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भारत में मातृ मृत्यु दर का कारण बन रहा है एनीमिया, एक्सपर्ट बता रहीं हैं क्या है इन दोनों का संबंध

प्रसव का समय किसी भी महिला के लिए बहुत सारी जटिलताओं से भरा होता है। प्रेगनेंसी के दौरान बरती गई जरा सी भी लापरवाही मां और बच्चे दोनों के लिए जोखिम बढ़ा सकती है। ऐसा ही एक जोखिम है प्रसवोत्तर अत्यधिक रक्तस्राव होना।
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एनीमिया प्रसवोत्तर मृत्यु का जोखिम बढ़ा देता है। चित्र : अडोबीस्टॉक
Updated: 8 Mar 2024, 17:10 pm IST
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एनीमिया एक ऐसी स्थिति है, जो तब होती है जब शरीर में पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाएं (Red blood cells)  या हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) नहीं होता। जो शरीर के मांस व ब्लड कोशिकाओं तक ऑक्सीजन ले जाने के लिए जिम्मेदार होता है। भारत में, 50% से अधिक महिलाएं एनीमिया (Anemia) से पीड़ित हैं। यह एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है। एनीमिया कई जटिलताओं को जन्म दे सकता है, जिसमें प्रसवोत्तर रक्तस्राव या पोस्ट पार्टम हेममोरज/नकसीर (Postpartum Haemorrhage) भी शामिल है, जो भारत में मातृ मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में से एक है।

पीपीएच और एनीमिया के बीच संबंध (Connection between anemia and Postpartum Haemorrhage)

एनीमिया और पीपीएच के बीच संबंध अच्छी तरह से स्थापित है। अध्ययनों से पता चला है कि एनीमिया से पीड़ित महिलाओं को प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव होने का अधिक जोखिम होता है, जिससे पीपीएच हो सकता है। इसके अतिरिक्त, एनीमिया गर्भावस्था के दौरान अन्य जटिलताओं का कारण भी बन सकता है, जैसे समय से पहले प्रसव, जन्म के समय कम वजन और यहां तक ​​कि मां या बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है।

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प्रसव के बाद इन महिलाओं में खून के थक्के जमने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जो मृत्यु का कारण बनती है। चित्र : अडोबीस्टॉक

प्रसवोत्तर रक्तस्राव के कारण मर जाती हैं 27 फीसदी महिलाएं 

पीपीएच को बच्चे के जन्म के बाद अत्यधिक रक्तस्राव के रूप में परिभाषित किया गया है। यह प्रसव के 24 घंटों के भीतर हो सकता है। ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 27% मातृ मृत्यु पीपीएच के कारण होती है। जो महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं उनमें कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली और रक्त का थक्का जमने की क्षमता कम होने के कारण पीपीएच विकसित होने का खतरा अधिक होता है।

रोकथाम और उपचार योग्य होने के बावजूद, पीपीएच दुनिया भर में मातृ मृत्यु का प्रमुख कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 14 मिलियन महिलाएं पीपीएच का अनुभव करती हैं। जिसके परिणामस्वरूप विश्व स्तर पर लगभग 70,000 मातृ मृत्यु होती हैं। 2020 में, कम आय और निम्न मध्यम आय वाले देशों में लगभग 95% मातृ मृत्यु हुई। द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित 2020 के एक अध्ययन के अनुसार, पीपीएच के साथ वैश्विक मातृ मृत्यु का लगभग 19 प्रतिशत भारत में होता है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनुसार भारत में 38% मातृ मृत्यु का कारण पीपीएच है। पीपीएच लगभग 3-5% महिलाओं को उनकी प्रारंभिक गर्भावस्था के दौरान प्रभावित कर सकता है, जबकि बाद की दूसरी या तीसरी गर्भावस्था के दौरान पहले पीपीएच का अनुभव होने का जोखिम लगभग 4-5% होता है।

क्या हैं भारतीय महिलाओं में एनीमिया के कारण 

ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से भारत में महिलाओं में एनीमिया इतना प्रचलित है। प्राथमिक कारणों में से एक खराब पोषण है, विशेष रूप से आहार में आयरन युक्त खाद्य पदार्थों की कमी। जिन महिलाओं को मासिक धर्म में भारी रक्तस्राव होता है या कई बार गर्भधारण हुआ है, उनमें भी एनीमिया विकसित होने का खतरा अधिक होता है।

एनीमिया में योगदान देने वाले अन्य कारकों में गरीबी, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच की कमी और सांस्कृतिक प्रथाएं शामिल हैं। जो महिलाओं के आहार को प्रतिबंधित करती हैं। एनीमिया पीपीएच में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता रखता है। क्योंकि एनीमिया रक्त की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता को कम कर देता है। एनीमिया से पीड़ित महिलाएं स्वस्थ महिलाओं के समान रक्तस्राव को सहन नहीं कर पाती हैं और प्रसव के बाद कम रक्त हानि के बाद भी हेमोडायनामिक रूप से अस्थिर हो जाती हैं।

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ज्यादातर भारतीय महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं। चित्र: शटरस्टॉक

विश्व स्तर पर, यह अनुमान लगाया गया है कि 37% गर्भवती महिलाएं और 15-49 वर्ष की आयु वर्ग की 30% महिलाएं एनीमिया से प्रभावित हैं। द लैंसेट के अनुसार, मध्यम एनीमिया वाली महिलाओं में नैदानिक ​​​​प्रसवोत्तर रक्तस्राव का जोखिम 6.2% और गंभीर एनीमिया वाली महिलाओं में 11.2% है। 2021 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में गैर-गर्भवती महिलाओं में गंभीर या मध्यम एनीमिया (एसएमए) की व्यापकता 13.98% और गर्भवती महिलाओं में 26.66% है।

बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी है एनीमिया को दूर करना  

भारत में पीपीएच की घटनाओं को कम करने और मातृ स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए एनीमिया को रोकना महत्वपूर्ण है। इसे रणनीतियों के संयोजन के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, जिसमें पौष्टिक भोजन तक पहुंच में सुधार, गर्भवती महिलाओं को आयरन की खुराक प्रदान करना और गर्भावस्था के दौरान स्वस्थ आहार बनाए रखने के महत्व के बारे में महिलाओं को शिक्षित करना शामिल है।

एनीमिया को रोकने के अलावा, पीपीएच के प्रबंधन में सुधार करना भी आवश्यक है। यह सुनिश्चित करके किया जा सकता है कि स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को पीपीएच की पहचान और प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है, और अस्पतालों के पास प्रसूति संबंधी आपात स्थितियों के प्रबंधन के लिए आवश्यक उपकरण और आपूर्ति है।

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लेखक के बारे में

डॉ. सीमा शर्मा पारस हेल्थ, गुरुग्राम में एसोसिएट डायरेक्टर- प्रसूति एवं स्त्री रोग विज्ञान हैं। पिछले 20 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्यरत डॉ सीमा लेप्रोस्कोपिक सर्जरी (प्रसूति एवं स्त्री रोग), महिला स्वास्थ्य, प्रसूति संबंधी समस्याओं और पीसीओडी की विशेषज्ञ हैं। उन्होंने 1997 में पटना मेडिकल कॉलेज, पटना से एमबीबीएस, 2003 में मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज से एमएस - प्रसूति एवं स्त्री रोग और 2011 में वर्ल्ड लेप्रोस्कोपी हॉस्पिटल, गुरुग्राम, एनसीआर, नई दिल्ली से एफएएमएस पूरा किया। वे हरियाणा स्टेट मेडिकल काउंसिल की सदस्य भी हैं। ...और पढ़ें

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