हम सभी की लाइफस्टाइल एक रूटीन को फॉलो करे, इस टैगलाइन को फॉलो करना सभी के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। लाइफस्टाइल सही नहीं होने के कारण ही इन दिनों सबसे अधिक डायबिटीज होने का खतरा बढ़ रहा है। डायबिटीज हमारे कई अंगों और शरीर के सिस्टम को प्रभावित कर देता है। इससे न सिर्फ आंखें और जॉइंट्स प्रभावित हो जाते हैं, बल्कि डायजेस्टिव सिस्टम (diabetes can effect gastrointestinal health) भी प्रभावित हो जाता है।
डायबिटीज की व्यापकता अब विकसित और विकासशील दोनों देशों में महामारी की तरह फ़ैल रही है। इससे अब तक दुनिया भर के 366 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हो चुके हैं। बढ़ती वैश्विक आबादी, शहरीकरण, मोटापा और गतिहीन जीवनशैली के परिणामस्वरूप आने वाले वर्षों में यह संख्या और अधिक बढ़ सकती है। डायबिटीज शरीर में वस्तुतः हर अंग प्रणाली को प्रभावित करता है। लंबे समय तक रहने पर डायबिटीज सबसे अधिक किसी न किसी अंग को प्रभावित कर सकता है। हालांकि लंबे समय से किसी व्यक्ति को यदि मधुमेह है, तो गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (GI) जटिलताएं (diabetes can effect gastrointestinal health) आम हैं। लेकिन लोगों के बीच इस जटिलता के बारे में जागरूकता कम है।
वर्ष 2013 में वर्ल्ड जर्नल ऑफ़ डायबिटीज में डायबिटीज मेलेटस से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कॉम्प्लीकेशन बढ़ने पर बाबू कृष्णन, शिथू बाबू, जेसिका वॉकर, एड्रियन बी वॉकर और जोसेफ एम पप्पाचन के शोध आलेख प्रकाशित हुए। यह शोध आलेख पबमेड सेंट्रल में भी प्रकाशित हुआ।
इस शोध के तहत मधुमेह और जीआई जटिलताओं की प्रारंभिक पहचान और उचित प्रबंधन को महत्वपूर्ण माना गया है। मधुमेह मेलेटस शरीर में लगभग हर अंग प्रणाली को प्रभावित करता है। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) अंग प्रभावित होने पर इसोफेजियल डिस्मोटिलिटी(esophageal dysmotility), गैस्ट्रो-एसोफेजियल रीफ्लक्स डिजीज (gastroesophageal reflux disease), गैस्ट्रोपैसिस(gastroparesis), एंटरोपैथी(enteropathy) , नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (non alcoholic fatty liver disease) और ग्लूकोजेनिक हैपेटोपैथी (glycogenic hepatopathy) की समस्या हो सकती है। इसकी वजह से ग्लाइसेमिक कंट्रोल भी सही ढंग से नहीं हो पाता है। डायबिटिक गैस्ट्रोपैरीसिस के कारण भूख खत्म हो जाना , सूजन(bloating), उल्टी, पेट में दर्द और अनियमित ग्लाइसेमिक नियंत्रण के रूप में प्रकट होता है। गैस्ट्रिक खाली करने वाली स्किंटिग्राफी को निदान के लिए स्वर्ण मानक परीक्षण माना जाता है।
ग्लूकोज का उपयोग करने के लिए शरीर को इंसुलिन की जरूरत होती है। पैंक्रियाज में कोशिकाएं इंसुलिन का उत्पादन करके ब्लड में ग्लूकोज के हाई लेवल को नियंत्रित करती है। इंसुलिन की मदद से पूरे शरीर की कोशिकाएं ग्लूकोज को अवशोषित करती हैं और ऊर्जा के लिए इसका इस्तेमाल करती हैं। मधुमेह वाले लोगों में यह प्रक्रिया अलग तरीके से हो सकती है।
पर्याप्त इंसुलिन नहीं होने पर पैंक्रियाज ब्लड में ग्लूकोज और ब्लड शुगर के लेवल में वृद्धि को कम करने या सामान्य करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर सकती हैं।
कोशिकाएं अब ब्लड से ग्लूकोज लेने के लिए इंसुलिन संकेत का जवाब नहीं दे पाती हैं और ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है।
शोधकर्ताओं ने माना कि मुख्य रूप से मेटाबोलिक रेट पर नियंत्रण और जीवन शैली का सही प्रबंधन होने पर ही गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल जटिलताओं से बचाव किया जा सकता है।
अमेरिकन गैसट्रोएनटेरोलोजिकल एसोसिएशन यह सुझाव देता है कि डायबिटीज के कारण होने वाले गैस्ट्रोप्रैसिस के बचाव और उपचार के लिए आहार में बदलाव लाना बेहद जरूरी है।ऐसे आहार का पालन, जो सुपाच्य भोजन से जुड़ा हो। ऐसा भोजन, जिन्हें पचाने में आंत को अधिक समय नहीं लगे।
उल्टी को कम करने वाली या पेट को खाली करने वाली दवाएं भी ली जा सकती हैं।
इनके अलावा, नॉन मेडिकेशन इंटरवेनशन, साइकोलॉजिकल थेरेपी और सर्जरी भी शामिल हैं।
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