अक्सर लोग ‘गैस’ होने की शिकायत करते हैं और इससे उनका आशय वायु की वजह से पेट का फूलना, जरूरत से ज्यादा डकार लेना होता है। इसे ही आम भाषा में पेट में गैस बनना कहा जाता है। इस अत्यधिक गैस की समस्या को कैसे दूर किया जाए- इस पर विचार करने से पहले हमें पेट में गैस पैदा होने के कारणों को समझना चाहिए।
इसके मुख्य रूप से तीन स्रोत हैं। पहला, गैस उस स्थिति में पैदा होती है जबकि बिना पचे भोजन पर हमारे गट बैक्टीरिया क्रिया करते हैं। अधिक रेशेदार भोजन सामग्री जैसे कि सलाद, गाजर, अंकुरित अनाज, दालें, चना और राजमा इत्यादि से अधिक मात्रा में गैस पैदा होती है।
दूसरे, जब हम खाना निगलते हैं तब भी कुछ मात्रा में, बेशक वह कम ही होती है, हमारे शरीर में वायु का प्रवेश होता है। कुछ लोग तो हवा को खाते भी हैं! इसे ऐरोफैजी (‘aerophagy’) कहा जाता है और ऐसा करने वाले लोग अपने शरीर में समा चुकी वायु को खाद्य नली से आवाज़ के साथ बाहर निकालते हैं।
जिससे हर किसी का ध्यान उनकी तरफ जाता है। यदि किसी की बाजू या पीठ को दबाने पर उसे डकार आ जाए तो इसे एरोफैजी यानी हवा चबाना कहा जाता है!
तीसरे, हमारे रक्तप्रवाह द्वारा भी हवा की मामूली मात्रा आंतों में छोड़ी जाती है। इसलिए शरीर में अत्यधिक वायु की समस्या से निपटने के लिए वायु पैदा करने वाली उपर्युक्त भोजन सामग्री के सेवन से बचना चाहिए और ऐरोफैजी से भी खुद को दूर रखना जरूरी है।
कुछ मरीज़ों को गट बैक्टीरिया पर नियंत्रण के लिए प्रोबायोटिक्स या अघुलनशील एंटीबायोटिक्स जैसे कि रिफैक्सिमिन (Rifaximin) लेने की जरूरत पड़ती है। ताकि लक्षणों को रोका जा सके।
इसी तरह, एसिड कम करने वाली दवाएं जैसे कि प्रोटोन पंप इंहिबिटर्स (PPIs) या H2 रिसेप्टर ब्लॉकर्स (H2RBs) का सेवन भी ब्लोटिंग या पेट के ऊपरी हिस्से में भारीपन और उसके साथ एसिडिटी या जलन की समस्या, जो कि हार्टबर्न का कारण भी बनती है, से आराम दिलाने में लाभकारी होता है।
PPIs जैसे कि ओमेप्राज़ोल और पैंटोप्राज़ोल पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा प्रेस्क्राइब की जाने वाली दवाएं हैं। इनके प्रतिकूल प्रभावों में निमोनिया, क्लॉस्ट्रिडियम डिफाइसिल कोलाइटिस तथा हडि्डयों का फ्रैक्चर शामिल है। 2015 में इस जोखिम सूची में गुर्दा रोग को भी शामिल किया गया है।
इस सिलसिले में एक बड़े समूह पर जिसमें 10,000 से अधिक लोग शामिल थे, पूरे 14 वर्षों तक क्रोनिक किडनी रोग के जोखिम को लेकर अध्ययन किया गया और पीपीआई का सेवन करने वाले यह जोखिम 50% अधिक पाया गया।
एक और महत्वपूर्ण बात जो सामने आयी वह यह कि हर दिन एक की बजाय दो खुराक लेने वाले लोगों में यह जोखिम ज्यादा है। साथ ही, H2 रिसेप्टर ब्लॉकर्स जैसे रैनिटिडाइन की तुलना में पीपीआई के सेवन से अधिक जोखिम जुड़े हैं।
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कस्टमाइज़ करेंफिलहाल, इन दवाओं के सेवन से किडनी को नुकसान पहुंचने के कारणों का पता नहीं चल पाया है। हालांकि पीपीआई और H2RBs के सेवन से होने वाले प्रतिकूल प्रभावों को देखा गया है।
संभवत: यह भी मुमकिन है कि इस प्रकार के विपरीत असर जिन लोगों में दिखायी देते हैं वे पहले से ही रोगी या उनमें कुछ अन्य गंभीर विकार/बीमारियां (co-morbidities) हों, ऐसे में आत्ममंथन करना जरूरी है।
लंबे समय तक, बिना किसी मार्गदर्शन के एसिड घटाने वाली दवाओं के सेवन से बचना चाहिए। ये दवाएं, तभी लेनी चाहिएं, और वो भी बहुत कम मात्रा में तथा कम से कम समय के लिए, जबकि बहुत जरूरी हों। बेहतर तो यही होगा कि अपने आप इन दवाओं को लेने की बजाय अपने डॉक्टर से सलाह करें।
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