एक तरफ कोविड-19 का डर उस पर दिवाली के आसपास वातावरण में बढ़ता जा रहा प्रदूषण। ये सभी आपके फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले कारक हैं। पर क्या आप जानती हैं कि आपके छोटे बेबी के छोटे-छोटे फेफड़े भी इस समय जोखिम ग्रस्त हो सकते हैं। वह जोखिम है निमोनिया का। वर्ल्ड निमोनिया डे पर आपको जानना चाहिए कि क्यों छोटे बच्चे होते हैं निमोनिया के सबसे ज्यादा जोखिम में।
असल में निमोनिया किसी एक या दोनों फेफड़ों में होने वाला संक्रमण है। इस स्थिति में फेफड़ों के वायु मार्ग में कफ या बलगम इकट्ठा हो जाता है। कभी-कभी यह मामूली होता है, पर कभी-कभी यह रुकावट खतरनाक स्तर पर भी पहुंच जाती है। जिसका असर आपकी उम्र, स्वास्थ्य स्थिति और संक्रमण के प्रकार पर भी निर्भर करता है।
यह फेफड़ों में बाधा पैदा करने वाला संक्रमण है। इसकी वजह बैक्टीरियल, वायरल और फंगल संक्रमण कुछ भी हो सकता है। इनमें सबसे आम कारण है बैक्टीरिया। बच्चों में अमूमन यह सर्दी या फ्लू के कारण अपने आप विकसित हो जाता है।
निमोनिया का कारण बनने वाले बैक्टीरिया मेडिकल साइंस में मुख्यत: स्ट्रैपटोकोकस निमोनिया, लेगियोनेला न्यूमोफिला या लीजियोनिरेस, माइकोप्लाज्मा निमोनिया, क्लैमाइडिया निमोनिया और हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा माना जाता है।
श्वसन पथ को संक्रमित करने वाले वायरस निमोनिया का कारण बन सकते हैं।
बदलते मौसम में होने वाला वायरल निमोनिया अक्सर हल्का होता है। ज्यादातर बच्चे इसके शिकार होते हैं और कुछ ही हफ्तों में ठीक भी हो जाते हैं। पर कभी-कभी यह इतना गंभीर हो जाता है कि इसके लिए अस्पताल में भर्ती करवाने की भी नौबत आ जाती है।
कोविड-19 के समय में आपको अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है। रेस्पिरेटरी सिंक्राइटियल वायरस (RSV), सामान्य सर्दी और फ्लू वायरस, SARS-CoV-2 वायरस और फंगल निमोनिया अकसर उन लोगों के लिए गंभीर हो जाते हैं, जिनकी इम्युनिटी कमजोर है।
हालांकि बदलते मौसम और प्रदूषण के कारण किसी को भी निमोनिया हो सकता है। पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के अनुसार कुछ लोग इसके सबसे ज्यादा जोखिम में होते हैं :-
बुखार, ठंड लगना, कफ के साथ खांसी, सांस लेने में कठिनाई, सांस लेते समय सीने में दर्द होना, मतली और / या उल्टी और दस्त।
हालांकि उम्र के हिसाब से सभी में इसके लक्षण अलग-अलग अथवा कम या ज्यादा हो सकते हैं। सबसे ज्यादा खतरा छोटे बच्चों को होता है। क्योंकि उनमें लक्षण बहुत कम नजर आते हैं और सांस लेने में तकलीफ होने पर वे अपनी समस्या बताने की स्थिति में भी नहीं होते।
अगर आपकी इम्युनिटी अच्छी है, तो आप सांस लेने में दिक्कत और बेचैनी महसूस कर सकते हैं।
जबकि एजिंग पेरेंट्स में अकसर सांस संबंधी दिक्कतों के साथ मानसिक जागरुकता में भी कमी देखी जा सकती है।
भारत में पांच साल से कम आयु के बच्चों में 15 प्रतिशत की मृत्यु का कारण निमोनिया है। इसलिए इस पर लगाम लगाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने SAANS अभियान की शुरुआत की है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के अनुसार इस अभियान का अर्थ है ‘सामाजिक जागरूकता और न्यूमोनिया को सफलतापूर्वक समाप्त करने की कार्रवाई’ ( ‘Social Awareness and Action to Neutralise Pneumonia Successfully’)
स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (HMIS) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में जन्मे 1000 बच्चों में से, 37 की मृत्यु पांच वर्ष से कम आयु में हो जाती है। इनमें से 5.3 मौतें निमोनिया के कारण होती हैं। इसलिए यह जरूरी है कि छोटे बच्चों को इससे बचाने पर हमें ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
यह सबसे ज्यादा जरूरी है कि आप इस प्रदूषण भरे माहौल में अपने बच्चे का ज्यादा से ज्यादा ख्याल रखें।
जी हां, वैक्सीन न्यूमोकॉकल बैक्टीरिया या फ्लू वायरस के कारण होने वाले निमोनिया को रोकने में मदद कर सकती हैं। पर इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि आप अच्छी स्वच्छता, धूम्रपान न करना और स्वस्थ जीवनशैली का भी पालन करें।
यह भी पढ़ें – बच्चे को हो गयी है सर्दी-खांसी, तो उसे इन 4 फूड्स से रखें बिल्कुल दूर
डिस्क्लेमर: हेल्थ शॉट्स पर, हम आपके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सटीक, भरोसेमंद और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके बावजूद, वेबसाइट पर प्रस्तुत सामग्री केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है। इसे विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। अपनी विशेष स्वास्थ्य स्थिति और चिंताओं के लिए हमेशा एक योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से व्यक्तिगत सलाह लें।