गर्भावस्था के दौरान तनाव महसूस होना एक आम बात है। दरअसल, इस दौरान शरीर कई प्रकार के चेंजिज से होकर गुज़रता है। कभी पैरों में स्वैलिंग, तो कभी हाथों में खुजली, तो कभी भूख न लगना। हर प्रेगनेंसी एक दूसरे से जुदा होती है और उसमें होने वाली समस्याएं भी अलग अलग ही होती हैं। इस समय में हमार शरीर कई बदलावों से होकर गुजरता है। हार्मोनस में आने वाले बदलाव, हमारे मूड को बदलने का काम करते हैं (Stress during pregnancy)।
नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक छोटी- छोटी बातें हमें परेशान कर देती हैं। ऐसी स्थिति में अगर आप बहुत ज्यादा तनाव लेती हैं तो आपको नींद न आने की समस्या, सिरदर्द और फूड क्रेविंग का कारण बन जाती है। जो कहीं न कहीं मां और बच्चे दोनों की हेल्थ के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
हर बात पर चिंतित हो जाना और देर तक उसके बारे में सोचना
फ्लैशबैक में जाकर पुरानी बातों पर विचार करना
बुरे सपने देखना और नींद न आने की समस्या से दो चार होना
जो लोग आपको पसंद नहीं है, उन्हें अवॉइड करना और दूरी बना लेना
चीजों के बारे में अधिक जागरूक महसूस करना
अपराध महसूस करना
तनाव के चलते शरीर में कोर्टिसॉन नामक हार्मोन बढ़ जाता है। जो बच्चे की डेवल्पमेंट को प्रभावित कर सकता है। इस हार्मोन का असर बच्चे के मस्तिष्क पर भी पड़ता है। इसके अलावा अगर आप प्रेगनेंसी के दौरान धूम्रपान करती हैं, तो ये भी आपके शरीर के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
इसमें गर्भवती महिला के तनाव का असर उसके शरीर पर दिखने लगता है। वो शारीरिक तौर पर कई बीमरियों से घिर जाती है। इसके चलते समय से पहले डिलीवरी यानि प्री मेच्योर डिलीवरी का खतरा भी बढ़ जाता है। एनआईसीएचडी के मुताबिक पोस्ट.ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के चलते समय से पहले जन्म या बच्चे के कम वज़न का जोखिम बढ़ने लगता है।
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कस्टमाइज़ करेंइससे बच्चा उम्र बढ़ने के साथ हाइपर सेंसिटिव होने लगता है। हर बात पर जल्दी से परेशानी से घिरने जैसी समस्याओं से दो चार हो सकता है। साथ ही बच्चे के भावनात्मक रूप से अधिक सेंसिटिव होने की संभावना रहती है।
एनआईएच की एक स्टडी के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान तनाव में रहने से बच्चा जन्म से लेकर एक वर्ष तक कई प्रकार के संकमणों की चपेट में आ जाता है। अगर मां तनाव में रहती है, तो इससे बच्चे का इम्यून सिस्टम प्रभावित होने लगता है।
प्रेगनेंसी में वो महिलाएं, तो हर वक्त चिंताओं से घिरी रहती हैं। उसका प्रभाव बच्चे की डवल्पमेंट पर दिखने लगता है। बच्चा हर चीज़ को जल्दी करने की बजाय देरी से पिक करता है। इसके अलावा मोटर स्किल्प डेवल्प होने में भी वक्त लगता है। ऐसे बच्चे हर काम में देरी करते हैं।
इसका प्रभाव आगे चलकर बच्चे की मेंटल ग्रोथ पर दिखने लगता है। बच्चा दूसरों के समक्ष खुद को भली प्रकार से प्रस्तुत नहीं कर पाता। इसके अलावा दूसरों से मिलने जुलने और रिलेशनशिप बिल्ड करने में भी उसे समय लगता है।
मेडिटेशन ग्रुप को अवश्य ज्वाइन करें। इससे हमारे इर्द गिर्द फैली नकारात्मकता हमें प्रभावित नहीं कर पाती है। इसके अलावा प्रेगनेंसी के दौरान आने वाले बुरे ख्यालों से भी बचा जा सकता है
प्रोफेशनल थेरेपिस्ट की मदद से तनाव को रिलीज़ करने के लिए थेरेपी लें। इससे आप दिनभर रिलैक्स महसूस करेंगी।
खान पान का ख्याल रखना भी ज़रूरी है। प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को बार बार भूख लगती है। ऐसे में हेल्दी और पौष्टिक भोजन ही खाएं। ज्यादा स्पाइसी खाने से बचें।
योग हमारी मेंटल हेल्थ के लिए एक वरदान है। अगर आप खुद को चिंतित महसूस कर रही हैं, तो योगाभ्यास आपके लिए बहुत ज़रूरी है।
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