स्कोलियोसिस (scoliosis) में व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी असामान्य रूप से मुड़ जाती है। यदि स्कोलियोसिस के संकेतों (Signs of scoliosis) को शुरुआत में ही पकड़ लिया जाए, तो इसका प्रभावशाली इलाज (scoliosis treatment) करना आसान हो जाता है। इससे केवल वयस्क ही नहीं, बल्कि बच्चे भी प्रभावित होते हैं। हेल्थ शॉट्स के इस लेख में आइए जानते हैं स्कोलियोसिस के बारे में सब कुछ।
वास्तव में स्कोलियोसिस को इसके कारण के आधार पर कई प्रकारों में बांटा गया है। इनमें इडियोपैथिक, कॉन्जेनिटल, और न्यूरोमस्कुलर स्कोलियोसिस शामिल हैं। स्कोलियोसिस रिसर्च सोसायटी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया में लगभग 2 से 3 प्रतिशत लोग स्कोलियोसिस से प्रभावित हैं। इनमें से ज्यादातर 10 से 15 साल के बच्चे हैं।
वयस्कों में स्कोलियोसिस रीढ़ की हड्डी में परिवर्तन, जैसे ऑस्टियोआर्थराइटिस के कारण होता है। बच्चों में इसकी समय पर पहचान होने से समय पर इलाज मिल पाता है, और रीढ़ की हड्डी को मुड़ने से बचाया जा सकता है। जबकि वयस्कों में स्कोलियोसिस की पहचान समय पर होने से दर्द को नियंत्रित करने और मोबिलिटी की समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है।
समय पर इलाज के लिए स्कोलियोसिस के संकेतों को समय पर पहचानना आवश्यक है। बच्चों में ये संकेत हैंः
उपरोक्त संकेतों के अलावा, बच्चों को अपनी शारीरिक मुद्रा में परिवर्तन भी महसूस हो सकता है। स्कूल में समय पर और नियमित तौर से जांच होती रहने से इसकी जल्दी पहचान करने में मदद मिल सकती है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑर्थोपीडिक सर्जंस 10 से 12 साल की लड़कियों और 13 से 14 साल के लड़कों के लिए जांच का सुझाव देती है।
उम्र बढ़ने के साथ ये लक्षण आम तौर से उत्पन्न होते हैं, इसलिए इस बारे में जागरुकता और नियमित जांच बहुत महत्वपूर्ण है।
बच्चों में स्कोलियोसिस को नियंत्रित करने के लिए समय पर उपाय करना आवश्यक है। इसके लिए कुछ प्रभावशाली नॉन-सर्जिकल विकल्प हैंः
यह विधि थोड़ी मुड़ी हुई रीढ़ की हड्डी को और ज्यादा मुड़ने से रोकने के लिए उपयोग में लाई जाती है।
पीठ की मांसपेशियों को मजबूत बनाने और शारीरिक मुद्रा में सुधार लाने के लिए दैनिक व्यायाम।
थोड़ी सी मुड़ी हुई रीढ़ की हड्डी, जिसके लिए इलाज जरूरी न हो, की नियमित जांच।
जब नॉन-सर्जिकल विधियों से आराम न मिले, और रीढ़ की हड्डी गंभीर रूप से मुड़ी हुई हो, तब डॉक्टर सर्जरी का परामर्श दे सकते हैं। इसकी सबसे सामान्य प्रक्रिया स्पाईनल फ्यूज़न है, जिसमें प्रभावित वर्टीब्रे को फ्यूज़ करके रीढ़ की हड्डी को सीधा व स्थिर किया जाता है।
उम्र के कारण बुजुर्गों में स्कोलियोसिस के इलाज में कुछ चुनौतियां आती हैं, जैसे उनकी हड्डियों की डेंसिटी (घनत्व) कम होती है, और अन्य रोग मौजूद हो सकते हैं। बुजुर्गों के इलाज के नॉन-सर्जिकल विकल्प हैंः
डॉक्टर क्रोनिक दर्द को नियंत्रित करने के लिए दवाईयाँ और एपिड्यूरल इंजेक्शन दे सकते हैं।
गतिशीलता, मुख्य मांसपेशियों को मजबूत तथा संतुलन बनाए रखने के लिए दैनिक व्यायाम।
गतिशीलता में मदद करने और गिरने का जोखिम कम करने के लिए वॉकर्स और लाठी का उपयोग किया जाता है।
बुजुर्गों की सर्जिकल प्रक्रियाएं तब की जाती हैं, जब नॉन-सर्जिकल विधियों से कोई आराम न मिले। हालांकि बुजुर्गों को सर्जिकल प्रक्रियाओं के कुछ जोखिम होते हैं, जिनमें एनेस्थेसिया संबंधी जटिलताएं, धीमा स्वास्थ्य लाभ, और संक्रमण का जोखिम शामिल है। इसलिए सर्जरी से पहले सभी जोखिमों और लाभों का पूरा आकलन कर लेना चाहिए।
स्कोलियोसिस से पीड़ित लोगों में इसके प्रभावी नियंत्रण और जीवन में सुधार लाने के लिए जल्दी पहचान और जरूरत के अनुसार अनुकूलित इलाज बहुत महत्वपूर्ण होता है। बच्चों में इसके लक्षणों को पहचानना बहुत आवश्यक है, जिसमें असमान कंधे शामिल हैं। इससे इस समस्या को बिगड़ने से रोकने और सर्जरी से बचने में मदद मिलती है।
बुजुर्गों में इसकी जल्दी पहचान का उद्देश्य नॉन सर्जिकल विधियों द्वारा क्रोनिक दर्द को नियंत्रित करना है। इस उम्र में सर्जिकल प्रक्रियाएं ज्यादा जटिल हो जाती हैं क्योंकि उनके स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार इसमें ज्यादा जोखिम होते हैं।
यद्यपि इलाज की विधियां अलग हैं, पर बच्चों और बुजुर्गों, दोनों को समय पर उपाय करके लाभ मिल सकता है। सभी चुनौतियों और इलाजों को समझ लेने के बाद लोगों को स्कोलियोसिस से पीड़ित लोगों की मदद करना आसान हो जाता है। नियमित स्क्रीनिंग और जागरुकता इस समस्या को रोकने के लिए महत्वपूर्ण हैं। समय पर इलाज स्कोलियोसिस से पीड़ित लोगों के स्वास्थ्य में सुधार ला सकता है, और उन्हें एक चुस्त एवं संतुष्ट जीवन प्रदान कर सकता है।
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