करना है।
रमा शर्मा ने अमेरिका में कोविड-19 से लंबी लड़ाई लड़ी। चित्र: शशि पाधा
Updated On: 24 Jun 2020, 05:12 pm IST
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नमस्कार मेरा नाम शशि पाधा है। मैं एक रिटायर्ड आर्मी ऑफि‍सर की पत्नी हूं और इन दिनों अमेरिका में रह रही हूं। मैं मूलत: जम्मू की रहने वाली हूं पर अब हमारा परिवार विश्व के कई देशों में रहता है। इसके बावजूद हम खुद को एक-दूसरे से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं और जब भी वक्त मिलता है, तो मिलने का असवर जुटा लेते हैं। पर इस कोविड -19 के समय में हम सब एक अलग ही अनुभव से गुजरे। जब मेरी बहन जो अपने घर में बिल्कुल अकेली रहती हैं, कोविड-19 से ग्रस्त हो गईं। मेरी छोटी बहन रमा एलिकॉट सिटी, मैरीलैंड (Ellicott City, Maryland) में रहती हैं।

युद्ध एक अदृश्य शत्रु से

कभी बड़े बुजुर्गों से सुना था- बीमारी और उस पर महामारी। यानी बरसों पहले प्लेग हुई तो गांव के गांव उसकी चपेट में आ गये। तब लगता था ऐसी बातें तो गुज़रे जमाने की हैं। और तब स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं भी आज के मुकाबले बहुत कम थीं। लेकिन यह एक बार फि‍र हुआ और महामारी ने चुपके से आकर हमारे जीवन में सेंध लगा दी।

रमा शर्मा की बड़ी बहन शशि पाधा। चित्र: शशि पाधा

आज मैं विश्व की बात नहीं अपने घर की बात आपके साथ साझा कर ही हूं। फरवरी महीने के आस-पास हम लोग खबरें सुन–पढ़ रहे थे कि चीन के वुहान प्रान्त में लाखों लोग किसी ‘कोरोना वायरस’ के शिकार हो कर अपनी जान गंवा रहे हैं। फिर इटली, स्पेन, इंग्लैण्ड से भी ऐसी खबरें आने लगी। अभी तक अमेरिका में कोरोना ने अपने पंजे नहीं फैलाए थे। तब किसको पता था कि यह वायरस किसी देश, जाति या आयु से अनुमति लेकर आक्रमण नहीं करेगा। वो तो चुपचाप दबोच लेगा। और वही हुआ हमारे साथ भी।

भ्रामक स्थिति

मेरी छोटी बहन रमा शर्मा को फरबरी महीने के अंत में बुखार हुआ तो डाक्टर ने ‘फ्लू’ मान कर उनका इलाज किया। 14 -15 मार्च को फिर बुखार तेज़ हो गया, साथ में सांस लेने में तकलीफ होने लगी। मुंह का स्वाद ही अजीब सा हो गया। तब तक अमेरिका में भी कोरोना वायरस के दो चार केस शुरू गये थे। उसने भी कोरोना वायरस का टेस्ट कराया और उसके रिज़ल्ट की प्रतीक्षा करती रही।

क्यूंकि टेस्ट का रिज़ल्ट नहीं आया था तो डाक्टर उसे निमोनिया का इलाज ही देते रहे।
मार्च 20 को टेस्ट का रिज़ल्ट नेगेटिव आया, लेकिन अब तक रमा का बुखार नहीं गया। खाया पिया भी बाहर, शरीर एकदम शिथिल हो गया। संक्रमण के भय से हम सब उससे मिल नहीं सकते थे और वो अपने घर में नितांत अकेली थी। आखिर मेरे डॉक्टर बेटे की सलाह मान कर वो हास्पिटल पहुंच गईं। शायद हम सब के लिए यही एक निर्णायक घड़ी थी।

कोविड-19 से लड़ाई और चिकित्सा

यहां से शुरू हुई उसकी कोविड-19 से लम्बी लड़ाई। टेस्ट नेगेटिव आने के बावजूद सीटी स्कैन ने बता दिया कि फेफड़े पूरी तरह से संक्रमित हो गए हैं। यहां मैं बता दूं कि कोविड-19 के लक्षण निमोनिया से मिलते-जुलते हैं। लेकिन फेफड़ों के स्कैन और श्वास लेने की आवाज़ से ही दोनों में अंतर दिखाई देता है। नेगेटिव रिपोर्ट के होते हुए भी उन्हें इन्हीं लक्षणों से कोविड-19 का मरीज़ मान लिया गया।

रमा शर्मा और शशि पाधा। चित्र: शशि पाधा

कहानी आगे सुनाने से पहले मैं यह बता दूं कि अमेरिका में जॉन्‍स हॉपकिन्स हॉस्पिटल (Johns Hopkins Hospital) पूरे यूएस में योग्य चिकित्सकों के लिए मशहूर है। वहीं पर कोविड के वार्ड में उन्हें शिफ्ट किया गया। यहां के हॉस्पिटल में भारत के हास्पिटल जैसे वार्ड नहीं होते। हर एक रोगी को कमरा दिया जाता है। सौभाग्य से इस हॉस्पिटल में अभी कोविड-19 के ज़्यादा रोगी नहीं थे। रमा का कमरा दो गलियारे और एक कमरा लांघ कर था। ऐसा शायद संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए ही था।

रमा के अनुसार जो नर्स उनकी सहायता के लिए आती वो पूरी तरह से PPE Kit में होती। उसके बावजूद भी उनके मुंह पर एक स्क्रीन (face shield) लगा होता था। कमरे के दरवाज़े पर ही सैनिटाइज़र का बड़ा सा जार टंगा रहता था। कोविड-19 के लिए कोई दवाई तो थी ही नहीं, उन्हें बस बुखार को कम करने के लिए दवाई दी जाती थी। सांस लेने में कठिनाई होने पर उसी समय ऑक्सीजन लगा दी जाती थी।

प्रार्थना में जुड़े हाथ

परिवार में हम सब के लिए यह समय बहुत ही कठिनाई का था। हम उससे बात नहीं कर सकते थे, न मिलने जा सकते थे । हम सब ने मिल कर एक what’s app ग्रुप बनाया ताकि हम आपस में बात करें। दो दिन के बाद डॉक्टर ने थोड़ी तसल्ली दी कि उनकी हालत में थोड़ा सुधार हो रहा है। इस बीच केवल रमा की नर्स ही परिवार के किसी एक सदस्य से बात करके सब हाल बताती थी। बाकी परिवार या बाहर की दुनिया से रमा का और कोई तार नहीं जुड़ा था।

रमा का शरीर इतना शिथिल हो गया था कि जब पहली बार नर्स ने उसे खड़ा करने की कोशिश की तो रमा को लगा कि उसका शरीर हवा में उड़ते हुए सूखे पत्ते के समान लहरा रहा था। अपने अंगों पर उसका जैसे कोई कंट्रोल नहीं था। सांस लेना बहुत कठिन था। बार-बार नर्स ऑक्सीजन ट्यूब से इस तकलीफ को कम कर रही थी। पोषण के लिए भी केवल तरल पदार्थ ट्यूब से दिए जा रहे थे। हम परिवार के लोग घर बैठे प्रभु से केवल प्रार्थना कर सकते थे। रमा के कष्ट को तो बांट नहीं सकते थे।

 

रमा घर पर अकेली थीं और हम उनके लिए सिर्फ प्रार्थना कर सकते थे। चित्र: शशि पाधा

आखिर हॉस्पिटल के कुशल डॉक्टरों और नर्सों के पूरे सेवा भाव और चिकित्सा की कुशलता का प्रभाव हुआ और दस दिन तक हॉस्पिटल में रहने के बाद रमा को छुट्टी दे दी गई। इसलिए नहीं कि वो पूरी तरह ठीक थी। इसलिए कि तब तक कोरोना इतना फ़ैल चुका था कि हॉस्पिटल में बेड की कमी होने लगी। जिन रोगियों में कुछ सुधार हुआ, उन्हें घर भेज दिया गया था।

जिस दिन रमा घर आई उस दिन पूरे परिवार ने एक साथ पूजा की, दीपक जलाए और भगवान को धन्यवाद दिया। हमारा परिवार विश्व के विभिन्न देशों में रहता है। अत: एक समय निश्चित करके एक साथ पूजा की। यह हमारे लिए मानसिक शान्ति का पल था।

कोविड-19 के बाद पुनर्वास की कठिनाइयां

यहां से शरू हुई इस भयंकर बीमारी से दूसरी लड़ाई। रमा कोविड-19 की रोगी थी, परिवार का कोई सदस्य उनकी देखभाल के लिए उनके घर नहीं रह सकता था। क्यूंकि मेरा बेटा डाक्टर है और उसके पास PPE Kit थी, केवल वही उनके साथ उनके घर तक जा पाया।

हॉस्पिटल ने उन्हें घर तो भेज दिया, लेकिन उन के हालात पर पूरी निगरानी रखी। दिन में एक बार एक नर्स/ फिजियोथेरेपिस्ट घर पर आकर उनकी शारीरिक–मानसिक स्थिति के विषय में देख रेख करती थी। रमा शुरू में बिना सहारे के चल नहीं सकती थी। नर्स ने उसे हाथो-पांव की सहायता से सीढ़ियां चढ़ना सिखाया। नर्स उससे कसरत करवाती थी ताकि रक्त में थक्‍के (clots) न जमने लगें। बिस्तर के साथ ही ऑक्सीजन का सिलेंडर आदि रख दिया गया था।

लैपटॉप की सहायता से डॉक्‍टर दिन में दो बार उनसे बात करता था। ताकि वो रमा की मानसिक स्थिति को भी जान सकें।

हम सब के लिए सब से दुखदायी बात यह थी कि हम 14 दिन तक उसके पास जा नहीं सकते थे। कुछ मित्र आकर फल/भोजन आदि दरवाज़े पर छोड़ जाते थे, लेकिन घर के अन्दर कोई नहीं आता था। ऐसे कड़े नियमों के कारण ही पड़ोसी, मित्र या परिवार के सदस्य संक्रमित होने से बच पाये।
धीरे-धीरे रमा के शरीर में खोयी शक्ति वापिस आ गई।

प्रभु की कृपा से रमा अब कोविड मुक्त है। उसने अपने आप को Johns Hopkins में होने वाले कोविड-19 के अध्ययन कार्यक्रम में नामांकित कर दिया है। वो कुछ ही दिनों में अपने शरीर से प्लाज्‍़मा का अंश भी दे देगी ताकि अन्य रोगियों के ठीक होने में इसका उपयोग हो सके।

अंत में मैं यही कहूंगी कि कोरोना एक वायरस है, इससे लड़ा जा सकता है, इसे दूर भगाया जा सकता है। इसके लिए के सही उपचार के साथ मनोबल, जीने की इच्छा शक्ति और सोशल डिस्टेंस के नियमों का पालन करना अत्यावश्यक है। स्वस्थ रहिये, सुरक्षित रहिये।

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