अवसाद में घिरी रहने वाली एक लड़की आज बन गई है मानसिक स्वास्‍थ्‍य की पैरोकार

एंग्जायटी और डिप्रेशन के साथ जीना आसान नहीं है, पर यहां जानिए कि कैसे इन दोनों का मुकाबला कर आकांक्षा कपूर ने खड़ा किया अपना खुद का मानसिक स्वास्‍थ्‍य संगठन।
आकांक्षा कपूर:- मानसिक स्वास्थ्य की हिमायती ! चित्र : आकांक्षा कपूर

आकांक्षा कपूर:- मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता

मेरा नाम आकांक्षा कपूर है और मैं नई दिल्ली से हूँ। फिलहाल मैं “माइंड एट प्ले” नाम से एक संगठन का संचालन कर रही हूं। इसके द्वारा हम भारतीय युवाओं में फैल रहे तनाव, चिंता और अवसाद पर काम करते है। मानसिक स्वास्थ्य की हिमायती होने के नाते “एंग्जाइटी पर अपने अनुभव” मैं आज आपके साथ साझा करना चाहती हूं।

मेरा बचपन एक सपने जैसा था

असीमित प्यार करने वाले बहुत घनिष्ठ परिवार में मेरा जन्म हुआ। मैं एक महत्वाकांक्षी और बहिर्मुखी लड़की थी, जो अपने हर ख्वाब को पूरा करने में जुटी रहती और तब तक उसका पीछा नहीं छोड़ती थी की जब तक वह ख्वाब पूरा नहीं हो जाता था। अपनी इन्ही महत्वकांक्षाओं के साथ चलते मैंने देश के शीर्ष कॉलेज में दाखिला लिया। यह सब इस तरह चल रहा था कि जैसे मेरे लिए कुछ भी हासिल करना मुश्किल नहीं है। पर बदकिस्मती – कि जैसे हमेशा कुछ भी नहीं रहता, मेरे वे खुशनुमा दिन भी ज्यादा समय तक नहीं चल पाए।

अचानक, दुनिया मुझे बहुत अजीब और बर्दाश्त के बाहर लगने लगी …

मुझे नए लोगों से घुलना-मिलना और कॉलेज के विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेना मुश्किल लगने लगा। जबकि स्कूल में मेरे लिए यह सब बहुत आसान था। वहां सभी एक-दूसरे को जानते थे और सभी चीज़ें काफी हद तक निश्चित थी। लेकिन यहां अंतहीन संभावनाएं थीं और उससे भी ज्यादा थी आजादी, मैं जिसका अंदाजा भी नहीं लगा पा रही थी।

मेराथन में पदक जीतने वाली आकांक्षा कपूर। चित्र : आकांक्षा कपूर

मेरा व्यक्तित्व मुखर था, परन्तु समय बीतने के साथ-साथ मेरे अंतर्मन में एक अजीब सी कुंठा ने जगह बना ली थी। चंचल, शरारती और अबोध सी मेरी भावनाएं उस माहौल में इतनी आहत हुई कि मेरे लिए लोगों पर विश्वास करना मुश्किल हो गया। निरंतर ऐसा चलते रहने से हालात ये हो गए कि मुझे छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आने लगा।

इस अनजान समस्या से जूझते हुए मैंने अपने कॉलेज के तीन साल काटे। फिर इसी उहापोह के साथ एक नए शहर में अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए चली गई। यह शहर था न्यूयॉर्क। शायद स्थान परिवर्तन के साथ मेरी समस्या का कोई हल निकल जाता।

पर नहीं, इस सब ने तो मेरी हालत को बद से भी बदत्तर कर दिया। न्यूयॉर्क में बिताये अपने शुरूआती महीनों में ही मुझे एहसास होने लगा कि जिस दौर से मैं गुज़र रही हूं वह स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्टि से बिलकुल भी ठीक नहीं है। मुझे हर समय गुस्से का अनुभव होता और मेरा मिज़ाज़ हमेशा गरम रहता। हर समय अकेला और असहाय महसूस करना मेरी आदत में शुमार होने लगा था।

एक अजीब सा दिन

फिर एक ऐसा दिन आया जिसे मैं कभी भी नहीं भूल सकती। एक दिन घर जाते वक़्त मैं रास्ता भूल गई। स्थिति कुछ ऐसी हो गई कि मुझे अपने किसी भी दोस्त से संपर्क या मदद लेने में भी असमर्थता महसूस हुई। इस घटना ने मुझे इतनी चिंता और हताशा से भर दिया कि मैंने अपने पास रखी सभी चीज़ों को उठा कर फेंकना शुरू कर दिया, बिना इस बात का एहसास किए कि मैं कहां हूं और आखिर कर क्या रही हूं ? यह मेरे जीवन का अब तक का सबसे एकांकी क्षण था।

भारत वापसी…

वीजा की अवधि समाप्त होने पर मैं भारत वापस आ गई और फैशन उद्योग में काम करना शुरू कर दिया। अब तक मैं अपनी समस्याओं से ठीक से अवगत नहीं थी और उनसे जूझ रही थी। मेरे मन में फैली असीमित अराजकता और नए काम के बोझ के बीच मैंने अपनी दादी को हमेशा के लिए खो दिया।

भले ही वह बुज़ुर्ग थीं और यह एक स्वाभाविक मौत थी, लेकिन अपने इतने करीबी को खोने के दुख ने मुझे परेशान कर दिया। इस घटना ने मेरे अब तक के कटु अनुभवों और मेरे अंदर फैल चुकी एंग्जायटी को और भी बढ़ा दिया। पहले ही मेरे आसपास ऐसे बहुत कम लोग थे, जिनका मैं भरोसा कर पाती थी, पर दादी मां के जाने के बाद मुझे यह सब किसी दु:स्वप्न की तरह लगने लगा।

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माइंड एट प्‍ले में आकांक्षा कपूर। ऐसा संस्‍थान जहां मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर खुल कर बात होती है। चित्र : शटरस्‍टॉक

बहुत साहस के साथ आखिरकार 2013 में मैंने अपने खोल से बाहर आकर मदद लेने का फैसला कर लिया। भले मैंने महसूस किया कि मेरा स्वभाव पहले के मुकाबले सामान्य हो रहा है और शायद भविष्य में ऐसी किसी घटना का मुझ पर प्रभाव नहीं होगा। लेकिन मेरा किसी अनुभवी चिकित्सक से सलाह लेना अब ज्यादा जरूरी हो गया था। बहुत खोज बीन करने पर मैं एक अनुभवी चिकित्सक को ढूंढ पाई। जिन्हें मैंने अगले दो साल तक फॉलो किया और तब मेरा जीवन बेहतर हो गया………

अपने आंतरिक संघर्ष को समझना हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्वंपूर्ण है :

मैं खुद उस दुःख और पीड़ा को समझ सकती हूं जिससे हर युवा मन को गुज़रना पड़ता है क्योंकि मैं स्वंय इस से गुज़री हूं। यह ऐसी स्थिति होती है, जहां आप खुद अपने मन-मस्तिष्क से लड़ रहें होते हैं। जहां बाहर से दिखने पर तो शायद कोई चोट न दिखे पर अंतर्मन का आघात समय के साथ गहरा होता जाता है। यही कारण है कि हमने “माइंड एट प्ले” नामक संस्थान की नींव रखी।

समय के साथ और अपने अनुभवों से हमने यह सीखा है कि किसी भी इंसान को अपनी मानसिक समस्याएं समझने और अपनाने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यद्यपि यह बात बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर आपके कोमल एहसासों को अभिव्यक्त करने का अंदाज नहीं आया तो सम्भवतः यह सब एंग्जायटी, आक्रोष और अवसाद के रूप में इकट्ठा होने लगती हैं। जो आपके निजी जीवन और रिश्तों को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं।

यकीन मानिये, विश्वसनीय लोगों से अपनी समस्याओं के बारे में बात करना और यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है। जो कुछ भी आपके साथ हो रहा है वह बहुत स्वाभाविक है और किसी के साथ भी हो सकता है। आपको यह मानना होगा कि, अपने मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करना हम सबके लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

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ये बेमिसाल और प्रेरक कहानियां हमारी रीडर्स की हैं, जिन्‍हें वे स्‍वयं अपने जैसी अन्‍य रीडर्स के साथ शेयर कर रहीं हैं। अपनी हिम्‍मत के साथ यूं  ही आगे बढ़तीं रहें  और दूसरों के लिए मिसाल बनें। शुभकामनाएं! ...और पढ़ें

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