बर्थोलिन सिस्ट (Bartholin cyst) महिलाओं में होनी वाली एक आम परंतु दर्दनाक समस्या है। यह वेजाइना (Intimate area) के पास एक गांठ जैसी बन जाती है। जिसके कारण उन्हें सेक्स के दौरान काफी दर्द होता है। अगर यह पक जाए तो चलने-फिरने में भी परेशानी हो सकती है। आज हम आपको मिलवा रहे हैं एक ऐसी लड़की (Shubha Mishra Kanak) से, जिसने बर्थोलिन सिस्ट के साथ रहने की बजाए उसका उपचार करवाना और खुलकर बात करने का फैसला किया।
शुभा मिश्रा कनक (Shubha Mishra Kanak) रायपुर (छत्तीसगढ़) में रहती हैं और न्यूज रीडर हैं। वे आकाशवाणी पर समाचार पढ़ने के साथ ही मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। जिसमें उन्हें लंबी यात्राएं करनी होती हैं और घंटों खड़े रहना पड़ता है। हालांकि वे इस सब को बहुत अच्छे से मैनेज करती हैं। उनके चेहरे पर हरदम खिली रहने वाली मुस्कान ही इसकी पहचान है।
यह पिछले साल क्रिसमस की बात है, जब शुभा चर्च में प्रार्थना कर रहीं थीं कि अचानक उन्हें बहुत तेज दर्द का अहसास हुआ। यह दर्द इतना तेज था कि उनके लिए हिल पाना भी मुश्किल हो रहा था। खैर, उन्होंने खुद को मैनेज किया और घर लौटीं। शुभा अब तक यह समझ नहीं पा रहीं थी कि उन्हें पेट के निचले हिस्से में इंटीमेट एरिया में दर्द क्यों हो रहा है। उन्हें ये पीरियड्स के संकेत लगे और उन्होंने पेन किलर लेने का फैसला किया।
पर दर्द इतना खतरनाक था कि एक दिन में चार पेन किलर लेने के बाद भी यह शांत नहीं हुआ। वे तब और भी परेशान हो गईं जब पीरियड्स नहीं आए। असल में यह उनके पीरियड्स का टाइम भी नहीं था। फिर भी दर्द की तीव्रता ने पहले उन्हें यही संकेत दिया। दर्द जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो उन्होंंने डॉक्टर को दिखाने का फैसला किया।
डॉक्टर ने टेस्ट के बाद बताया कि उन्हें बर्थोलिन सिस्ट है। और यह पक गया है, इसलिए इसका तत्काल उपचार जरूरी है। यह शुभा के लिए एकदम नई जानकारी थी। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि हर 10 में से 2 महिलाओं को यह समस्या होती है। पर वे इस पर बात नहीं करती और अंदर ही अंदर तकलीफ सहती रहती हैं।
बर्थोलिन ग्लैंड्स योनि के द्वार के दोनों ओर होती हैं। ये ग्लैंड्स लगातार ऐसे द्रव्य का निर्माण करती हैं, जो वेजाइना में प्राकृतिक रूप से नमी बनाए रखता है। पर जब यह द्रव्य वेजाइना तक स्रावित नहीं हो पाता, तो यह ग्लैंड्स में ही इकट्ठा होने लगता है। और एक गांठ अथवा फोड़ा जैसा बन जाता है। इसी को बर्थोलिन सिस्ट कहा जाता है।
हालांकि ये सिस्ट किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती। न ही इनसे कैंसर होने का कोई जोखिम होता है। पर जब ये पक जाती हैं तो काफी तकलीफदेह होती हैं। जिससे उठने, बैठने और चलने-फिरने में भी परेशानी होने लगती है। जैसा शुभा के साथ हुआ, उनका सिस्ट पक चुका था। इससे पहले उन्हें इसके होने का पता ही नहीं चला।
डॉक्टर ने तुरंत उपचार करके सिस्ट से लिक्विड बाहर निकाल दिया। ताकि वह तकलीफ न करे। इसके बाद शुभा मिश्रा अपने काम में व्यस्त हो गईं और इस सिस्ट की तरफ उनका ध्यान ही नहीं गया। इसी बीच उनकी शादी भी हुई। तब यह सिस्ट उन्हें फिर से परेशान करने लगा।
शुभा बताती हैं, “इसने मेरा चलना-फिरना ही नहीं हमारी इंटीमेट रिलेशनशिप को भी प्रभावित किया। हर बार सेक्स इतना दर्दनाक होता था कि मैं इसके नाम से ही घबराने लगी थी। फिर मैंने दोबारा डॉक्टर से संपर्क किया। और उन्होंने मुझे इसकी सर्जरी करवाने की सलाह दी।”
बर्थोलिन सिस्ट की पहचान जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी है इसका सही उपचार। पिछली बार जानकारी के अभाव और संकोच में शुभा ने इसका ठीक से उपचार नहीं करवाया। जिसकी वजह से यह दोबारा लौट आया। इस बार रायपुर के आशीर्वाद हॉस्पिटल में स्त्री रोग एवं प्रसूति विशेषज्ञ डॉक्टर नलिनी मढ़रिया ने उन्हें बताया कि इसकी सर्जरी जरूरी है। ताकि उस झिल्ली को निकाला जा सके, जिसमें बार-बार लिक्विड इकट्ठा हो रहा है।
बर्थोलिन सिस्ट का उपचार करवाने से डरने वाली ज्यादातर महिलाओं की ही तरह शुभा के मन में भी यह प्रश्न था कि कहीं इससे मां बनने में तो कोई दिक्कत तो नहीं आएगी? इस पर डॉक्टर नलिनी ने उन्हें आश्वस्त किया कि यह गर्भाशय को बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचाती। इसलिए इससे डरने की बिल्कुल जरूरत नहीं है।
हालांकि सिस्ट अगर संक्रमित नहीं है, तो इसमें सर्जरी की जरूरत नहीं होती। कुछ दवाओं और जेल के इस्तेमाल से भी इसमें आराम आ सकता है। पर शुभा के केस में यह काफी दर्दनाक थी और दोबारा लौट आई थी। इसलिए शुभा ने मुस्कुराते हुए इस सर्जरी का सामना करने का फैसला किया।
वे कहती हैं, “यह पहली बार है जब मुझे हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा, पर यह मेरी बेहतरी के लिए है। इसलिए मैंने सर्जरी करवाने का फैसला किया। मुझे खुशी है कि मेरे पति इस दौरान बिल्कुल मेरे साथ रहे।”
वे आगे कहती हैं,“इंटीमेट हेल्थ पर महिलाएं बात करने से कतराती हैं। वे शर्म और संकोच के कारण बेवजह तकलीफ से घिरी रहती हैं। मैंने जब अपने आसपास इस पर बात की तो पाया कि 50 से ज्यादा महिलाएं ऐसी थीं, जो इस तकलीफ से गुजर रहीं थीं पर बात नहीं कर पातीं। इसलिए मैंने तय किया है कि मैं इस पर लगातार बात करूंगी। यह भी किसी अन्य बीमारी की तरह एक छोटी सी समस्या है। इस पर चुप रहकर इसे गंभीर बनाने की क्या जरूरत है।”