“म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के?” हरियाणवी में कहा गया ये एक वाक्य बेटियों की क्षमता और बरसों से उनके साथ होते आ रहे भेदभाव को एक साथ बयां कर देता है। खासतौर से हरियाणा, जो खाप पंचायतों और लैंगिक असमानता के लिए लंबे समय तक बदनाम रहा, उसकी छवि अगर किसी ने बदली, तो वहां की लड़कियों ने। हरियाणा के झज्जर की रहने वाली ऐसी ही एक बेटी है मनु भाकर। एयर गन शूटिंग में कई गोल्ड मेडल जीत चुकी मनु भाकर को 2020 में खेलों में अपने श्रेष्ठतम प्रदर्शन के लिए अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। हेल्थ शॉट्स के साथ इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में आइए जानते हैं मनु भाकर (Airgun shooter Manu Bhaker) की ताकत, उनके सपने और अब तक के सफर के बारे में।
हरियाणा, जिसे बॉक्सिंग, कुश्ती और कबड्डी जैसे पाॅवर गेम्स के लिए जाना जाता है, वहां मनु भाकर ने एयर गन शूटिंग में एक अलग पहचान बनाई है। मनु कम बोलती हैं पर मजबूती से अपनी बात रखती हैं। वे मानती हैं कि कॉन्टेक्ट स्पोर्ट्स से अलग हटकर सौ फीसदी फोकस की मांग करने वाले इस खेल के साथ सामंजस्य बैठाना मुश्किल तो था, पर बड़ सपने पूरे करने हों, तो मुश्किलों के लिए तैयार रहना चाहिए। वे मानती हैं कि अगर लड़कियों को सपने देखने से न रोका जाए, तो वे बहुत कुछ हासिल कर सकती हैं।
मूलत: हरियाणा के झज्जर की रहने वाली मनु अपने बारे में बात करते हुए बताती हैं, “मनु भाकर एक पावर एथलीट हैं। जाे बड़े सपने देखती है और मानसिक रूप से उतनी ही मजबूत और मेहनती भी है। एक पिस्टल शूटर के तौर पर मैंने अलग-अलग प्रतिस्पर्द्धाओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। मैं 2020 टोक्यो ओलंपिक का भी हिस्सा रही हूं, जहां मुझे 7वां स्थान मिला था। मैं बीस साल की हूं और पिछले 7 साल से एयर गन शूटिंग कर रही हूं।
बचपन से ही मनु को खेलों में रुचि रही है। अलग-अलग खेलों में भागीदारी करने के बाद अब उन्होंने पिस्टल शूटिंग को अपना क्षेत्र बनाया है और पिछले 7 वर्ष से पिस्टल शूटिंग की अलग-अलग प्रतिस्पर्द्धाओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहीं हैं। 2018 की कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था। एशियन चैंपियनशिप और कई वर्ल्ड कप प्रतिस्पर्द्धाओं में भी हिस्सा लिया है।
बचपन से ही उन्हें अलग-अलग खेलों में भाग लेने में रूचि थी। हालांकि शुरुआत उन्होंने भी हरियाणा में सबसे ज्यादा प्रचलित खेल बॉक्सिंग से की। पर यहां उनका मन ज्यादा नहीं लगा। मनु बताती हैं, “मुझे बचपन से ही कॉन्टेक्स स्पोर्ट्स बहुत पसंद था। जैसे बॉक्सिंग, कराटे आदि। शुरुआत मैंने बॉक्सिंग से ही की थी। उसके बाद कराटे की तरफ रुझान हुआ। कोई भी नया खेल जो मुझे समझ में आता था, मैं उसे ट्राई जरूर करती थी। मैंने कबड्डी भी खेला कुछ दिन, बॉस्केट बॉल, खोखो, लॉन टेनिस, दसवीं क्लास तक हर खेल में हिस्सा लिया।
उसके बाद मैंने स्कूल में शूटिंग रेंज देखी। तब मन किया, क्यों न शूटिंग भी ट्राई की जाए। कुछ महीने इसे देखा, सीखा और हिस्सा लिया तो काफी मजा आया।”
यकीनन यह कॉन्टेक्ट स्पोर्ट्स से काफी अलग है। इसमें आपको न आक्रामकता दिखानी है, न अपना कोई एक्सप्रेशन देना है। बस शांति से, कूल होकर अपना काम करना है। धीरे-धीरे मैंने इसके अनुसार खुद को ढाल लिया है। शूटिंग में आगे बढ़ने की मेरी इच्छा इसलिए भी ज्यादा हुई, क्योंकि यहां किसी तरह का भेदभाव नहीं है। किसी भी जेंडर, किसी भी उम्र का व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के इसमें आगे बढ़ सकता है। इसी ने मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित किया।
मैं उस समय मात्र 16 साल की थी, जब मैंने कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लिया और सीनियर कैटेगरी में गोल्ड जीता। यहां उम्र की कोई बाधा नहीं है। कोई भी व्यक्ति इसमें हिस्सा ले सकता है। इस समय भी मैं वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने कायरो आई हूं।”
अगर मैं बॉक्सिंग, कराटे और कबड्डी वगैरह की बात करूं, तो हां यहां सेक्सिज़्म है थोड़ा सा, जेंडर के आधार पर भी भेदभाव होता है। मगर शूटिंग में ऐसा नहीं है, हम सभी एक टीम की तरह इसमें हिस्सा लेते हैं। न कभी किसी व्यक्ति की तरफ से और न ही फेडरेशन की तरफ से मुझे कभी इस तरह के किसी भेदभाव का सामना करना पड़ा।
हां थोड़ा सा मुश्किल होता है। पहले हम अपनी न्यूट्रीशनिस्ट के साथ मिलकर मेंस्ट्रुअल साइकल प्लान करते थे। ताकि कॉम्पीटिशन के वक्त किसी तरह के क्रैम्प्स या मूड स्विंग का सामना न करना पड़े। कभी-कभी पिल्स भी लिया करते थे। पर अब हम इसके साथ आगे बढ़ते हैं और अपने आप को बेहतर तरीके से संभालना सीख गए हैं।
चुनौतियां तो हैं, कभी-कभी हमारे साथ फीमेल कोच नहीं होतीं। कभी आपका मेंटल लेवल उस तरह का नहीं होता कि आप पूरी तरह फोकस कर पाएं। पर अब लगता है कि हर महीने यह होना ही है। हम हर महीने किसी न किसी प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे होते हैं। इस तरह धीरे-धीरे मैंने भी अपने आप को संभालना सीख लिया है।
शूटिंग में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष मानसिक स्वास्थ्य है। क्योंकि आप हर कॉम्पीटिशन नहीं जीत सकते। कभी जीतते हैं, तो कभी हारते भी हैं। शूटिंग में मानसिक स्वास्थ्य दोहरी भूमिका निभाता है। यह आपकी मेंटल हेल्थ को बेहतर बनाने में भी आपकी मदद करता है। क्योंकि इसमें फोकस की इतनी ज्यादा जरूरत होती है कि कुछ और आपके दिमाग में आएगा ही नहीं।
आप किसी भी क्षेत्र में तभी आगे बढ़ सकते हैं, जब आप मानसिक रूप से स्वस्थ और एकाग्रचित हों। हमें सिर्फ जीत ही नहीं, बल्कि हार को डील करना भी आना चाहिए।
लड़कियों के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल होता है उनका भावनात्मक स्वास्थ्य। लड़कियां कहीं भी बहुत जल्दी इमोशनली इनवॉल्व हो जाती हैं। अपने दिमाग में बहुत सारी चीजें इकट्ठा कर लेती हैं, जो काफी अनहेल्दी और टॉक्सिक हो सकता है। आपकी परफॉर्मेँस हार, जीत और कभी-कभी बहुत साधारण भी रह सकती है। इसलिए अपने आप को भावनात्मक रूप से मजबूत रखना जरूरी है। इमोशनली डिटैच होकर अपना काम करना हमेशा काम आता है।
हां, ये सच है। अब भी बहुत सारे लोग शूटिंग के बारे में नहीं जानते। मैं जब भी ट्रैक सूट पहनकर निकलती हूं, तो लोग अकसर पूछते हैं कि आप कौन सा गेम खेलती हैं। मैं जब उन्हें बताती हूं कि मैं शूटिंग करती हूं, तो ज्यादातर ऐसा मानते हैं कि ये कोई फिल्म की या वीडियो शूटिंग होगी। अब भी बहुत कम लोग एयर गन शूटिंग के बारे में जानते हैं। जबकि यह भारत का सबसे तेजी से बढ़ता खेल है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसमें आना चाहिए।
कुछ लोगों की समझ तो बिल्कुल आला दर्जे की होती है, उन्हें लगता है कि इसमें बस खड़े होकर गोली चलानी है और यह बहुत आसान है। जिन्हें ऐसा लगता है, उन्हें भी एक बार पिस्टल शूटिंग जरूर ट्राई करनी चाहिए। वास्तव में आसान कुछ भी नहीं होता। हर खेल आपका पूरा ध्यान और समर्पण मांगता है।
शूटिंग एक महंगा गेम है, इसमें बहुत सारे संसाधनों की जरूरत होती है। जब परिवार का सपोर्ट होता है, तब आप बिना किसी मानसिक तनाव के आगे बढ़ते हैं। मैं सौभाग्यशाली हूं कि मेरे माता-पिता दोनों ने ही मुझे बहुत सपोर्ट किया। बॉक्सिंग से लेकर यहां शूटिंग तक वे मेरे हर फैसले में न केवल मेरे साथ रहे, बल्कि मुझे आगे बढ़ते रहने के लिए सहयोग भी दिया।
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, आपको बैलेंस करने की जरूरत है। दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से मैंने राजनीतिक विज्ञान के साथ ग्रेजुएशन की है। अब मैं डीएवी कॉलेज चंडीगढ़, पंजाब यूनिवर्सिटी से लोक प्रशासन में एमए कर रही हूं। मुझे नहीं लगता कि खेल का अर्थ पढ़ाई को अलविदा कह देना है। बल्कि मैं तो जब तक संभव होगा, आगे पढ़ना चाहूंगी। इसके बाद मैं किसी अच्छे कॉलेज से बिजनेस स्टडीज में भी डिग्री लेना चाहूंगी। उम्मीद है कि मेरा यह सपना भी पूरा होगा।
अपनी युवा साथियों, नई सदी की लड़कियों के लिए मैं यही कहना चाहूंगी कि कम पर राजी मत होइये। बड़े सपने देखिए और उन सपनों को पूरा करने के लिए तैयार रहिए। हर सपना आपका पूरा ध्यान और समर्पण चाहता है।
वहीं पेरेंट्स के लिए मैं यह सुझाव देना चाहूंगी कि अपनी बेटियों को रोकिये मत। उनसे सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हक मत छीनिये। वे जो करना चाहती हैं, बस उसमें उनके साथ खड़े रहिये।
(मनु भाकर को हेल्थ शॉट्स शी स्लेज अवॉर्ड्स की स्पोर्ट्स चैंपियन कैटेगरी में नामित किया गया है। उन्हें वोट करने और उनके जैसी और भी प्रेरक स्त्रियों के बारे में और जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- शी स्लेज अवॉर्ड्स )
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