हर साल 21 सितंबर विश्व अल्जाइमर दिवस (World Alzheimer’s Day) के रूप में मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य अल्जाइमर्स रोग (alzheimer’s disease) के विषय में जागरूकता फैलाना है। भारत में 40 लाख से अधिक लोग अल्जाइमर के शिकार हैं, और विश्व भर में भारत तीसरे स्थान पर है। ऐसे में जरूरी है कि आपको इस बीमारी की जानकारी होना अति आवश्यक है।
अल्जाइमर असल में डिमेंशिया का ही एक रूप है। इसलिए अल्जाइमर के बारे में जानने के साथ ही आपको डिमेंशिया के बारे में जानना भी जरूरी है। यही वजह है कि विश्व अल्जाइमर दिवस 2020 की थीम ‘Let’s talk about dementia’. रखी गई है।
पिछले एक दशक में अल्जाइमर एक बहुत गंभीर और खतरनाक बीमारी के रूप में सामने आया है। यह मानसिक बीमारी डिमेंशिया का ही विकसित रूप है जिसके दुष्परिणाम भयावह होते हैं। यह बीमारी न केवल मरीज, बल्कि उनके परिवार, दोस्त और आसपास के सभी लोगों के लिए बहुत कष्टकारी होती है।
अल्जाइमर्स एसोसिएशन, अमेरिका के अनुसार अल्जाइमर के 70 से 80 प्रतिशत मरीज शुरुआती समय में डिमेंशिया से जूझ रहे होते हैं और उनकी 65 वर्ष की उम्र के बाद डिमेंशिया अल्जाइमर का रूप ले लेता है।
अल्जाइमर में दिमाग की कुछ कोशिकाएं धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं जिसमें सबसे पहला प्रभाव याद्दाश्त, सोचने की क्षमता और बर्ताव पर पड़ता है। यह बीमारी इतनी खतरनाक इसीलिए है क्योंकि इसका कोई इलाज नहीं है। हालांकि दवाओं की मदद से इसके प्रभाव को टाला जा सकता है।
और भी खतरनाक बात यह है कि कोई अनुमान नहीं लगा सकता कि किसी एक व्यक्ति पर अल्जाइमर का कैसा प्रभाव होगा क्योंकि यह बीमारी हर व्यक्ति को अलग तरह से नुकसान पहुंचाती है।
अल्जाइमर के कई कारण होते हैं, जिनमें से कोई एक मुख्य कारण चुनना विशेषज्ञों के लिए भी संभव नहीं है। लेकिन यहां कुछ फैक्टर्स हैं जो जोखिम का अंदाजा लगाने के लिए प्रयुक्त होते हैं-
1. उम्र- अल्जाइमर अधिकांशत: 65 वर्ष की आयु से अधिक के लोगों में ही पाया जाता है, हालांकि 60 वर्ष तक के लोगों में भी इसे देखा जा सकता है।
2. पारिवारिक हिस्ट्री- अगर परिवार में किसी को डिमेंशिया या अल्जाइमर है, तो सभी परिवारजनों के लिए खतरा बढ़ जाता है।
हालांकि यह दोनों ही फैक्टर्स का यह अर्थ नहीं कि अल्जाइमर हो ही जाएगा। मगर आपके माता-पिता के स्वास्थ्य, खासकर मानसिक स्वास्थ्य, का ख्याल आपको ही रखना है।
ऐसे में जरूरी है कि आप इन लक्षणों को पहचानें और जानें कि इस जोखिम को कम कैसे किया जा सकता है।
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कस्टमाइज़ करेंउम्र के साथ याद्दाश्त कमजोर हो जाना बहुत गंभीर समस्या नहीं है, लेकिन अल्जाइमर सिर्फ कमजोर याद्दाश्त नहीं है। इसके साथ ही इस गंभीर बीमारी के और भी दुष्प्रभाव हैं।
याद्दाश्त कमजोर होने पर इंसान को कुछ भी याद नहीं रहता, लेकिन अल्जाइमर में ऐसा नहीं है। वह रोज़मर्रा की छोटी-छोटी बातों को भूलने लगता है। चश्मा कहां है, फोन कहां रख दिया, माइक्रोवेव कैसे चलाना था, जैसी छोटी और दैनिक जीवन की बातों का ध्यान नहीं रह पाता। अगर आपके माता-पिता इस तरह की बातें भूलने लगें तो यह आपके लिए चेतावनी संकेत हैं।
आपके माता-पिता आपके बच्चों का नाम भूल जाएं, लेकिन बचपन में वह किसके साथ खेलते थे यह याद रहेगा। यही नहीं, उन्हें याद नहीं रहेगा कि कल आपसे क्या बात हुई थी, बात हुई भी थी या नहीं लेकिन बरसों पुराने किस्से याद रहेंगे। यही नहीं, वह अक्सर पुराने किस्सों को दोहराने लगेंगे। यह गंभीर स्थिति का संकेत है। इससे भी गंभीर स्थिति हुई तो वह अपने आप को भी भूल सकते हैं।
अल्जाइमर दिमाग को डैमेज करता है इसलिए सबसे पहले दिमाग की लॉजिकल और रीजनिंग क्षमता आहत होती है। ऐसे में कोई भी सवाल जिसमें तर्क बनाना हो जैसे पहेलियां उनकी समझ में नहीं आएंगी। आप इसको एक टेस्ट की तरह भी इस्तेमाल कर सकती हैं। अगर आपको सन्देह है कि आपके पैरेंट्स भूलते बहुत हैं तो इसे अल्जाइमर के घरेलू टेस्ट की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
हमारा लिखना-पढ़ना भी दिमाग द्वारा ही कंट्रोल होता है। सेन्टर फॉर डिजीज प्रीवेंशन एंड कंट्रोल के अनुसार अल्जाइमर की शुरुआती स्टेज में ही लिखने में समस्या होने लगती है। लिखते-लिखते वे भूल सकते हैं कि वह लिख क्या रहे थे। वहीं गंभीर केस में उनकी उंगलियां लिख ही नहीं पातीं।
यह कौन सा साल है, आपकी शादी किस वर्ष में हुई, आप ऑफिस कितने बजे जाती हैं जैसी बातों में वह पूरी तरह कंफ्यूज होने लगेंगे। कई बार वह यह भी भूल जाएंगे कि वह कौन से शहर में रहते हैं। यह स्थिति भले ही सुनने में उतनी चिंताजनक ना लगे, लेकिन असल में यह आपके पूरे परिवार और खासकर आपके पैरेंट्स के लिए बहुत कष्टदायी है।
पर्सनल हाइजीन में लापरवाही भी अल्जाइमर का लक्षण है। अक्सर ऐसा होगा कि वह भूल जाएंगे कि वह नहीं नहाए हैं तो कई बार दिन में चार-पांच बार नहा लेंगे। यही नहीं, सही साफ सफाई उनके ध्यान से उतर जाएगी। ऐसे में कई अन्य बीमारियों को दावत मिलती है, खासकर इन्फेक्शन को, जो उनके लिए कष्ट और बढ़ा सकते हैं।
मूड स्विंग का अर्थ वह नहीं जो हमें पीरियड्स के दौरान होता है। अल्जाइमर में मूड स्विंग्स का अर्थ है व्यक्तित्व में मूल रूप से बदलाव। कई बार गुस्से में या खुशी में वे एक-दूसरे व्यक्ति की तरह बर्ताव करने लगेंगे।
भूलने के कारण उन्हें न रास्ते याद रहते हैं न घर का पता। ऐसे में कई बार वे बदहवास स्थिति में घर से निकल सकते हैं और अनजान रास्तों पर भटक भी सकते हैं।
जो भी लक्षण हमने बताए, वे सभी अल्जाइमर की मध्यम स्टेज के लक्षण हैं। यही वह स्टेज है जब लक्षण उभर कर सामने आते हैं। हालांकि इस स्टेज पर इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है और बहुत देर नहीं हुई होती है, फिर भी अगर शुरुआती स्टेज में ही डायग्नोस हो जाये तो आप उन्हें बहुत कष्ट से बचा सकते हैं।
अल्जाइमर ऐसी बीमारी है जहां प्यार और साथ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
उनसे धैर्य के साथ डील करें। भले ही आप उनके लिए नर्स या केयर टेकर रखें लेकिन खुद भी उनके साथ समय जरूर बिताएं। जो प्यार आप दे सकती हैं वह कोई नर्स नहीं दे सकेगी।
उनके खानपान, पोषण का भी खास ध्यान रखें। अच्छे खानपान से आप उनकी स्थिति को सुधार सकती हैं।
अपने बच्चों को भी उनकी स्थिति समझाएं, और प्रेम से पेश आने को कहें। आपका प्यार ही उनकी स्थिति में एकमात्र दवा है।