एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल दिनों दिन बढ़ रहा है। सर्दी जुकाम से लेकर हल्का बुखार महसूस होने पर लोग एंटीबायोटिक्स का सेवन करने से नहीं हिचकिचाते हैं। बैक्टीरियल इंफेक्शन से राहत पाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली इन दवाओं की फ्रीक्वेंसी का बढ़ना और सही खुराक या अवधि की जानकारी के बगैर सेवन करना एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (antibiotic resistance) को बढ़ा देता है। इसमें कोई दोराय नहीं कि बैक्टीरिया का प्रभाव बढ़ने से रोग प्रतिरोधक क्षमता (immune system) कमज़ोर होने लगती है। मगर बार बार एंटीबायोटिक का इस्तेमाल एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का कारण बनने लगता है। जानते हैं एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (antibiotic resistance) क्या है और इसके कारण व बचाव के उपाय भी।
इस बारे में डॉ अवि कुमार बताते हैं कि एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस या प्रतिरोध उस गंभीर स्थिति को कहते हैं, जब एंटीबायोटिक्स का सेवन करने के बावजूद वो शरीर पर बेअसर साबित होती हैं। बिना पूर्ण जानकारी और आवश्यकता के एंटीबायोटिक्स का सेवन शरीर में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस बढ़ाता है। इसके अलावा डॉक्टर के अनुसार दवा न लेना और पूरा कोर्स न करना भी इस समस्या का कारण बनने लगता है। हांलाकि कुछ लोग किसी बीमारी के लक्षणों में सुधार आते ही दवा लेना बंद कर देते है, जिससे बार.बार बीमारी की चपेट में आने का खतरा बढ़ने लगता है और इम्यून सिस्टम भी कमज़ोर हो जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एंटीबायोटिक्स का ओवरयूज एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस को बढ़ा देता है। एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (causes of antibiotic resistance) में बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और पेरासाइट्स पर दवाएं बेअसर होने लगती हैं। इसके चलते संक्रमण का इलाज करना मुश्किल हो जाता है। इससे बार.बार बीमारी फैलने, गंभीर बीमारी बढ़ने, अस्पताल में भर्ती होने, विकलांगता और मृत्यु का खतरा बना रहता है।
तीन प्रकार की होती हैं एंटीबायोटिक एंटीवायरल, एंटीफंगल और एंटीपेरासाइटस। वे लोग जो अधिक और मनमाने ढ़ग से एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करते है, उससे उनका इम्यून सिस्टम कमज़ोर पड़ने लगता है। अब शरीर में मौसमी बीमारियों से लेकर गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ने लगता है। ऐसे में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता काम करना छोड़ देती है और शरीर अस्वस्थ होने लगता है।
मौसम बदलने और किसी संक्रमित व्यक्ति के चपेट में आते ही शरीर में इंफेक्शन का खतरा बढ़ने लगता है। इससे शरीर में थकान और कमज़ोरी का सामना करना पड़ता है। इसके चलते व्यक्ति को मामूली सर्दी जुकाम से ही उबरने में काफी समय लगता है। ऐसे में एंटीबायोटिक प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाती हैं।
डॉ अवि कुमार बताते हैं कि बुखार महसूस होन पर फौरन एंटीबायोटिक लेने से बचें। डॉक्टर से जांच करवाने के बाद ही कोइ भी दवा लें। मामूली सर्दी जुकाम और हल्के बुखार में अक्सर डॉक्टर सामान्य दवाएं प्रिस्क्राइब करते है। ऐसे में तेज़ दवा लेने से बचें।
डॉक्टर के अनुसार दी गई दवाओ को पूरा खत्म करें। इससे शरीर में मौजूद वायरस दोबारा से शरीर पर प्रहार नहीं करता है। ठीक महसूस होने के बावजूद भी दवा का पूरा कोर्स करें। दवा खत्म न करने से संक्रमण के दोबारा अटैक का जोखिम बना रहता है, जिससे एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस विकसित होता है।
शरीर में जाते ही एंटीबायोटिक बैक्टीरिया के खिलाफ काम करने लगती है। ऐसे में शरीर को सेहतमंद बनाए रखने के लिए गोली खाने के अलावा वैक्सीन की मदद ले सकते है। इससे शरीर का इम्यून सिस्टम मज़बूत बनने लगता है और एंटीबायोटिक प्रतिरोध विकसित होने का खतरा कम हो जाता है। डॉ अवि कुमार बताते हैं कि हर पांच साल में फ्लू की वैक्सीन अवश्य लगवाएं।
अक्सर लोग अपनी बीमारी के लक्षणों को खुद ही जांचकर पहले की बची 1 या दो खुराक खाकर गुज़ारा करने लगते है। इससे शरीर में इंफेक्शन का खतरा बढ़ने लगता है। इसके अलावा अन्य लोगों को प्रिस्क्राइब की गई दवाओं को खाना भी जानके जोखिम बढ़ा सकता है।
बार- बार बीमारी का खतरा बढ़ने से अस्पताल में भर्ती होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। ऐसे में अस्पताल में हाइजीन का ख्याल रखने से एंटीबायोटिक प्रतिरोध को कम किया जा सकता है। हाथों की स्वच्छता का ख्याल रखें और मास्क पहनकर रखें। इसके अलावा संक्रमित लोगों के संपर्क में न जाएं।
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