हम सोचते हैं कि बच्चा जब स्कूल में पहले दिन पढ़ाई करता है या घर से बाहर पहली बार कदम रखता है तभी वह सीखना शुरू करता है। लेकिन वास्तव में बच्चा जब गर्भ में होता है, वह तभी से सीखना शुरू कर देता है। जन्म लेने के बाद वह रोज कुछ न कुछ सीखता रहता है। बच्चा जब किसी से बातचीत करन शुरू करता है, तब भी वह कुछ न कुछ नया सीखता है। चाइल्ड साइकोलॉजी पर हुए शोध से पता चलता है कि सीखने का काम करने वाले ब्रेन का लगभग 85% डेवलपमेंट बच्चे के 5 साल की उम्र से पहले हो जाता है। इसमें से अधिकांश तो पहले 1-2 सालों में ही हो जाता है। यदि आपका बच्चा समय के साथ डेवलपमेंट की प्रक्रिया को प्रदर्शित करने में सक्षम नहीं है, तो इसका मतलब है कि वह डेवलपमेंट डिले की समस्या का शिकार है। समय रहते पेरेंट्स को उसका निदान करा लेना चाहिए। इसकी जांच और निदान नहीं कराने पर बच्चा कई सारी मानसिक समस्याओं से ग्रस्त भी हो सकता है।
एक बच्चे का डेवलपमेंट प्रेडिक्टेबल ट्रेजेक्टरी को फॉलो करता है। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक और बाल रोग विशेषज्ञ अर्नोल्ड गेसेल के अनुसार, डेवलपमेंट एक व्यवस्थित, समय के अनुसार और सीक्वेंस में होने वाली प्रक्रिया है। डेवलपमेंट नियमित रूप से लगातार होता रहता है। इसलिए इसका अनुमान भी लगाया जा सकता है।
5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे के डेवलपमेंट को 5 प्रमुख क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है। फिजिकल, अडेप्टिव, कॉगनिटिव, सोशल-इमोशनल और कम्यूनिकेशन। सभी एक-दूसरे से संबंधित होते हैं। कोई भी क्षेत्र अलग से विकसित नहीं हो सकता है। बच्चों के डेवलपमेंट के लिए सबसे जरूरी है उनका एक-दूसरे के साथ कम्यूनिकेशन। यह उन्हें विकसित होने में सक्षम बनाता है, क्योंकि बच्चा हर दिन बढ़ता है।
कोरोना महामारी के दौरान बच्चों का जरूरी कम्यूनिकेशन नहीं हो पाया था। इससे उस समय के अधिकांश बच्चे का उम्र के हिसाब से जरूरी विकास नहीं हो पाया। कोरोना पेंडेमिक की आशंका के कारण पेरेंट्स या देखभाल करने वाले लोग बच्चों के साथ विवेकपूर्ण ढंग से नहीं जुड़ पाते थे। इसकी कमी उनके लैंग्वेज स्किल में भी दिखाई पड़ती है।
रोड आइलैंड हॉस्पिटल और नॉन प्रोफिट संस्था LENA ने बच्चों पर एक अध्ययन किया। शोधकर्ताओं ने 2010 से ही इसकी शुरुआत कर दी थी। अध्ययन से पता चलता है कि कोविड के दौरान पैदा हुए शिशु कम वाेकल हो पाये। वे अपनी बात कम अच्छे तरीके से लोगों के सामने एक्सप्रेस नहीं कर पाते थे। दरअसल, वे लोगों से मिल या मिक्स अप नहीं कर पाते थे। यह भाषा के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
विशेषज्ञों के अनुसार बड़े होने पर उन्हें स्कूल और दूसरी जगहों पर बहुत अधिक मदद की जरूरत होगी। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि पेंडेमिक से पहले की तुलना में बच्चे संज्ञानात्मक आकलन में भी अधिक समय ले रहे थे। महामारी के एक साल के दौरान, 3 महीने से 3 साल की उम्र के बच्चों का औसत संज्ञानात्मक प्रदर्शन सबसे कम था।
बच्चों में डेवलपमेंट डिले तब होता है, जब बच्चा अपनी उम्र के अनुसार धीमी प्रगति करता है। विकास में देरी होने से बच्चों के व्यवहार, खेल और शैक्षणिक कौशल प्रभावित हो जाते हैं। यदि बच्चों में किसी प्रकार की डिसएबिलिटी देखी जाती है, तो यह डेवलपमेंट डिले के कारण ही होता है।
बच्चों की फिटनेस के लिए इसकी पहचान कम उम्र में ही कर लेनी चाहिए। शोध के अनुसार, दुनिया भर के 33% बच्चे स्कूल जाने से पहले डेवलपमेंट डिले के शिकार हो जाते हैं। COVID 19 के बाद ये संख्या काफी बढ़ गई है। यह संख्या तब और बढ़ जाती है जब डेवलपमेंट डिले का पता काफी बाद में चलता है या फिर पेरेंट्स द्वारा इस समस्या की अनदेखी कर दी जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, दुनिया के लगभग 5% बच्चे जो 14 साल से कम उम्र के थे, वे डेवलपमेंट डिले से जुड़ी विकलांगता से पीड़ित थे। उनमें से अधिकांश को रोका या प्रबंधित किया जा सकता था। यदि उन्हें समय पर जल्दी पता चल जाता।
विभिन्न प्रारंभिक इंटरवेंशन सेंटर्स से उपलब्ध रिपोर्टों से पता चलता है कि डेवलपमेंट डिले के शिकार बच्चे को इंटरवेंशन क्लिनिक तक पहुंचने में लगभग 2 साल लग जाते हैं। इसके कई कारण हैं। प्रशिक्षित पेशेवर की उपलब्धता नहीं हो पाने या इंटरवेंशन सेंटर तक पेरेंट्स की पहुंच नहीं हो पाने के कारण यह समस्या बढ़ जाती है। इनके अलावा, पेरेंट्स में इसकी जागरूकता की कमी भी हो सकती है।
शोधकर्ता माइकल शेवेल(2015) ने पाया कि यदि डेवलपमेंट डिले का पता देर से लगता है, तो इसके कारण बच्चे को सीखने में कठिनाई होती है।
उन्हें व्यवहार संबंधी समस्या हो जाती है। ऐसे मजबूत शोध प्रमाण हैं, जो बताते हैं कि विकासात्मक देरी की पहचान समय पर कर ली जाये, तो बच्चे को सकारात्मक रूप से फायदा मिल सकता है। शोधकर्ता अटानासियो ओ और रिक्टर एल (2020) ने पाया कि प्रारंभिक चाइल्ड डेवलपमेंट सही तरीके से होने के कारण बच्चे की शैक्षिक उपलब्धि और उसका जीवन सही रहता है।
डेवलपमेंट डिले और इससे बच्चों में उत्पन्न डिसएबिलिटी न केवल बच्चे को प्रभावित करती है, बल्कि परिवार के लिए भी स्टिग्मा के समान होता है। कुछ मामलों में यह परिवार पर तनाव और वित्तीय तनाव भी बढ़ा देता है। इससे परिवार में बड़ों को भी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो जाती हैं। इसके लिए जरूरी है कि पेरेंट्स छोटी उम्र में ही बच्चे के डेवलपमेंट डिले को पहचानने की कोशिश करें और उसे एक्सपर्ट के पास ले जाने की कोशिश करें।