गर्भावस्था के दौरान कई तरह की जटिलता (Pregnancy Complications) हो सकती हैं। ये स्वास्थ्य समस्याएं गर्भावस्था से संबंधित होती हैं। ये जटिलता बच्चे के जन्म के दौरान हो सकती हैं। ये बच्चे के जन्म के बाद भी हो सकती हैं। गर्भावस्था के बाद इन समस्याओं का पूरी तरह से हल हो सकता है। गंभीर मामलों में मातृ या भ्रूण मृत्यु का कारण बन सकते हैं। एनीमिया, गर्भकालीन मधुमेह, संक्रमण, गर्भकालीन उच्च रक्तचाप और प्री-एक्लेमप्सिया भी इसमें शामिल हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि प्रीक्लेम्पसिया एक जटिल समस्या (preeclampsia) है। इसकी पहचान होने पर डॉक्टर से तुरंत सलाह लेनी चाहिए।
सी के बिरला हॉस्पिटल में ओब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलोजिस्ट डॉ. अंजलि कुमार अपने इन्स्टाग्राम पोस्ट में बताती हैं, ‘प्रीक्लेम्पसिया गर्भावस्था की जटिलता है। प्रीक्लेम्पसिया के साथ हाई ब्लड प्रेशर, यूरीन में प्रोटीन का हाई लेवल हो सकता है। अधिक होने पर किडनी डैमेज या अन्य ओर्गन डैमेज हो सकता है। प्रीक्लेम्पसिया आमतौर पर गर्भावस्था के 20 सप्ताह के बाद शुरू होता है। यह समस्या होने से पहले महिला का रक्तचाप मानक सीमा में हो सकता है, यानी नार्मल हो सकता है। उपचार नहीं होने पर प्रीक्लेम्पसिया मां और बच्चे दोनों के लिए गंभीर – यहां तक कि घातक जटिलता पैदा कर सकता है।
प्रीक्लेम्पसिया होने पर अक्सर बच्चे की शीघ्र डिलीवरी की सलाह दी जाती है। प्रसव का समय इस बात पर निर्भर करता है कि प्रीक्लेम्पसिया कितना गंभीर है। महिला कितने सप्ताह की गर्भवती है। प्रसव से पहले प्रीक्लेम्पसिया के उपचार के दौरान रक्तचाप को कम करने की कोशिश की जाती है। साथ ही, कोम्प्लिकेशन को प्रबंधित करने के लिए लगातार मरीज की निगरानी और दवाएं भी दी जाती हैं। बच्चे के जन्म के बाद प्रीक्लेम्पसिया विकसित हो सकता है। इस स्थिति को प्रसवोत्तर प्रीक्लेम्पसिया (Postpartum Preeclampsia) कहा जाता है।
डॉ. अंजलि कहती हैं, ‘ विश्व में 2-8 प्रतिशत प्रेगनेंसी ऐसी है, जिसमें मां को गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया हो गया। इसका उपचार नहीं होने के कारण मां और बच्चे, दोनों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़े। प्रीक्लेम्पसिया के कारण हाई ब्लड प्रेशर होना और किडनी में दिक्कत (यूरीन में अतिरिक्त प्रोटीन) होना मुख्य लक्षण हैं। इनके अलावा ब्लड में प्लेटलेट्स के स्तर में कमी, लिवर एंजाइम में वृद्धि के कारण लिवर प्रॉब्लम, गंभीर सिरदर्द भी हो सकता है। विज़न में परिवर्तन, सांस की तकलीफ, पेट में दर्द, मतली या उलटी हो सकती है।
डॉ. अंजलि के अनुसार, हालांकि गर्भावस्था के दौरान आमतौर पर सिरदर्द, मतली और दर्द की समस्या हो सकती है। पहली गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया से होने वाली समस्या की पहचान करना मुश्किल हो सकता है। लेकिन अचानक ब्लड प्रेशर बढ़ने पर सतर्क हो जायें। अचानक ब्लड प्रेशर बढ़ने के अलावा, गंभीर सिरदर्द, धुंधली दृष्टि या गंभीर पेट दर्द या सांस में परेशानी होने पर तुरंत हेल्थकेयर प्रोवाइडर से मिलने की कोशिश करें। यहां होम रेमेडी कि बजाय डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है।
यदि गर्भावस्था का लास्ट फेज आने में बहुत समय बाकी है और प्रीक्लेम्पसिया (preeclampsia) के हल्के लक्षण हैं, तो डॉक्टर आराम की सलाह दे सकते हैं। आराम करने से रक्तचाप को कम करने में मदद मिलती है। गर्भनाल (Placenta) में रक्त का प्रवाह बढ़ता है और बच्चे को लाभ होता है। डॉक्टर कुछ लोगों को बिस्तर पर लेटने और ज़रूरत पड़ने पर ही बैठने या खड़े होने की सलाह दे सकते हैं।
परेशानी अधिक होने पर शारीरिक गतिविधियां बहुत अधिक सीमित करने की सलाह दी जा सकती है। नियमित
ब्लड प्रेशर चेकअप और यूरीन टेस्ट भी जरूरी है। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के हेल्थ पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। बहुत गंभीर मामलों में कोई विकल्प नहीं होने पर जितनी जल्दी हो सके प्रसव या सिजेरियन डिलीवरी कराई जा सकती है। प्रसव के कुछ हफ्तों के बाद प्रीक्लेम्पसिया के लक्षण दूर होते हैं।
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