छोटे शहर की एक लड़की जो लड़ रही है माहवारी के दर्द और पितृसत्ता के खिलाफ लड़ाई

मिलिए 24 वर्षीय प्रियंका गोस्वामी से, जिन्होंने अपनी मेहनत और विश्वास के साथ हर चुनौती का सामना किया। और यह साबित कर दिया कि माहवारी का दर्द किसी लड़की को जीतने से नहीं रोक सकता।
मेरठ की ये लड़की बड़े सपनों को पूरा करने का हौसला रखती है। चित्र: प्रियंका गोस्‍वामी

मेरा नाम प्रियंका गोस्वामी है, 24 साल मेरी उम्र है और 20 किलोमीटर की रेसवॉकर हूं। मेरठ उत्तर प्रदेश की रहने वाली हूं। फिलहाल में बेंगलुरु में रहकर अपनी प्रैक्टिस कर रही हूं। मेरे परिवार वाले हमेशा से ही मेरे इस निर्णय का सहयोग करते रहे हैं। मेरे माता-पिता ने तो हमेशा मुझे मेरे भाई के समान प्यार और सहयोग दिया है। उन्होंने हमेशा खुले दिल से मुझे और मेरे सपनों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

हां, रेसवाॅॅकिंग मेरे लिए बनी है

मैं उस वक्त छठी कक्षा में पढ़ती थी। मेरे स्कूल के जिम्नास्टिक ट्रेनर ने हमारी कक्षा में आकर पूछा, क्या कोई उनकी टीम का हिस्सा बनना चाहेगा? मैंने इसको कबूल कर लिया और उन्हें ज्वाइन कर लिया। यह तब सिर्फ इंजॉय करने के लिए था। सच कहूं तो तब तक मैं नहीं जानती थी कि जिम्‍नास्टिक क्या होता है कैसे होता है।

मैंने इसकी प्रैक्टिस 6 महीने तक जारी रखी, लेकिन किसी कारण वश इसे तब छोड़ दिया। मगर नौंवी कक्षा में आने के बाद मैंने दोबारा से इसे करने का फैसला किया और खुद को एक एथलेटिक के तौर पर दोबारा से खड़ा करने की कोशिश की।

उस समय एक छोटी सी बात जो मुझे याद है! में समझ गई थी कि मेरे इस निर्णय से मेरी पूरी जिंदगी बदल जाने वाली है, मेरी ज़िंदगी में अब कुछ अच्छा होने वाला है। डिस्ट्रिक्ट लेवल कंपटीशन शुरू होने वाला था, वह पूरे एक महीने चलना था। मैंने बहुत मेहनत की अपनी फिटनेस पर, लेकिन जैसे कि जिंदगी तो कुछ और ही चाहती थी, मैं किसी भी कैटेगरी में सलेक्ट नहीं हो पाई।

यह वो समय था जब मेरे कोच ने मुझे सलाह दी कि मुझे वॉकिंग कैटेगरी में जाना चाहिए। मैंने उसे सीखा और इसमें तीसरे दर्जे का मेडल भी जीता। बस इसी तरह मेरा रेसवाकिंग के साथ रिश्ता जुड़ गया। रिश्ता ही क्या यह एक अनोखा खेल है, जो मेरी जिंदगी के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया है।

प्रियंका जानती हैं कि लड़कियों को अपने सपने पूरे करने के लिए ज्‍यादा मेहनत करनी पड़ती है। चित्र: प्रियंका गोस्‍वामी

जिंदगी में बहुत से उतार-चढ़ाव देखे

लगभग भारत के 50% लोग नहीं जानते होंगे के रेसवाकिंग आखिर है क्या? कुछ लोग शायद हंसते होंगे और शायद मजाक भी उड़ाते होंगे कि हमने किस तरह का खेल चुन लिया। पर मैंने इसे हमेशा इंजॉय किया है। बजाय इसके कि मेरे पास कोई खास फैसिलिटी भी नहीं थी। मैं गांव की रहने वाली थी और किसी तरह से मैनेज करके इतनी दूर तक आ गई हूं।

सबसे बड़ी दिक्कत हैं पीरियड

हम किसी को भी इसके बारे में बताते समय घबराते हैं। शर्म महसूस करते हैं, बल्कि हम अपने कोच से भी यह सब डिसकस नहीं करते । हम असहनीय दर्द को बर्दाश्त करते हैं, प्रैक्टिस करते हैं पसीने में भीग जाते हैं हर रोज। लेकिन हम इसका ज़िक्र किसी से भी नहीं करते।

एक बार मैंने राष्ट्रीय स्तर पर इस रेसवाकिंग कंपटीशन में हिस्सा लिया। यह समय मेरे पीरियड का ही था। मुझे असहनीय दर्द हो रहा था। मैं पानी तक भी नहीं पी पा रही थी। जैसे ही मेरी रेस खत्म हुई मैं भागकर अपनी मां के पास गई और वहां जाकर मैं खूब रोई और टूट गई। लेकिन अंत में मुझे उतना बुरा नहीं लगा, क्योंकि मैंने गोल्ड मेडल अपने गले में पहन रखा था।

रेसवाॅॅकिंग ने बदल दी मेरी सोच

एक खिलाड़ी होने के नाते हमें अपनी सोने और खाने की आदतों और बहुत सारी चीजों पर ध्यान रखने की जरूरत होती है। हमें ध्यान रखना होता है अपने खाने की मात्रा और उसकी पौष्टिकता का, ताकि हम अपना सही वजन मेंटेन कर सकें।

मैं एक ऐसी लड़की हूं, जो ना सिर्फ जी तोड़ मेहनत करती है, बल्कि अपने खेल को भी इंजॉय करती है। जिंदगी में और भी बहुत सारी चीजें करना मुझे पसंद है। मुझे अच्छे कपड़े पहनना पसंद है। फोटो खिंचवाना पसंद है और एक आम लड़की की जिंदगी जीना पसंद है। लेकिन पिछले कुछ चार-पांच महीनों से मैं इन सब चीजों को नहीं कर पाती। मैं बाहर नहीं जा सकती या कुछ और भी नहीं कर सकती।

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हर उस चीज़ से सैक्रिफाइस कर रही हूं जो मुझे पसंद है। मैं स्ट्रिक्ट शेड्यूल फॉलो कर रही हूं। अपना बहुत सा वजन कम कर लिया है। बहुत से लोग मुझसे कहते हैं कि अब आप अच्छी नहीं लगती, कमजोर लगती हैं। लेकिन मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मेरा पूरा ध्यान मेरे खेल पर है। बाकी सब चीजें तो उसके साथ आती रहेंगी।

महिलाओं को करनी पड़ती है ज्यादा मेहनत

महिलाएं भी पुरुषों के समान ही हैं, उनमें कोई भी अंतर नहीं है। सिवाए इसके कि कुछ जगहों पर महिलाओं को थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है और थोड़ा ज्यादा सख्त होना पड़ता है। इसलिए उन्हें पुरुषों से अधिक फैसिलिटी मिलनी चाहिए। उन्हें ना सिर्फ परिवार वालों का सपोर्ट बल्कि समाज का भी सहयोग मिलना बहुत जरूरी है। लोग हमें ऐसा महसूस ना कराएं कि हम किसी से भी कम हैं, खासकर पुरुषों से !

माहवारी का दर्द उनकी राह नहीं रोक सकता। चित्र: प्रियंका गोस्‍वामी

सबसे महत्वपूर्ण, महिलाओं को कभी भी खुद को किसी से कमतर या कमजोर नहीं समझना चाहिए। खुद पर और खुद के काम पर हमेशा पूरा भरोसा रखना चाहिए। डटकर हर मुश्किल का सामना करना चाहिए। इस बात को समझना चाहिए कि जरूरी नहीं कि आप हर बार बेहतर परफॉर्म कर सकें।

ऐसा समय भी आएगा जब आप अपना सबसे बेस्ट परफॉर्मेंस नहीं दे पाएंगी। हो सकता है आप किसी समय उससे हार जाएं, जो आपसे ज्यादा बेहतर ना हो। मैं खुद भी कभी-कभी ऐसा महसूस करती हूं। पर मुझे हमेशा से ईश्वर पर और अपनी मेहनत पर विश्वास रहा है। मैं हमेशा से अपने खेल को अपना सर्वश्रेष्ठ देती आई हूं और देती रहूंगी।

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