हम जानतेे हैं कि विटामिन डी हड्डियों, दांतों और इम्यून सिस्टम के लिए बहुत जरूरी है। यदि विटामिन डी की सही मात्रा नहीं ली जाती है, तो हमारी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस होने की संभावना बनने लगती है। विटामिन डी की कमी ऑटोइम्यून डिजीज जैसे कि डायबिटीज, अस्थमा, रयूमेटॉइड अर्थराइटिस के जोखिमों का भी कारण बनती है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए ज्यादातर लोग विटामिन डी सप्लीमेंट लेने लगते हैं। पर क्या आप जानती हैं कि विटामिन डी की अधिकता भी आपके लिए कई स्वास्थ्य जोखिमों का कारण बन सकती है। इस स्थिति को हाइपरविटामिनोसिस डी (Hypervitaminosis d) कहा जाता है। जो किसी के लिए भी खतरनाक हो सकती है।
इन दिनों खराब लाइफस्टाइल के कारण हमारे शरीर में बहुत सारे पोषक तत्वों की कमी हो रही है। देर रात तक या इनहाउस काम करने वाले ज्यादातर लोगों में विटामिन डी की कमी बहुत आम है। इस समस्या के समाधान के लिए कुछ लोग बिना डॉक्टर से सलाह-मशविरा किए हुए ही विटामिन डी सप्लीमेंट लेने लगती हैं। पर क्या आप जानती हैं कि विटामिन डी पिल्स या सप्लीमेंट का अत्यधिक सेवन भी उतना ही नुकसानदेह है, जितनी इनकी कमी।
विटामिन डी बॉडी के इन्फ्लेमेशन को रेगुलेट करता है। अपने नाम के अनुरूप विटामिन डी असल में विटामिन नहीं है, बल्कि यह एक हॉर्मोन है। सूर्य से एक्सपोजर मिलने के बाद शरीर में विटामिन डी बनने लगता है। यह इंटेस्टिनल कैल्शियम एब्जॉर्बशन को बढ़ाता है। धूप से मिलने वाला ये जरूरी विटामिन ब्लड में कैल्शियम-फॉस्फोरस के लेवल को मेंटेन करता है, जो बोन मिनरलाइजेशन के लिए जरूरी है। यदि विटामिन डी की सही मात्रा नहीं ली जाती है, तो हमारी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस होने की संभावना बनने लगती है।
वहीं जब शरीर में विटामिन डी की अधिकता होने लगती है, तो इसे हाइपरविटामिनोसिस डी कहा जाता है। आइए जानते हैं क्या है यह स्थिति और क्या हो सकते हैं इसके कारण।
गुरुग्राम के क्लाउड नाइन हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट-गाइनेकोलॉजी डॉ. रितु सेठी विटामिन डी की अधिकता यानी हाइपरविटामिनोसिस डी के बारे में बता रहीं हैं।
डॉ. रितु सेठी कहती हैं, विटामिन डी टॉक्सिटी का दूसरा नाम है हाइपरविटामिनोसिस डी (Hypervitaminosis D)। यह एक दुर्लभ पर खतरनाक स्थिति है। यह तब विकसित होती है जब आपके शरीर में विटामिन डी की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है। यह समस्या कभी-भी डाइट लेने या सन एक्सपोजर से नहीं होती है, बल्कि आमतौर पर विटामिन डी की गोलियों की बहुत अधिक खुराक लेने से होती है।
यही विटामिन डी शरीर के लिए टॉक्सिक बन जाता है और शरीर को नुकसान पहुंचाने लगता है। कुछ खाद्य पदार्थों में विटामिन डी की मात्रा भरपूर होती है, लेकिन यह मात्रा उतनी अधिक नहीं होती है कि वह शरीर को नुकसान पहुंचाए। सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर भी विटामिन डी बनता है, पर हमारा शरीर उसे नियंत्रित करने में सक्षम होता है।
डॉ. रितु सेठी के अनुसार, शरीर में विटामिन डी की मात्रा बहुत अधिक होने से ब्लड में कैल्शियम का निर्माण अधिक होने लगता है। इसे हाइपरकैल्सीमिया (hypercalcemia) कहते हैं।
हाइपरकैलसीमिया होने पर अक्सर वोमिट करने का मन करता है। जी मिचलाने लगता है और उल्टी होने लगती है।
विटामिन डी टॉक्सिटी से कमजोरी का एहसास होता है। बार-बार यूरीन भी पास करना पड़ता है।
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कस्टमाइज़ करेंअधिक मात्रा में लिया गया विटामिन डी ब्लड में इसकी मात्रा को बढ़ा देता है, जो हार्ट और किडनी तक भी पहुंच जाता है। इससे किडनी में कैल्शियम स्टोन हो सकता है।
विटामिन डी इनटॉक्सिकेशन से हड्डियों में भी तकलीफ शुरू हो जाती है।
उपचार में कैल्शियम का सेवन कम करना और विटामिन डी की खपत को रोकना शामिल है। इसके अतिरिक्त डॉक्टर इंट्रावीनस फ्लूइड और कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स या बिसफॉस्फोनेट्स जैसी दवाओं के लेने की भी सलाह दे सकते हैं।
प्रतिदिन विटामिन डी की 4000 इंटरनेशनल यूनिट्स (IU) ली जा सकती है। इतनी मात्रा को हमारा शरीर बर्दाश्त कर सकता है। इतनी मात्रा तक हाइपरविटामिनोसिस डी नहीं हो सकता है। वैसे 14-70 वर्ष की महिला को प्रतिदिन विटामिन डी 600 आईयू मात्रा लेनी चाहिए। 71 और उससे अधिक उम्र की महिलाओं को 800 आईयू प्रतिदिन लेनी चाहिए।
यह साबित हो चुका है कि यदि कोई व्यक्ति कई महीनों तक प्रति दिन विटामिन डी की 60,000 इंटरनेशनल यूनिट्स (आईयू) लेने लगता है, तो विटामिन डी की यह मात्रा विटामिन डी टॉक्सिटी के रूप में सामने आती है। इसलिए जरूरी है कि विटामिन डी डेफिशिएंसी होने पर भी डॉक्टर की सलाह पर ही सप्लीमेंट लें।
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