सावन का महीना बरसात में जितना सुहावना लगता है, पेट के लिए वह उतना ही जोखिम भरा भी साबित होता है। हर तरफ पानी ही पानी। ऐसे में पानी के कारण होने वाली बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। खासतौर से पेट के लिए, आपकी कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता बदलते तापमान और डीप फ्राईड, मसालेदार भोजन की ओवर डोज बर्दाश्त नहीं कर पाती। जिसका खामियाजा आपके पेट को भुगतना पड़ता है। इसलिए आपको मानसून के दौरान गट फ्रेंंडली डाइट टिप्स फॉलो करनी चाहिए।
मानसून के दौरान बहुत सारे लोग अलग-अलग तरह के संक्रमण से ग्रस्त हो जाते हैं। इन्हीं समस्याओं में से एक है लिवर का संक्रमण। लोगों को इस मौसम में हेपेटाइटिस-ई और ए जैसे गंभीर संक्रमण का खतरा भी हो सकता है। यह लिवर से संबंधित एक गंभीर बीमारी है।
बरसात के मौसम में दूषित पानी और जलवायु परिवर्तन कई बीमारियों का कारण बन सकता है। हेपेटाइटिस उनमें से एक है।
मुंबई स्थित अपोलो स्पेक्ट्रा और कोहिनूर अस्पताल के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. केयूर शेठ के अनुसार “वैश्विक आंकड़ों के अनुसार, संक्रमित बिमारी के कारण हर साल 4,50,000 लोगों की मौत हो जाती हैं। हर साल की तरह इस बार भी बरसात के मौसम में पेट की समस्या से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ती दिखाई दे रही है।
हर महीने एक हजार से ज्यादा मरीज लीवर और पेट की बीमारियों के इलाज के लिए आते हैं। इनमें मुख्य रूप से लीवर में सूजन, पेट में गैस, एसिडिटी और अपच शामिल हैं।”
दूषित पानी पीने, दूषित भोजन व संक्रमित जानवरों का मांस खाने से भी हेपेटाइटिस- ई व ए हो सकता है। इसके अलावा अपच, गैस्ट्राइटिस, एसिडिटी, अल्सर जैसी समस्याएं भी इस मौसम में बढ़ सकती हैं।
इसलिए बरसात के मौसम में लिवर और गैस्ट्रिक विकारों को रोकने के लिए स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। इसके लिए नियमित व्यायाम और संतुलित आहार लेना काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।
इसलिए बरसात के मौसम में स्ट्रीट फूड न खाएं। इसके अलावा बरसात का मौसम पाचन तंत्र और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बड़ा झटका देता है। इससे बुखार और आंतों में सूजन वाले मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है।
हेपेटाइटिस-ई व ए के लक्षण आसानी से दिखाई नहीं देते है। वायरस के संपर्क में आने के दो से सात सप्ताह के बाद ही कोई लक्षण दिखाई देता है। लक्षण आमतौर पर बाद के दो महीनों में दिखाई देते हैं। इसमें मतली औऱ उलटी, अत्याधिक थकान, पेट में दर्द होना, लिवर का बढ़ना, भूख कम होना, जोड़ों का दर्द, बुखार और त्वचा, आंखों का पीला पड़ना ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं।
इसलिए बरसात के मौसम में गैस्ट्रिक विकारों को रोकने के लिए जितना हो सके सीलबंद, बोतलबंद पानी पीने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे दस्त का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे खाद्य पदार्थ खाएं जो पचने में आसान हों।”
डॉ. शेठ के मुताबिक “मानसून के मौसम में प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इसलिए अस्वस्थ वातावरण में विभिन्न बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। मानसून के दौरान पानी के बढ़ते प्रदूषण के कारण कॉलरा, डायरिया और पीलिया की बीमारी भी बढ़ सकती है।
डॉ शेठ ने कहा, “बारिश के मौसम में पानी प्रदूषित होता है। इसलिए इस मौसम में मछली भी नहीं खानी चाहिए। इससे डायरिया का खतरा बढ़ जाता है। स्ट्रीट फूड या सॉफ्ट ड्रिंक न पिएं, इनमें बैक्टीरिया हो सकते हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां न खाएं, इनमें कीटाणु हो सकते हैं। चीनी का सेवन सीमित करें, तले और मसालेदार भोजन से बचें।
पाचन क्रिया को बढ़ाने के लिए संतुलित आहार लें। अपने नियमित आहार में नींबू का इस्तेमाल करना फायदेमंद हो सकता है। इसके अलावा पाचन में सुधार के लिए अपने नियमित आहार में दही और छाछ को शामिल करें। जादा से जादा पानी पिएं। साथ ही तनाव मुक्त रहने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें। ”
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