अबॉर्शन (Abortion) किसी भी महिला का अधिकार है और उनकी ज़रूरत भी। ऐसे में इस हक का विरोध करते हुये अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट नें महिलाओं से उनके अबॉर्शन के राइट्स (Abortion rights in US) छीन लिए हैं। इस फैसले का कुछ लोग समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ विरोध, लेकिन अबॉर्शन के बारे में बातचीत तेज़ी से बढ़ रही है।
समाज में अबॉर्शन के जुड़ी कई मिसइन्फोर्मेशन (Myths about abortion) हैं। आज भी कई लोग ये सोचते हैं कि गर्भपात एक बच्चे को मारने के बराबर है। इसलिए आज एक स्त्री रोग विशेषज्ञ से हम अबॉर्शन के जुड़े कुछ मिथ्स के बारे में बात करेंगे। ताकि आप इन भ्रामक अवधारणाओं से बाहर निकल कर अपने बारे में सही फैसला ले सकें।
मां (Pregnancy) बनना किसी भी महिला के लिए एक बड़ा ही खूबसूरत एहसास होता है। मगर तब नहीं जब यह शारीरिक और मानसिक रूप से आपको परेशान कर दे या आप इसके लिए तैयार न हों। यकीनन इस सफर को तय करना आसान नहीं है। ऐसे में कई शारीरिक और मानसिक उतार – चढ़ावों का सामना करना पड़ता है और इसमें हर महिला के अनुभव और समस्याएं अलग हो सकती हैं।
एक बच्चे को जन्म देना और उसकी परवरिश करना अपने आप में एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है और आपका लिया एक गलत फैसला आने वाले बच्चे के भविष्य को प्रभावित कर सकता है। इसलिए कई महिलाएं अलग – अलग वजह से अबॉर्शन का सहारा लेती हैं। जैसे कई बार वे इस चरण के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होती हैं, कभी अनचाही प्रेगनेंसी या कभी – कभी गर्भावस्था के दौरान कुछ शारीरिक समस्याएं आने लगती हैं जिस वजह से डॉक्टर अबॉर्शन की सलाह देते हैं।
अबॉर्शन से जुड़ा शायद ये सबसे बड़ा मिथ है। ऐसा कई लोग सोचते हैं, लेकिन अगर वैज्ञानिक तौर पर देखें, तो यह सह नहीं है। ज़्यादातर अबॉर्शन पहले और दूसरे महीने में किए जाते हैं और तब तक भ्रूण नहीं बना होता है। इसलिए, जब आप पहले दो माह में अबॉर्शन करवाती हैं, तो यह किसी भी तरह से किसी बच्चे की हत्या नहीं है।
गुट्टमाकर इंस्टीट्यूट के अनुसार, पहली तिमाही के दौरान हुए गर्भपात में 0.05 % से भी कम जोखिम होता है। इतना ही नहीं, आपको जानकर हैरानी होगी कि अबॉर्शन बच्चे को जन्म देने की तुलना में ज़्यादा सुरक्षित है। कई शोधकर्ताओं ने पाया है कि गर्भपात के दौरान जटिलताओं की तुलना में प्रसव के दौरान होने वाली मृत्यु का जोखिम 14 गुना ज्यादा है।
डॉ नीरज शर्मा के अनुसार, ‘’अबॉर्शन में भी किसी आम सर्जरी की तरह ही रिस्क होता है। साथ ही, यदि किसी महिला के शरीर में खून की कमी है या अन्य कोई बीमारी या इन्फेक्शन है, तो यह कभी – कभी जोखिम का कारण बन सकता है।’’
इस मिथ का कोई आधार नहीं है। सुरक्षित गर्भपात, चाहे सर्जिकल हो या दवा के साथ, प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं करता। गर्भपात कराने वाले बहुत से लोग भविष्य में परिवार की योजना बनाते हैं। वास्तव में, गर्भपात आपके बांझपन, एक्टोपिक गर्भधारण, गर्भपात, या बाद के गर्भधारण में जन्म दोष की संभावना को नहीं बढ़ाता।
डॉ नीरज शर्मा कहती हैं कि – यदि आप अबॉर्शन के बाद सही से अपनी केयर नहीं करती हैं या डॉक्टर द्वारा बताई गयी दवाएं सही से नहीं लेती हैं, तो दोबारा कंसीव करना थोड़ा मुश्किल होता है। साथ ही, कभी-कभी अबॉर्शन के बाद फैलोपियन ट्यूब ब्लॉक हो जाती हैं, जिससे कंसीव करने में समस्या आ सकती है। इसलिए अबॉर्शन के बाद अपना अच्छे से ख्याल रखें।
यह सोच बिल्कुल गलत है कि जो महिलाएं अबॉर्शन का सहारा लेती हैं, वे स्वार्थी होती हैं। अबॉर्शन हर महिला का अधिकार है, और आंकड़ों की मानें तो अमेरिका में ज़्यादातर गर्भपात का विकल्प चुनने वाली महिलाएं अनचाही प्रेगनेनसी से गुजरती हैं। साथ ही ये उनकी जिंदगी है और ऐसा कदम उठाना उनका अपना निजी निर्णय है।
1997 में, न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन ने इस मिथ को टेस्ट करने के लिए 1.5 मिलियन प्रतिभागियों पर एक अध्ययन किया। अध्ययन में यह सामने आया कि गर्भपात और स्तन कैंसर के बीच कोई संबंध नहीं है। तब से, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन और अमेरिकन कैंसर सोसाइटी भी इस शोध का समर्थन कर रही हैं।
डॉ नीरज शर्मा सुझाव देती हैं कि ”अबॉर्शन को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि बार-बार इसका सहारा लेना शरीर के लिए घातक साबित हो सकता है। या अबॉर्शन कराने के बाद सेहत की अच्छी केयर न करने पर टीबी जैसे जोखिम पैदा हो सकते हैं।
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