पूरी दुनिया में इनफर्टिलिटी के मामले बढ़ते जा रहे हैं। फर्टिलिटी की गिरती दर के लिए अनेक जैविक और पर्यावरणीय तत्व जिम्मेदार हैं। लेकिन इस क्षेत्र में असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नॉलॉजी (एआरटी) के साथ हुई प्रगति व इनोवेशन ने इलाज के अनेक विकल्प भी उपलब्ध कराए हैं। ऐसा ही एक विकल्प है आईवीएफ। पर अब भी इसके बारे में लोगों में बहुत सारी गलत अवधारणाएं हैं। इसलिए आज हम हेल्थशॉट्स के इस लेख में इन्हीं मिथ्स को दूर कर रहे हैं।
एआरटी में हुई प्रगति ने इन-वाईट्रो फ़र्टिलाईज़ेशन (IVF) जैसी प्रक्रियाओं में इनोवेशन किए, जिससे बांझपन की शिकार महिलाओं को गर्भधारण करने में मदद मिलती है। आईवीएफ के दौरान, ऑव्युलेशन के लिए हार्मोनल गतिविधियां बढ़ाने के लिए दवाईयां दिए जाने के बाद महिलाओं की ओवरीज़ से अंडे निकाले जाते हैं। फिर इन अंडों का लैब में महिला के जीवनसाथी के स्पर्म द्वारा फ़र्टिलाईज़ेशन कराया जाता है।
जब अंडे में फ़र्टिलाईज़ेशन होकर भ्रूण बन जाता है, तो उसे वापस गर्भाशय में स्थापित कर दिया जाता है। इस चक्र के पूरा होने में 3 से 4 हफ्तों का समय लगता है। इस तकनीक में हुई प्रगति के बाद आज इसके सफल होने की काफी अच्छी दर मिल रही है।
इनफर्टिलिटी महिला और पुरुषों, दोनों में हो सकती है। अनेक जैविक समस्याओं जैसे स्पर्म की कम संख्या, ऑव्युलेशन से संबंधित समस्याएं, जैसे पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस), फ़ैलोपियन ट्यूब्स में क्षति, स्पर्म की खराब क्वालिटी या एंडोमीट्रियोसिस के कारण इनफ़र्टिलिटी हो सकती है।
आम तौर पर अधिकांश दंपत्ति आईवीएफ इसलिए कराते हैं क्योंकि इसमें अन्य इलाजों जैसे इंट्रायूटेराईन इनसेमिनेशन (आईयूआई) और ऑव्युलेशन इंडक्शन की तुलना में सफलता की दर ज्यादा (30 से 50 प्रतिशत) है।
लेकिन आईवीएफ करवाने वाली महिलाओं को सफलता दर के आंकलन के लिए पहले अपनी उम्र पर गौर करना चाहिए। 20 से 30 साल की उम्र की महिलाओं में आईवीएफ द्वारा गर्भधारण की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि उनमें अंडों की क्वालिटी ज्यादा अच्छी होेती है।
35 साल से कम उम्र की महिलाओं में आईवीएफ के अपेक्षाजनक परिणाम मिलने की संभावना ज्यादा होती है। ज्यादा उम्र की महिलाएं भी इलाज के अतिरिक्त विकल्पों द्वारा आईवीएफ का चयन कर सकती हैं, लेकिन ज्यादा उम्र में गर्भधारण से जुड़े जोखिम इसमें भी होते हैं।
मिथ 1: आईवीएफ पुरुषों और महिलाओं में इनफर्टिलिटी से जुड़ी सभी समस्याओं को हल कर सकता है और आईवीएफ में सफलता की दर 100 प्रतिशत है।
सत्य: यह सच नहीं है कि इनफर्टिलिटी की समस्या के हल के लिए आईवीएफ में सफलता की दर 100 प्रतिशत है। 35 साल से कम उम्र के दंपत्तियों में आईवीएफ की सफलता की दर लगभग 40 प्रतिशत है। लेकिन यह कहा जा सकता है कि आईवीएफ में सफलता की दर अन्य चीजों जैसे उम्र, इनफर्टिलिटी के कारण, एवं जैविक और हार्मोनल परिस्थितियों पर निर्भर है।
मिथ 2: ज्यादा वजनी लोगों में आईवीएफ सफल नहीं होता।
सत्य: महिला प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करे या आईवीएफ के द्वारा, मोटापा दोनों स्थितियों में सबसे बड़ी समस्या बन सकता है। इसके बावजूद यह एक मिथक है कि आईवीएफ केवल उन्हीं महिलाओं में सफल होता है, जिनका शरीर सेहतमंद आकार में होता है और जिनमें मोटापा नहीं होता।
डॉक्टरों के मुताबिक, मोटापा और बीएमआई फर्टिलाईज़ेशन की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करते। मोटापे के कारण, महिलाओं के शरीर में हार्मोन का असंतुलन और मेटाबोलिक अनियमितताएं हो सकती हैं, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि इसके कारण आईवीएफ सफल नहीं होगा।
मिथ 3: आईवीएफ द्वारा जन्मे बच्चों में अक्सर जन्मजात विकृतियां होती हैं या वो ‘असामान्य’ होते हैं।
सत्य: यह पूरी तरह से गलत है। आईवीएफ एक सफल प्रक्रिया है। इसके द्वारा जन्म लेने वाले शिशुओं में जन्मजात विकृति और दोष का जोखिम बहुत कम है और यह एक प्राकृतिक गर्भधारण की भांति ही है। साथ ही, यह सत्य नहीं है कि आईवीएफ तकनीक द्वारा जन्मा बच्चा सामान्य बच्चे से अलग होता है। आईवीएफ द्वारा जन्मे बच्चे प्राकृतिक रूप से जन्मे बच्चों की तरह ही स्वस्थ होते हैं।
मिथ 4: मरीज को अस्पताल में रहना पड़ता है और उसे आईवीएफ इलाज के दौरान और उसके बाद बैड रेस्ट की जरूरत होती है
सत्य: आईवीएफ इलाज के दौरान और उसके बाद अस्पताल में बैड रेस्ट की कोई जरूरत नहीं होती। महिला को आईवीएफ में केवल अंडे निकालने की प्रक्रिया के लिए अस्पताल में आना पड़ता है। आईवीएफ में संपूर्ण बेड रेस्ट के बिना ही परिणाम बहुत अच्छे मिल सकते हैं।
मिथ 5: आईवीएफ में सफलता की दर पूर्णतः जीवनशैली के तत्वों पर निर्भर है
सत्यः यह शायद सही हो सकता है। इन तत्वों का फ़र्टिलिटी पर प्रभाव पड़ता है। खराब पोषण का फ़र्टिलिटी पर बुरा असर हो सकता है। मोटापे (30 किलोग्राम प्रति वर्गमीटर के बराबर या उससे ज्यादा बॉडी मास इंडेक्स) या अंडरवेट (18 किलोग्राम प्रति वर्गमीटर के बराबर या उससे कम बॉडी मास इंडेक्स) की महिलाओं को फ़र्टिलिटी में मुश्किल हो सकती है।
धूम्रपान और अल्कोहल से स्पर्म एवं अंडों की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ सकता है। इन चीजों का फ़र्टिलिटी पर काफी ज्यादा प्रभाव हो सकता है। साथ ही, शोधकर्ताओं ने यह भी प्रदर्शित किया है कि तनाव से इन्फ़र्टिलिटी बढ़ सकती है, हालांकि इसका सीधा असर नहीं होता।
मिथ 6: आईवीएफ से कैंसर का खतरा बढ़ता है
सत्यः आईवीएफ से जुड़ी सबसे बड़ी मिथक यह है कि जब आईवीएफ का इलाज करा रही महिला के शरीर में अतिरिक्त हार्मोन डाला जाता है, तो उससे महिलाओं में स्तन कैंसर और ओवेरियन कैंसर का खतरा बढ़ता है। विज्ञान ने इस बात को गलत साबित कर दिया है। सालों तक किए गए अध्ययन से साबित हुआ है कि आईवीएफ कराने से किसी भी तरह के कैंसर का जोखिम नहीं बढ़ता और आईवीएफ में संक्रमण का जोखिम भी बहुत कम है।
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