सुबह उठते ही सबसे पहले युवा (या यहां तक कि बुजुर्ग भी) अपना फोन चेक करते हैं। हम सभी सबसे पहले सोशल मीडिया ऐप पर नज़र डालते हैं। ऑनलाइन होने वाली क्लास या काम के लिए, वे अपने लैपटॉप को बीच में एक या दो ब्रेक के साथ घंटों तक चलाते हैं। रात में सोने से पहले, वे फिर से अपने सेल फोन या लैपटॉप में डूब जाते हैं, और ओटीटी प्लेटफॉर्म ( OTT Platform ) पर जुटे रहते हैं।
वे बिना सोचे-समझे रीलों और वीडियो को ऑनलाइन स्क्रॉल करना जारी रखते हैं। ऐसा ही हो रहा है न? यदि आपकी और आपके बच्चों की दिनचर्या भी ऐसी ही हो गई है, तो अब समय है इससे होने वाले खतरों को जानने का।
अमेरिकन स्ट्रोक एसोसिएशन ( American Stroke Association) के स्ट्रोक जर्नल में प्रकाशित 2021 के एक अध्ययन में कहा गया है कि 60 वर्ष से कम उम्र के वयस्कों में स्क्रीन के समय में वृद्धि और गतिहीन जीवन शैली के साथ, शारीरिक रूप से सक्रिय लोगों की तुलना में स्ट्रोक का खतरा अधिक होता है।
विश्व स्ट्रोक संगठन ( world stroke organization ) (डब्ल्यूएसओ) द्वार जारी डाटा के अनुसार चार में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में स्ट्रोक का जोखिम रहता है। द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत में गैर-संचारी तंत्रिका संबंधी विकारों का योगदान 2019 में दोगुना होकर 8.2% हो गया।
जो 1990 में 4.0% था, जिसमें स्ट्रोक चार्ट में सबसे आगे था। जिसे कभी बुजुर्ग आबादी की बीमारी माना जाता था अब वह बड़ी संख्या में युवाओं को प्रभावित कर रहा है। भारत में हर साल 1.8 मिलियन लोग स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं। यह मृत्यु और अपंगता का पांचवां प्रमुख कारण भी है!
अमेरिकी अध्ययन ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि डिजिटल स्क्रीन समय के हर घंटे के लिए किसी की जीवन प्रत्याशा 22 मिनट तक कम हो जाती है। यह एक व्यक्ति को स्ट्रोक और दिल के रोगों, कैंसर आदि के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
यूके स्थित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि दो घंटे तक डिजिटल स्क्रीन (लैपटॉप, टीवी, सेल फोन, आदि) के संपर्क में रहने से स्ट्रोक की संभावना काफी अधिक हो जाती है। दो घंटे से अधिक और एडल्ट्स के मामलों में, स्ट्रोक की संभावना 20% तक बढ़ जाती है। इस प्रकार, एक गतिहीन जीवन शैली और असीमित स्क्रीन टाइम स्ट्रोक के कुछ प्रमुख जोखिम के कारक हैं।
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