कभी-कभार नर्वस दब जाने के कारण भी शरीर में भयंकर दर्द होता है। ऐसी ही एक स्थिति है साइटिका। पैर एवं हिप्स में भी असहनीय दर्द का अनुभव होता है। साइटिका की स्थिति में पैर और लोअर बैक सुन्न पड़ सकते हैं। साथ ही पैर की मांसपेशियों में झनझनाहट और कमजोरी भी महसूस हो सकती है। यदि आप उम्र के 40वें पड़ाव को पार कर चुकी हैं, तो यह समस्या परेशान कर सकती है। हालांकि साइटिका कम उम्र के व्यक्ति को भी परेशान कर सकता है। एक्सपर्ट से जानते हैं इस रोग और उपचार (sciatica problem and treatment) के बारे में।
प्राइमस सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, नई दिल्ली में सीनियर कन्सल्टेंट ( ओर्थोपेडिक सर्जन-ट्रॉमा एंड आर्थ्रोस्कोपी) डॉ. आदित्य जैन बताते हैं, ‘जब साइटिका तंत्रिका या नर्व पर दबाव पड़ता है या इसकी क्षति हो जाती है, तो यह होता है। साइटिका नर्व पीठ के निचले हिस्से से शुरू होती है और प्रत्येक पैर के पीछे तक जाती है। यह नर्व घुटने के पिछले हिस्से और निचले पैर की मांसपेशियों को नियंत्रित करती है। यह जांघ के पिछले हिस्से, निचले पैर के बाहरी और पिछले हिस्से और पैर के तलवे में भी संवेदना प्रदान करता है। यह कई कारणों से हो सकता है। स्लिप्ड या हर्नियेटेड डिस्क, स्पाइनल स्टेनोसिस, पिरिफोर्मिस सिंड्रोम, पैल्विक फ्रैक्चर और चोट, ट्यूमर, स्पोंडिलोलिस्थीसिस के कारण यह हो सकता है। 30 से 50 वर्ष की आयु के पुरुषों में साइटिका होने की संभावना अधिक होती है।’
डॉ. आदित्य जैन बताते हैं, ‘इसके कारण हल्की झुनझुनी, हल्का दर्द या जलन जैसा महसूस हो सकता है। कुछ मामलों में दर्द इतना गंभीर होता है कि व्यक्ति हिलने-डुलने में भी असमर्थ हो जाता है। दर्द अक्सर एक तरफ होता है। कुछ लोगों को पैर या कूल्हे के एक हिस्से में तेज दर्द और अन्य हिस्सों में सुन्नता होती है। दर्द या सुन्नता पिंडली की पीठ या पैर के तलवे पर भी महसूस हो सकती है।’
डॉ. आदित्य जैन के अनुसार, प्रभावित पैर कमज़ोर महसूस हो सकता है। कई बार चलते समय पैर जमीन पर फंस जाता है। दर्द धीरे-धीरे शुरू हो सकता है। खड़े होने या बैठने के बाद यह दर्द कर सकता है। दिन के कुछ निश्चित समय के दौरान जैसे कि रात में छींकने, खांसने या हंसने पर भी दर्द हो सकता है। हर्नियेटेड डिस्क के कारण इसके लक्षण अधिक दिखाई देते हैं। पीछे की ओर झुकने या कुछ गज या मीटर से अधिक चलने पर खासकर यदि स्पाइनल स्टेनोसिस के कारण हो।’
क्लिनिकल टेस्ट से इसे पता लगाया जा सकता है। एक्स-रे, एमआरआई या रीढ़ की हड्डी के अन्य इमेजिंग परीक्षण, ब्लड टेस्ट से इसका पता चल सकता है।
डॉ. आदित्य जैन के अनुसार, कुछ मामलों में किसी उपचार की आवश्यकता नहीं होती है और रिकवरी अपने आप हो जाती है। कई मामलों में नॉन-सर्जिकल उपचार सबसे बढ़िया होता है। लक्षणों को शांत करने और सूजन को कम करने के लिए इबुप्रोफेन, एसिटामिनोफेन (टाइलेनॉल) जैसी ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक दवाएं लें। दर्द वाले स्थान पर गर्माहट या बर्फ लगाएं। दर्द शुरू होने पर 48 -72 घंटों के लिए बर्फ लगाएं, फिर गर्मी का उपयोग करें।
नर्व पेन का इलाज बहुत मुश्किल हो सकता है। यदि लगातार दर्द की समस्या है, तो किसी फ़िज़ियाट्रिस्ट या दर्द विशेषज्ञ से मिल सकती हैं। आसपास की सूजन को कम करने के लिए कुछ दवाओं के इंजेक्शन दिए जा सकते हैं। नर्व जलन को कम करने के लिए दवा ली सकती हैं। रीढ़ की हड्डी की नसों की सर्जरी की जा सकती है। यह उपचार का अंतिम उपाय है।
गद्देदार बिस्तर का उपयोग नहीं करें।
पीठ को मजबूत बनाने के लिए शुरुआत में ही बैक एक्सरसाइज करें।
2-3 सप्ताह बाद फिर से व्यायाम शुरू करें। कोर मसल्स को मजबूत करने और रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन में सुधार करने के लिए रोज एक्सरसाइज करें।
पहले कुछ दिनों के लिए अपनी गतिविधि कम करें। फिर धीरे-धीरे अपनी सामान्य गतिविधियाँ शुरू करें। दर्द शुरू होने के बाद पहले 6 सप्ताह तक भारी सामान न उठाएं या पीठ को नहीं मोड़ें ।
यह भी पढ़ें :- साइलेंट किलर ऑस्टियोपोरोसिस कैसे करता है बोन मास डेंसिटी कम, जानें संकेत और बचने के उपाय
अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें
कस्टमाइज़ करें