कोरोनावायरस के कारण जन-जीवन पूरी तरह बदल गया है। जो बच्चे और किशोर सुबह-सुबह बैग लेकर स्कूल के लिए दौड़ते नजर आते थे वे अब अपने ही कमरे में बैठकर ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं। खाासतौर से वे बच्चे जो बड़ी क्लासेज में हैं, उन्हें ट्यूशन और कोचिंग के लिए भी ऑनलाइन माध्यम का ही सहारा लेना पड़ रहा है। पर लगातार एक ही जगह पर घंटों बैठे रहने से उनमें अवसाद का खतरा बढ़ सकता है। ऐसा कई शोधों में सामने आया है।
डिप्रेशन आज के युवाओं में बहुत आम समस्या बन गया है। यह एक मानसिक रोग है जिसका यदि समय पर इलाज न करवाया जाए तो यह समय के साथ बढ़ता रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की मानें, तो इस समय विश्व भर में लगभग 264 मिलियन से भी अधिक लोग डिप्रेशन के शिकार हैं।
डिप्रेशन एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति का मन और दिमाग नेगेटिविटी, चिंता, तनाव और उदासी से घिर जाता है। ऐसे में आपको सोचने-समझने की क्षमता खत्म हो जाती है। यह धीरे-धीरे व्यक्ति को खोखला करने लगता है। वैसे तो डिप्रेशन होने के कई कारण है।
लंबे समय तक बैठकर काम करने और इस दौरान किसी भी तरह की शारीरिक गतिविधि न करने की वजह से आपको डिप्रेशन की समस्या हो सकती है।
यूके आधारित एक नए अध्ययन में यह पाया गया है कि जो लोग लंबे समय तक बैठे रहने का काम करते हैं, साथ ही इस दौरान शारीरिक गतिविधियां नहीं करते हैं। उन लोगों को डिप्रेशन की समस्या होने का अधिक खतरा होता है।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के चार अन्य शोधकर्ताओं के साथ आरोन कंडोला ने 4,257 किशोरों के डेटा का इस्तेमाल किया। वे पहले से ही लोंगिटुडिनल रिसर्च (longitudinal research) में ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के ‘90 के दशक के बच्चे’ अध्ययन में भी शामिल रहे थे।
लैंसेट साइकेट्री के अध्ययन में पाया गया कि 12 साल की उम्र में रोजाना 60 मिनट पैदल चलना या कोई अन्य छोटी-मोटी गतिविधि करने से 18 साल की उम्र में अवसाद का खतरा 10% तक कम हो सकता है।
12,14 और 16 आयु वर्ग के बच्चों को कम से कम 3 दिनों में 10 घंटे के लिए साइकिल चलाना और छोटी-मोटी गतिविधियां की। साथ ही चलने-फिरने और मध्यम शारीरिक गतिविधियां को ट्रैक करने के लिए उन्होंने एक्सेलेरोमीटर भी पहना। एक बच्चे के गतिहीन होने पर मूवमेंट ट्रैकर ने भी पहचान की। एक बच्चे की गति में कमी आने पर मूवमेंट ट्रैकर ने उसे दर्ज किया।
12, 14 और 16 वर्ष की आयु में 60 मिनट के गतिहीन व्यवहार ने उनकी उम्र 18 वर्ष की होने तक उनमें डिप्रेशन स्कोर को 1.1%, 8% या 10.5% तक बढ़ा दिया।
तीनों उम्र में गतिहीन व्यवहार की अधिक मात्रा ने 18 वर्ष की आयु तक समग्र डिप्रेशन का स्कोर 28.2% बढ़ा दिया।
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कस्टमाइज़ करेंतीनों उम्र में प्रतिदिन हल्की शारीरिक गतिविधियों में वृद्धि ने डिप्रेशन का स्कोर क्रमशः 9.6%, 7.8% और 11.1% कम कर दिया।
अध्ययन के लेखकों ने जोर दिया कि यह हमेशा जरूरी नहीं है कि एक गहन शारीरिक गतिविधि ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। इसके बजाय कोई भी हल्की गतिविधि जो बैठने के समय को कम कर सकती है। वह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को बेहतर बनाती है।
आरोन कंडोला और उनकी टीम ने किशोरों पर यह अध्ययन इसलिए किया क्योंकि शोधकर्ताओं ने पहले भी चेतावनी दी है कि गतिहीन व्यवहार और लंबे समय तक बैठे रहने से वयस्कों में नकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य परिणाम हो सकते हैं।
ऐसी ही एक और स्टडी बीएमसी जर्नल में 2017 में प्रकाशित हुई थी। जिसमें उन्होंने दक्षिण कोरियाई वयस्कों में डिप्रेशन और लंबे समय तक बैठने और शारीरिक गतिविधियों के बीच संबंधों की जांच की थी। जिसके परिणामों से पता चला कि 8 घंटे और अधिक समय तक बैठे रहने से डिप्रेशन होने अधिक जोखिम होता है।
हालांकि ज्यादातर शोधों में किशोरों की तुलना में वयस्कों को अध्ययन में प्रतिभागियों के रूप में शामिल किया गया है। युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गतिहीन जीवन शैली के दीर्घकालिक प्रभावों को दिखाने वाले अध्ययनों की कमी है।
लेकिन इस नए अध्ययन ने पहचान की कि न केवल वयस्कों और कामकाजी आबादी को लंबे समय तक बैठे रहने से डिप्रेशन का खतरा होता है, बल्कि किशोरों को भी इससे डिप्रेशन खतरा होता है।
लंबे समय तक बैठे रहने के कारण अवसाद अभी भी स्पष्ट नहीं है। शोधकर्ताओं का कहना है कि हमारी गतिहीन जीवनशैली के दीर्घकालिक प्रभाव और इसके कारण होने वाले डिप्रेशन के सटीक तंत्र को मापने के लिए इस तरह के और अधिक अनुदैर्ध्य अध्ययन (longitudinal research) की आवश्यकता है।
डिप्रेशन के जोखिम में युवाओं की देखभाल करना जरूरी है क्योंकि यह मानसिक स्वास्थ्य समस्या वयस्कता में जारी है। द नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के अनुसार डिप्रेशन और डिप्रेशन से ग्रसित युवाओं की संख्या बढ़ रही है।
शुरुआती वर्षों में जोखिम कारकों की पहचान करना और उन्हें रोकना बाद के जीवन में प्रमुख अवसाद को दबा सकता है।
शोध के अंत में हारून और वरिष्ठ लेखक जोसेफ हेस ने डिप्रेशन के जोखिम को कम करने के लिए “लाइट एक्टिविटी” पर प्रकाश डाला। क्योंकि खड़े होने या किसी अन्य शौक जैसी हल्की गतिविधियां जो बैठने के समय को कम कर सकती हैं। उन्हें हमारी दिनचर्या में शामिल करना आसान है।
वे जिम या किसी भी अन्य माध्यम से जोरदार गतिविधियों के विपरीत कम प्रयास और समय लेती हैं। जिनके लिए एक समर्पित समय अवधि की आवश्यकता होती है।
हालांकि यह समय काफी जटिल है। पर ऐसे समय में जरूरी है कि वे घर पर ही किसी न किसी तरह की शारीरिक गतिविधि में हिस्सा लेते रहें।
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