क्या आपको भी यह लगता है कि प्रोटीन पचने में बहुत मुश्किल होता है? या इसकी जरूरत सिर्फ बॉडी बिल्डरों को ही होती है! तो आप भी हमारे देश की उन 95 फीसदी से ज्यादा महिलाओं में शामिल हैं जो प्रोटीन पेराडॉक्स (Protein paradox) यानी प्रोटीन विरोधाभास की शिकार हैं।
प्रोटीन पेराडॉक्स को सामान्य शब्दों में समझें तो इसका अर्थ है कि प्रोटीन जिसकी हमारे शरीर को अधिकतम आवश्यकता होती है, उसके बारे में हमें न्यूनतम समझ है। ज्यादातर भारतीय महिलाएं असल में पुरुष भी प्रोटीन पेराडॉक्स के शिकार हैं। प्रोटीन सेवन के प्रति लोगों की जागरुकता बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने राइट टू प्रोटीन पहल की शुरूआत की है।
प्रोटीन के बारे में प्रचलित गलत धारणाओं और प्रोटीन के स्रोतों की पहचान न हो पाने के कारण भारत में ज्यादातर लोगों में प्रोटीन की कमी पाई जाती है। जबकि 85% महिलाएं यह जानती हैं कि प्रोटीन उनके और उनके परिवार के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। एक नई रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है कि प्रोटीन पेराडॉक्स यानी अधिकतम आवश्यकता के बावजूद न्यूनतम समझ, देश में प्रोटीन की खपत में गिरावट ला सकती है।
संयुक्त राष्ट्र की सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता पहल, ‘राइट टू प्रोटीन’ (Right to Protein) के लिए अग्रणी शोध संस्थान नीलसन के द्वारा किए गए साझा सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि ज्यादातर भारतीय माताएं प्रोटीन की आवश्यकता को समझती हैं। इसके बावजूद मात्र 3% ही ऐसी हैं जो प्रोटीन के सेवन, स्रोत और कार्यों के बारे में पूरी जानकारी रखती हैं।
अध्ययन में 16 भारतीय शहरों की 2,142 माताओं को शामिल किया गया। इसमें यह सामने आया कि मैक्रोन्यूट्रिएंट के रूप में 95% महिलाएं प्रोटीन के महत्व को जानती हैं। तब भी केवल 3% आबादी ही वास्तव में प्रोटीन के प्रमुख कार्यों और हर रोज उसके सेवन के महत्व को समझती है।
यह सैंपल न्यू कंज्यूमर क्लासिफिकेशन सिस्टम (NCCS) पर आधारित था। जो भारतीय परिवारों को दो वर्ग में बांटता है। पहला, परिवार के मुखिया की शिक्षा और दूसरा परिवार में शामिल सदस्यों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की संख्या।
अहमदाबाद, बैंगलोर और हैदराबाद जैसे मिनी महानगरों में रहने वाले 82% लोग प्रोटीन की उचित मात्रा में सेवन और उसके फंक्शनन को समझने में असमर्थ थे। जबकि दस में से आठ माएं ऐसी हैं जो जानती हैं कि प्रोटीन का सेवन उनके दैनिक आहार में जरूरी है, फिर भी वह क्यों जरूरी है, यह नहीं समझ पातीं।
अधिकांश माताओं (91%) को यह पता ही नहीं था कि प्रोटीन उनके शरीर के ऊतकों की मरम्मत, मांसपेशियों के स्वास्थ्य और इम्यूनिटी को लंबे समय तक बनाए रखनेे जैसा महत्वपूर्ण कार्य भी करता है।
सर विट्ठलदास कॉलेज ऑफ होम साइंस (स्वायत्तशासी) SNDTWU, मुंबई के प्रिंसीपल और भारतीय आहार संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. जगमीत मदान कहते हैं, “अध्ययन में यह भी सामने आया कि पहले से चली आ रही गलत अवधारणाओं ने लोगों की प्रोटीन की समझ को प्रभावित किया है।“
अभी तक ऐसे बहुत कम अध्ययन किए गए हैं, जिनमें हमारे जीवन के इस ‘प्रमुख निर्माण खंड’ के सेवन के बारे में इस तरह बात की गई हो। जबकि इस अध्ययन में प्रोटीन संबंधी बातचीत भारत में प्रोटीन की कमी और उसके सेवन की उपयोगिता पर बात की गई।
न्यूट्राक्यूटिकल इंडिया के पोषण विशेषज्ञ और निदेशक डॉ. सुरेश इटापू कहते हैं, ” प्रोटीन विरोधाभास” (Protein paradox) अध्ययन भारत में प्रोटीन के प्रति सामान्ये समझ और जागरूकता के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। कोई भी व्यक्ति या संस्था इन जानकारियों से लाभान्वित हो सकती है। नतीजतन गुणवत्ता वाले प्रोटीन के सेवन को सुधारने के लिए सुधारात्मक उपाय कर सकती है। निश्चित रूप से यह परिवार, विशेषकर बच्चों में प्रोटीन के उचित सेवन को बढ़ा सकता है।