हाल ही में CBSE का 12वीं का परिणाम घोषित हुआ है, कुछ समय पहले ही ISC और स्टेट बोर्ड के परिणाम भी आ चुके हैं। जहां सभी छात्रों के अच्छे अंकों पर शुभकामनाएं दे रहे हैं, छात्रों के मेंटल हेल्थ पर बात होती नहीं दिखाई दे रही।
12वीं के बाद बच्चे कॉलेज ढूंढते हैं, अपने कैरियर की दिशा निर्धारित करते हैं। परन्तु लॉकडाउन ने हमारे जीवन पर जो अल्पविराम लगा दिया है, उसके कारण छात्रों को अपने भविष्य को लेकर तनाव है।
यूनिवर्सिटी ऑफ वेल्डोलिड, स्पेन में अलग-अलग वर्ग के स्टूडेंट्स पर की गई स्टडी में पाया गया कि इंटरमीडिएट स्तर के 28% छात्र गम्भीर तनाव से गुजर रहे थे, वहीं 23% माइल्ड स्ट्रेस से ग्रस्त थे। दूसरी ओर ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन स्तर के 54% छात्र गम्भीर रूप से स्ट्रेस्ड थे। स्ट्रेस का कारण सबमें एक ही था- भविष्य को लेकर अस्पष्टता।
भारत में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। बैंगलुरु के सैन्ट जोसेफ़ कॉलेज ऑफ आर्ट्स में कॉलेज स्तर पर किये गए रिसर्च में पाया गया कि फाइनल ईयर के विद्यार्थियों में क्रोनिक लेवल की एंग्जायटी और स्ट्रेस है।
हर शैक्षिक स्तर के विद्यार्थी के तनाव के अलग कारण हैं, मगर एक मुख्य कारण जो सभी में समान है वह है भविष्य की चिंता और असमंजस। कोई कॉलेज इस वक्त एडमिशन नहीं ले रहे हैं, और कब तक लेंगें यह स्थिति भी स्पष्ट नहीं है। नौकरियों की काफ़ी कमी है, खासकर जिस प्रकार संस्थाओं ने एक साथ इतने एम्प्लॉयीज कम कर दिए हैं। ऐसे में वेकेंसी नहीं है जो छात्रों की चिंता का विषय बना हुआ है।
कॉलेज में एग्जाम की स्थिति भी क्लियर नहीं है। परीक्षा होंगी या नहीं होंगी, यह सवाल छात्रों को परेशान कर रहा है। ऐसी स्थिति में मेंटल हेल्प के लिए वेलनेस वालंटियर यूनाइटेड नामक एक संस्था को संचालित कर रही हैं प्राकृति पोद्दार।
क्या विद्यार्थियों की इस स्थिति के लिए कॉलेज ज़िम्मेदार है? या शिक्षा प्रणाली दोषी है? या अन्ततः सारा दोष सरकार का है? वास्तव में हर संस्था, व्यक्ति और सरकार इस परिस्थिति के आगे मजबूर है, कहतीं हैं प्राकृति। हमारा जीवन कब वापस पटरी पर आएगा यह कोई नहीं बता सकता। लेकिन इस तनाव से ज़रूर निपटा जा सकता है।
किसी भी मेन्टल हेल्थ स्थिति के लिए सबसे ज़रूरी है बात करना। अगर आपको लगता है आपका बच्चा अपने भविष्य को लेकर तनावग्रस्त है, तो उससे बात करें। बच्चों को यह समझाना ज़रूरी है कि नौकरी, पैसा और कैरियर जीवन का एक हिस्सा हैं, जीवन इन सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। बच्चे को बताएं कि इन परिस्थितियों में खुद का ख़याल रखना ही एकमात्र प्रायॉरिटी होनी चाहिए।
आपको यह समझना जरूरी है कि अचानक से स्थिति वापस नॉर्मल नहीं होने वाली है। परिस्थिति बदलने में समय लगेगा, और समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।
टेक्नोलॉजी ने हमें अपनों के इतने करीब कर दिया है कि एक टच से ही हम उन्हें देख सकते हैं, बात कर सकते हैं। अपने दोस्तों से बात करें। बात करने से आप जानेंगे कि आप अकेले नहीं हैं, हर व्यक्ति इसी दौर से गुज़र रहा है और हर व्यक्ति चिंतित है। इस डर से ऊपर उठें और इस बुरे वक्त को खुद पर हावी न होने दें।
प्राकृति पोद्दार जैसे ही अनेकों साइकायट्रिस्ट आपकी मदद के लिए मौजूद हैं। चिंता होना नॉर्मल है, लेकिन तनाव खतरनाक है। अगर आपको लग रहा है कि चिंता अब एंग्जायटी का रूप ले रही है तो प्रोफेशनल्स की मदद लें।
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