बदलती दुनिया में नींद न आना बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। देश और दुनिया में बड़ी आबादी इस समस्या से जूझ रही है। इसी समस्या से निपटने के लिए उन्हें स्लीप मेडिकेशन यानी नींद की दवाइयों की ओर जाना पड़ता है। अगर आप यह सोच रहे हैं कि स्लीप मेडिकेशन तो सिर्फ नींद लाने के लिए है, इससे तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा तो आपको जानकर हैरानी होगी कि ये दवाइयाँ ब्रेन के वेस्ट (टॉक्सिन्स) को साफ करने में रुकावट डाल सकती हैं। तो चलिए, हम जानते हैं कि स्लीप मेडिकेशन और ब्रेन की सफाई का क्या रिश्ता है और ये दवाइयाँ हमारे दिमाग को किस तरह प्रभावित (sleeping pills side effects) करती हैं।
इस सवाल का जवाब हमें न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर भूपेन्द्र भाटिया ने दिया। उनका कहना था कि दिन भर अलग अलग काम करते वक्त शाम तक हमारे दिमाग में टॉक्सिन्स मेटेरियल्स जमा हो जाते हैं। ये टॉक्सिन्स टूटी हुई कुछ सेल्स, खराब हुई प्रोटीन – कुछ भी हो सकती हैं। अब सवाल यह है कि यह सफाई कैसे होती है? इसका जवाब है ग्लाइम्फैटिक सिस्टम (Glymphatic System)। यह एक खास प्रक्रिया है, जो दिमाग में होते हुए टॉक्सिन्स और खराब पदार्थों को बाहर निकालने का काम करती है। जब हम सोते हैं, तब यह सिस्टम पूरी तरह से सक्रिय होता है और दिमाग में जमा हुआ कचरा साफ होता है।
जब हम अच्छी नींद लेते हैं, तो दिमाग की सेल्स के बीच जो जगह होती है, वह थोड़ा खुल जाती है। इससे दिमाग में जमा टॉक्सिन्स और कचरा आसानी से बाहर निकलने लगते हैं। यह एक तरह से हमारे दिमाग के लिए खुद की सफाई करने का तरीका है। तो यही है नींद और दिमाग की सफाई का कनेक्शन। इसलिए दिमाग की सफाई के लिए नींद बल्कि अच्छी नींद जरूरी है।
अब आते हैं इस सवाल पर कि स्लीप मेडिकेशन यानी नींद की दवाइयों का ब्रेन पर किस तरह असर पड़ता है। ये दवाइयाँ, दिमाग के कुछ हिस्सों को प्रभावित करती हैं, ताकि हमें जल्दी नींद आ सके। लेकिन कई बार ये दवाइयाँ पूरी नींद चक्र को प्रभावित करती हैं, खासकर गहरी नींद (Deep Sleep) और REM (Rapid Eye Movement) नींद को। और जब ये दो प्रकार की नींद पूरी तरह से नहीं होती, तो ब्रेन की स्वाभाविक सफाई प्रक्रिया प्रभावित होती है। चलिए, हम कुछ प्रमुख दवाइयों के बारे में जानते हैं और यह देखेंगे कि ये कैसे दिमाग के वेस्ट को क्लीयर करने में रुकावट (sleeping pills side effects) डालती हैं।
मेलाटोनिन एक प्राकृतिक हार्मोन है। लेकिन कई बार इसे दवाइयों के तौर पर दिया जाता है। ये हमारी नींद साइकिल को नियंत्रित करता है। न्यूरोसाइंस एण्ड बिहेविओरल रिव्यूज की एक रिपोर्ट कहती है कि जब हम मेलाटोनिन लेते हैं, तो हमें नींद आने में तो मदद मिलती है लेकिन नींद को गहरी कर पाता। इसके अलावा इसे डेली लेने पर इसके केमिकल्स हमारे दिमाग पर बुरी तरह से असर (sleeping pills side effects) करते हैं।
इसका असर सीधा हमारी याददाश्त पर पड़ता है।
अब समझिए जब गहरी नींद के दौरान ही हमारा ब्रेन अपनी सफाई शुरू करता है और उस समय जमा हुए टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है। कुल मिलाकर बात यह है कि मेलाटोनिन नींद लाने में भले मददगार हो लेकिन यह नींद को उतनी गहरी नहीं कर पाता, जिससे ब्रेन अपनी साफ-सफाई ठीक ढंग से नहीं कर पाता।
बेंजोडायजेपाइन जैसी दवाइयाँ, जैसे डायजेपाम , एलप्राजोलम, और लोराजेपम, घबराहट और नींद की समस्याओं के लिए आमतौर पर दी जाती हैं। अमेरिकी नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की रिपोर्ट के अनुसार ये दवाइयाँ दिमाग के रिसेप्टर्स को ब्लॉक करके नींद लाती हैं। रिसेप्टरस के ब्लॉक होने का असर आपकी नींद की साइकिल पर पड़ता है और दिमाग की सफाई प्रक्रिया बुरी तरह से प्रभावित (sleeping pills side effects) होती है।
एंटीहिस्टामिन (जैसे डिपेनहाइड्रामाइन और हाइड्रॉक्सिज़िन) का उपयोग नींद लाने के लिए भी किया जाता है, क्योंकि ये दवाइयाँ हिस्टामाइन रिसेप्टर्स को ब्लॉक करती हैं, जो दिमाग की सक्रियता बढ़ाते हैं। लेकिन ये दवाइयाँ गहरी नींद आने से रोकती भी हैं जो कि दिमाग की सफाई के लिए जरूरी हैं।
ये समझने की जरूरत ज्यादा है कि नींद आने से ज्यादा जरूरी है, नींद की गुणवत्ता। जब यही कमजोर होगी तो इसका सीधा असर आपके दिमाग़ के काम काज पर पड़ेगा।
अगर आप लंबे समय तक स्लीप मेडिकेशन का सेवन करते हैं, तो यह आपके ब्रेन की सफाई प्रक्रिया को नुकसान पहुँचा सकता है। इससे दिमाग में जमा टॉक्सिन्स सही समय पर बाहर नहीं निकल पाते, और लंबे समय के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर (sleeping pills side effects) पड़ सकता है।
वीमेंस रिकवरी नाम की एक संस्था के अनुसार लंबे समय तक स्लीपिंग पिल्स लेने से अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसी बीमारियों के खतरे हो सकते हैं। अगर दिमाग टॉक्सिन्स सही समय पर बाहर नहीं निकलते, तो ये बीमारियां गंभीर रूप ले लेते हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि स्लीप मेडिकेशन रोज न लिया जाए। यदि किसी को नींद की समस्या है, तो उसे यह दवाइयाँ केवल डॉक्टर की सलाह पर ही लेना चाहिए और केवल तात्कालिक राहत के लिए ही इन्हें इस्तेमाल करना चाहिए।
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