आज के समय में फैटी लीवर की समस्या बेहद आम हो चुकी है। ज्यादातर लोग इसके शिकार हो रहे हैं। वहीं बेहद कम उम्र में बच्चों में भी फैटी लीवर के मामले सामने आए हैं। फैटी लिवर की बीमारी दो प्रकार की होती है, अल्कोहलिक फैटी लीवर और नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर (Non-Alcoholic Fatty Liver Disease)। शराब की अत्यधिक सेवन से होने वाले फैटी लिवर में शराब से परहेज रखने की सलाह दी जाती है, परंतु नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर के पीछे क्या कारण जिम्मेदार हो सकते है?
जो लोग शराब नहीं पीते हैं, उनके मन में अक्सर यह सवाल रहता है। फैटी लिवर एक सामान्य समस्या है, पर समय रहते इसपर नियंत्रण पाना बहुत जरूरी है, अन्यथा यह लिवर फाइब्रोसिस या गंभीर स्थिति में लिवर सिरोसिस में बदल सकता है (Non-Alcoholic Fatty Liver Disease)। आज इन्हीं गंभीर समस्याओं को ध्यान में रखते हुए आपको परेशानी से बचाने के लिए हम लेकर आए हैं, नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर की बीमारी से जुड़ी कुछ जरूरी जानकारी। तो चलिए जानते हैं, इसके बारे में अधिक विस्तार से।
डॉ. मोनिका जैन, डायरेक्टर, मेडिकल एंड इंटरवेंशनल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी, श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट दिल्ली ने नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर के कारण और बचाव से जुड़ी कुछ जरूरी जानकारी दी है, तो चलिए जानते हैं इस विषय पर अधिक विस्तार से।
आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी और बदलती जीवनशैली की वजह से लोगों में नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ (NAFLD) का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। यह बीमारी तब होती है, जब लिवर में ज़रूरत से ज्यादा चर्बी यानी कि फैट जमा हो जाता है। आमतौर पर लोगों में शराब के अधिक सेवन के कारण लीवर में सूजन और फैट देखने को मिलता है, जबकि नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर शराब से पूरी तरह परहेज रखने वालों को भी प्रभावित कर सकता है।
नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर के मुख्य कारणों की बात करें तो गलत खानपान, शारीरिक सक्रियता की कमी और मोटापा इसके मुख्य कारण हैं। आज के समय में जंक फूड, तला-भुना खाना, और मीठे पेय पदार्थों का सेवन बढ़ता जा रहा है, जिससे आपके लिवर पर सीधा असर पड़ता है। इसके अलावा, डायबिटीज़, कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां भी इस समस्या को बढ़ावा देती हैं।
इसके अलावा यदि किसी को अंडर एक्टिव थायराइड की समस्या है, या पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम है, तो इस स्थिति में इन्सुलिन पर प्रभाव पड़ता है। जिसकी वजह से फैटी लीवर की समस्या हो सकती है। वहीं कुछ प्रकार के टॉक्सिंस के संपर्क में लंबे समय तक बने रहने की वजह से भी लीवर में सूजन आ जाता है।
शुरुआत में इस बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं देते, लेकिन समय के साथ थकान, पेट के दाईं तरफ दर्द, और भूख न लगने जैसे लक्षण महसूस हो सकते हैं। इन्हें नजरअंदाज करना गंभीर समस्याओं को बुलवा देना है, इसलिए इन लक्षणों को ध्यान में रखें और फौरन डॉक्टर की सलाह लें।
यदि आप फैटी लीवर का ट्रीटमेंट ढूंढ रहे हैं, तो इसके लिए कोई खास निर्धारित उपचार उपलब्ध नहीं है। इसमें डॉक्टर आपको एक संतुलित एवं नियमित लाइफस्टाइल मेंटेन करने की सलाह देते हैं। इसके अलावा समस्या की गंभीरता को देखते हुए डॉक्टर कुछ दवाइयां लिखते हैं, जिनके सेवन से स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। फैटी लिवर की समस्या यदि अधिक गंभीर हो जाए, तो यह लिवर डैमेज और फैलियर का कारण बन सकती है। जिस स्थिति में पूरी तरह से रिकवरी के लिए लिवर ट्रांसप्लांट एकमात्र विकल्प बच जाता है।
डॉ मोनिका जैन के अनुसार “नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर की समस्या से बचाव के लिए जीवनशैली में सुधार करना बहुत ज़रूरी है। सबसे पहले स्वस्थ एवं संतुलित डाइट पर ध्यान दें। ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज, और लो फैट वाले प्रोटीन को अपनी डाइट में शामिल करें। तला-भुना और मीठा खाने से बचें।”
नियमित व्यायाम करना भी बहुत जरूरी है। दिन में कम से कम 30 मिनट तेज़ चलना या हल्की कसरत करना फायदेमंद रहेगा। इस प्रकार आपको एक संतुलित वजन बनाए रखने में मदद मिलती है, जिससे समय के साथ नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर की समस्या में सुधार देखने को मिल सकता है।
यदि आपको डायबिटीज या ब्लड प्रेशर जैसे मेटाबॉलिक डिसऑर्डर हैं, या आप ओबेसिटी से ग्रसित हैं, तो आपको समय-समय पर अपने लिवर की जांच करवाते रहना चाहिए। अगर आपको पहले से कोई मेटाबोलिक बीमारी है, या इससे जुड़े कोई भी लक्षण महसूस हों तो डॉक्टर से परामर्श जरूर करें। इस गंभीर समस्या को सही जानकारी और जीवनशैली में बदलाव से ठीक किया जा सकता है।
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