आत्महत्या के ख्यालों से लड़ने के बाद इस पीएचडी छात्रा ने शुरू किया अपना मानसिक स्वास्थ्य इनिशिएटिव

मिलिए आयुषी खेमका से, जो अपने मानसिक समस्याओं और उनसे लड़ने के लम्बे सफर को हमसे साझा करेंगी।
जानिए अवसाद से जीतने वाली इस लड़की की कहानी।
टीम हेल्‍थ शॉट्स Published: 14 Aug 2020, 12:00 pm IST
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मेरा नाम आयुषी खेमका है और मैं 26 वर्ष की हूं। मैं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रही हूं।अब मैं मेन्टल हेल्थ टॉक्स इंडिया नामक एक मानसिक स्वास्थ्य सहयोग प्रोग्राम चलाती हूं।

मैंने एम-फिल 2016-17 में महिला शिक्षा प्रोग्राम विषय से किया है, जिस दौरान मैं एक सेक्सुअल असाल्ट का केस स्टडी कर रही थी। उन असाल्ट के चित्रण से मुझे खुद पर बीती परिस्थिति याद आती थी इसलिए मेरे प्रोफेसर ने मुझे थेरेपी लेने का सुझाव दिया।

जब पहली बार मुझे खुदकुशी करने का ख्याल आया

मेरी थेरेपी के दौरान मेरे ग्रेड्स और मार्क्स लगातार कम होने लगे। मुझे अवसाद के लक्षण दिखने लगे थे। मैं सोचती थी कि पढ़ाई मेरे लिए नहीं बनी है, मैंने अपने भविष्य के लिए गलत निर्णय लिया है और मैं कभी भी एकेडमिक्स में कैरियर नहीं बना पाऊंगी। एक बार अपने नेट के एग्जाम के लिए मैं अपना आईडी कार्ड ले जाना भूल गयी जिसके कारण मैं एग्जाम नहीं दे पाई। इस हादसे के बाद मैं और डिप्रेस हो गई।

मैंने कुछ दोस्तों को फ़ोन किया और उनकी आवाज सुनकर मुझे थोड़ा बेहतर लगा।
मैंने खुद को समझाया कि मैं अभी मरना नहीं चाहती हूं, मैं अपने लिए कुछ करना चाहती हूं। मैंने अपने थेरेपिस्ट के अलावा भी लोगों से बात करनी शुरू की लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा था। मैं हर कदम के साथ आत्महत्या की ओर ही बढ़ती जा रही थी।

Ayushi Khemka

डिप्रेशन के साथ जीना सीखा

जब मेरे मन में खुदकुशी के विचार आने लगे तो मैं साइकेट्रिस्ट के पास गई। मैंने किसी को बताया नहीं कि मैं साइकेट्रिस्ट से मिलती हूं, क्योंकि मेरे दिमाग में कई रूढ़िवादी विचारों ने घर कर लिया था।

मैं अपने थेरेपिस्ट के पास जाती रही और दवा भी लेती रही। मुझे फायदा दिखने लगा।
एक दिन मैंने अपने साइकेट्रिस्ट से पूछा कि क्या डिप्रेशन कभी ठीक होता है? उन्होंने बताया कि डिप्रेशन डायबिटीज या हाइपरटेंशन की तरह होता है। यह खत्म नहीं होता, नियंत्रित होता है। और वक्त के साथ इंसान इसके साथ जीना सीख जाता है।

आयुषी खेमका

औरों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करना

2013 में कॉलेज में मेरी एक जूनियर थी अदिशी, और हम दोनों अच्छे दोस्त थे। मैं मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कुछ काम करना चाहती थी।

11 अप्रैल 2018 में मेरी यूनिवर्सिटी में मेरे साथ सेक्सुअल हरासमेंट हुआ था और तभी मैंने सोच लिया था कि मैं ऐसे लोगों के बीच नहीं रह सकती जो इस विषय की गम्भीरता को ना समझे।

तभी मैंने एक इंस्टाग्राम पेज बनाया जिसपर मैं मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कंटेंट डालने लगी। मई 2018 में अदिशी ने मुझे जॉइन किया। तब से हमने मुड़ कर नहीं देखा है। वह मेंटल हेल्थ टॉक्स इंडिया का पहला कदम था और आज हम एक बड़े मुकाम पर हैं जहां हम लोगों की मदद करते हैं।

सबको अपनाएं और दिल बड़ा रखें

अंत में मैं यही सलाह देना चाहूंगी कि अगर आपको कोई भी समस्या है तो सामने आये और उसपर बात करें। मानसिक समस्याओं से जूझने वाले आप अकेले व्यक्ति नहीं हैं। जो लोग मानसिक रूप से बिल्कुल स्वस्थ हैं, वे दूसरों की मदद करें।

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इसके लिए ज़रूरी है कि लोग सामने आये और जाहिर करें कि वे दूसरों की मदद कर सकते हैं क्योंकि जो पहले ही मानसिक तनाव से गुज़र रहा है उसपर यह दबाव नहीं डाला जा सकता। मैं एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाने का सुझाव देती हूं, जहां बिना डरे बिना झिझके कोई भी व्यक्ति मदद मांगने आ सके।

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