मेरा नाम ईशा चोपड़ा है और मैं एक एक्टर और राइटर हूं। मेरे पेरन्ट्स ने शुरू से ही मुझे स्ट्रांग बनना सिखाया था। वो अक्सर कहते थे कि जीवन मे छोटी-मोटी दिक्कतें आती हैं, लेकिन हमें उनसे डरना नहीं है, जो काम हमें करना है उसे हर हाल में खत्म करना ही है। इसलिए मैं हमेशा यह सोचती थी कि कुछ भी हो मुझे हमेशा स्ट्रॉन्ग रहना है और अपना काम बेस्ट तरीके से करना है।
अपने 20s में मेरी ज़िंदगी मे इतना कुछ चल रहा था कि मैं सम्भल नहीं पा रही थी। लेकिन मैं हमेशा यही सोचती कि रुकना नहीं है। मेरी उम्र के सभी लोग डिस्ट्रैक्ट होते थे या गिव अप कर देते, लेकिन मैं डटी रहती। मुझे लगता था, बाकी सब टूट रहे हैं, लेकिन मैं नहीं टूटूंगी। मगर सच तो यह था कि मैं भी टूट रही थी।
23 साल की उम्र में मुझे स्लिपडिस्क हो गई। मुझे समझ नही आ रहा था कि ऐसा कैसे हुआ, न कोई एक्सीडेंट हुआ, न मैंने एक्स्ट्रा वर्कआउट किया। छह महीने तक मैं बेड रेस्ट पर थी, भयंकर दर्द में। जब मेरा MRI हुआ, तब मुझे पता चला कि मेरे चोट पहले लगी थी, लेकिन रिएक्शन देर से हुआ और अब दर्द हो रहा है। यह खबर बर्दाश्त करना मेरे लिए बहुत मुश्किल था।
मुझे अब भी नही पता था कि मेरे स्लिपडिस्क का कारण क्या है। मुझे असली कारण तब पता चला जब मैंने अपना ध्यान मेडिटेशन में लगाया।
दरसल जब आप जीवन में किसी समस्या पर ध्यान नहीं देते, उसे इग्नोर करते हैं तो वह समस्या आपके अंदर बढ़ती रहती है। यह मुझे तब समझ आया जब मैंने स्पिरिचुअल रास्ता अपनाया। मैंने EFT यानी इमोशनल फ्रीडम टेक्नीक के बारे में जाना। जब हम मेडिटेशन करते हैं तो हम अपने आप के बारे में ज्यादा जान पाते हैं- जैसे हमारे मन में क्या हो रहा है, हमारे शरीर मे क्या चल रहा है, हमारी एनर्जी कैसे फ़्लो हो रही है।
मेरी चोट का असल कारण था कुछ इमोशन्स जिन्हें मैं कैद करने की कोशिश कर रही थी। जब मैंने उन पर फोकस किया, मेरा दर्द कम होने लगा।
लोग अक्सर शिकायत करते हैं कि मैं फोकस नहीं कर पाती, या मैं दिमाग को शांत नहीं कर पाती। लेकिन असल मे तो मेडिटेशन में दिमाग को कंट्रोल किया ही नहीं जाता। यही तो समझना जरूरी है कि हमारे कंट्रोल में कुछ है ही नहीं। जब आप आंख बंद करते हैं, तो दिमाग ब्लैंक नहीं होता, बल्कि आप नॉर्मल से ज्यादा सोचते हैं। आप उन सब बातों पर ध्यान देते हैं जिन पर आप आमतौर पर ध्यान नही देते।
आप अपने विचारों को नियंत्रित करना छोड़ देते हैं, बल्कि आप उन्हें बहने देते हैं। यही मेडिटेशन है। कोई भी विचार एक नाव की तरह आता है और चला जाता है। आप उस विचार के आने पर नियंत्रण नहीं कर सकते। न ही उसका जाना हमारे हाथ में होता है।
जब आप जिम जाते हैं, तो आप एक हफ्ते में 5 किलो घटाने का टारगेट तो नहीं लेते न? तो मेडिटेशन से क्यों उम्मीद करते हैं कि तुरन्त परिणाम मिले। यह भी समय लेता है।
एक और ज़रूरी बात, मेडिटेशन का मतलब ज़मीन पर बैठ कर आंख बंद करके ध्यान लगाना नहीं है। आप खाना बनाते हुए भी मेडिटेट कर सकते हैं, ट्रेन में बैठे हुए भी कर सकते हैं। मैं लिखते हुए मेडिटेशन करती हूं क्योंकि उस वक्त मेरी ऊर्जा सबसे अधिक होती है। आपको सिर्फ अपना नियंत्रण छोड़ना है और विचारों को बहने देना है। बस यही है मेडिटेशन।
हमें सिखाया जाता है कि रोते हुए या हंसते हुए या किसी भी प्राइवेट मूमेंट्स को छुपाओ। सबके सामने मत रोना, या हंसना तो चेहरा छुपाकर। इस तरह हमारे दिमाग में यह डाला जाता है कि जो हम महसूस कर रहे हैं उसे महसूस करना गलत है। हमें अपने विचारों के लिये गिल्टी महसूस करवाई जाती है।
मेंटल हेल्थ के लिए सबसे ज़रूरी है कि हम इन भावनाओं और विचारों को सीरियसली लेना बंद करें। जो अभी मैं सोच रही हूं, वह सिर्फ मेरा एक विचार है, वह मैं नहीं हूं। अभी मैं दुखी महसूस कर रही हूं, लेकिन मैं दुखी नहीं हूं। ये भावनाएं, ये विचार सब गुज़र जाएंगे, बहते पानी की तरह। आप इन विचारों को जितना महत्व देंगे, आप इन्हें उतना ही बढ़ाएंगे।
खुद को बांध के न रखें। आपको स्टील की तरह सॉलिड होने की ज़रूरत नहीं है। खुद को बहने दें, खुलने दें। ब्रह्माण्ड का नियम है बनना और बिगड़ना। यह हमारे हाथ में है ही नहीं। तो इतना परेशान क्यों होना। हील होना है तो अंदर से होना पड़ेगा। आपके विचार, यादें, गलतियां जो भी आपको परेशान कर रहे हैं, उन्हें जाने दीजिए। आप सिर्फ अपने विचार नहीं हैं, आप उस से बढ़कर हैं यह याद रखें।