बच्चे, युवा या बूढ़े, खेल को किसी भी राष्ट्र के ‘दिल की धड़कन’ कहा जा सकता है। हम भारतीयों के लिए पिछले कुछ महीने काफी रोमांचक रहे हैं। आखिरकार, वैश्विक स्तर पर हमने जो सम्मान हासिल किया है, वह सराहनीय है। लेकिन बहुत से लोग यह नहीं समझते कि एथलेटिक ट्रेनिंग का मतलब केवल शारीरिक ट्रेनिंग से नहीं होता। ट्रेनिंग का फोकस चोट कम लगने और जख्मी मांसपेशियों को ठीक करने में होना चाहिए।
दुर्भाग्य से, केवल कुछ मुट्ठी भर लोग हैं जो इन महत्वपूर्ण पहलुओं को समझते हैं। पूर्व टेनिस खिलाड़ी और स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपिस्ट परिधि ओझा उनमें से एक हैं। खेल परिधि की रगों में दौड़ता है। कुछ साल पहले घुटने में चोट लगने के कारण वे प्रोफेशनल टेनिस में आगे नहीं बढ़ पाईं, परंतु इस घटना से उन्होंने अपने सपने को पूरा करना नहीं छोड़ा।
हेल्थ शॉट्स के साथ बातचीत में ओझा ने खेल के प्रति अपने शुरुआती रुझान के बारे में बताया। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि एथलीटों के लिए चोट को रोकना क्यों जरूरी है और कैसे मानसिक स्वास्थ्य किसी भी खेल करियर का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
ओझा बताती है कि उन्होंने छोटी उम्र में स्केटिंग शुरू किया था क्योंकि यह उनके स्कूल में अनिवार्य रूप से सिखया जाता था। वह शुरू से ही कई खेलों से परिचित थी जिसके कारण उनकी रुचि बढ़ने लगी। उस समय उनके माता-पिता का उन पर प्रभाव था। हालांकि उन्होंने कम उम्र में अपने पिता को खो दिया था, लेकिन उनकी मां हमेशा उनका संबल बनी रहीं। वह स्वयं एक राष्ट्रीय स्तर की बैडमिंटन खिलाड़ी थी।
ओझा कहती है, “मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं किसी शारीरिक गतिविधि में शामिल हूं, जहां मैं अपनी ऊर्जा को चैनलाइज (channelise) कर सकूं और साथ ही अपनी पर्सनैलिटी (personality) को निखार पाऊं। इसलिए, मैंने स्केटिंग को चुना और राष्ट्रीय स्तर पर भी किया।
पर एक समय के बाद, स्कूल में स्केटिंग उपलब्ध नहीं थी। हमें एक व्यक्तिगत खेल चुनना था, जिसे बाद में प्रोफेशनल रूप से खेल सके। मैंने टेनिस चुना क्योंकि शुरुआत से मुझे उसमें रुचि थी।”
ओझा ने टेनिस खेलना शुरू किया और सीखने के लिए एक अकादमी में भर्ती हो गईं। एक साल के भीतर, वे अपने खेल में बेहतर होती जा रही थी। वह स्कूल टीम का हिस्सा बन गई, और दुनिया भर के टूर्नामेंटों में भाग लेने लगीं।
उनका कद और कौशल दोनों उनके लिए फायदेमंद थे। उन्हें सफलता मिल रही थी, परंतु यह आसान नहीं था!
अपने अनुभव बताते हुए परिधि कहती हैं,“ एक छात्र होने के कारण हर समय फ्री रहना संभव नहीं था। साथ ही यह खेल बहुत महंगा भी था। कई संघर्ष हुए, क्योंकि हर टूर्नामेंट में जाने का मतलब है कि आपको बहुत सारा पैसा खर्च करना होगा, और उस समय मेरे पास कोई स्पॉन्सरशिप (sponsorship) नहीं थी।
चार साल से मैं घर से पढ़ाई कर रही थी। मुझे स्पॉन्सरशिप तब मिली जब मैं दिल्ली राज्य टीम का हिस्सा थी और मैंने स्वर्ण पदक जीता। लेकिन मेरी मां इस पूरे सफर में हर तरह से मेरे साथ थीं।”
10वीं कक्षा में ही ओझा को घुटने में भारी चोट लग गई थी, और दुर्भाग्य से, कोई भी स्पोर्ट्स डॉक्टर नहीं था जो उनकी स्थिति समझ सके। उनमें से अधिकांश ने सुझाव दिया कि सर्जरी ही एकमात्र समाधान है, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं थी।
ओझा कहती है, “मुझे यह समझने में सात महीने लग गए कि चोट को ठीक करने में कुछ समय लगेगा। यह ज्यादा खेलने के कारण था क्योंकि मैंने एक वर्ष में 36 टूर्नामेंट खेले थे। यह किसी भी एथलीट के लिए बहुत ज्यादा है। सौभाग्य से, योनेक्स (Yonex) मेरे स्पॉन्सर थे , और वे धैर्यवान थे। लेकिन मेरा शरीर पहले जैसा नहीं था। मैं मूल रूप से 70% ही खेल पाती थी। मैं खुद को प्रोफेशनल टेनिस खेलने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रही थी।”
एक एथलीट के लिए शारीरिक एवं मानसिक दोनों ट्रेनिंग जरूरी हैं। टोक्यो ओलंपिक 2020 के दौरान सिमोन बाइल्स (Simone Biles) के इस बयान को मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिलीं। मगर इसने खेल के क्षेत्र में नए पहलुओं को सामने रखा। इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य से अलग नहीं किया जाना चाहिए।
व्यक्तिगत रूप से कठिनाइयों का सामना करने वाली ओझा का मानना है कि जागरूकता जरूरी है। और यह ट्रेनिंग का हिस्सा होनी चाहिए।
ओझा ने निष्कर्ष निकाला कि, “एथलीटों में चिंता के कई कारण हो सकते है। कभी-कभी जब आप तैयार नहीं होते हैं या दबाव में होते हैं। कोई कैसा प्रदर्शन करने जा रहा है, इस पर बहुत दबाव होता है। हालांकि आज चीजें अधिक नॉर्मल है। फिर भी जागरूकता की आवश्यकता है। एथलीटों के पास अपने मनोवैज्ञानिकों के साथ हर चीज पर चर्चा करने के लिए गुंजाइश होनी चाहिए। बजाय इसके कि इसे केवल ब्रेकिंग पॉइंट (breaking point) पर किया जाए। यह वास्तव में उनके खेल में भी उनकी मदद करेगा। ”
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