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Prenatal Testing : बेबी प्लान करने से पहले आपको जरूर करवाने चाहिए प्रीनेटल टेस्ट, एक्सपर्ट बता रहे हैं इसकी जरूरत

महिलाओं के गर्भ में पल रहे भ्रूण की जेनेटिक कंडीशन या जन्मजात विकारों का पता लगाना जरूरी है। इसके लिए प्रीनेटल टेस्टिंग जरूर करवाना चाहिए। इस टेस्ट से मां की सेहत और भ्रूण में किसी भी प्रकार के डिफेक्ट या विकार का पता लगाने में मदद मिलती है।
pregnancy ke dauran prenatal testing jaroori hai.
सभी गर्भवती महिलाओं को प्रीनेटल टेस्टिंग करानी चाहिए। चित्र : अडोबी स्टॉक
Published: 9 Mar 2024, 17:00 pm IST
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प्रेग्नेंसी के दौरान मां और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है। यदि गर्भावस्था के दौरान किसी पोषक तत्व की कमी हो जाती है या चोट लग जाती है, तो उसका सीधा असर बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है। यदि जीन की वजह से भी कोई गड़बड़ी होती है, तो जन्मजात विकार होने की संभावना बढ़ जाती है। एक्सपर्ट बताते हैं कि प्री नेटल टेस्टिंग बहुत जरूरी है। इससे मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी मिल जाती है। इसकी जरूरत (Prenatal Testing) पर यहां प्रकाश डाल रही हैं विशेषज्ञ।

क्यों जरूरी है प्रीनेटल टेस्टिंग (Prenatal Testing)

एआईसीओजी (AICOG) की ताजा गाइडलाइंस और फोग्सी (FOGSI) की सलाह के मुताबिक, सभी गर्भवती महिलाओं को प्रीनेटल टेस्टिंग करानी चाहिए। खासतौर से 35 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को जरूर कराना चाहिए। साथ ही एब्नॉर्मल यूएसजी नतीजों, पॉजिटिव स्क्रीनिंग टेस्ट नतीजों, फैमिली हिस्ट्री या पहले किसी बच्चे में जेनेटिक कंडीशन होने पर प्रीनेटल टेस्टिंग करवाना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। सही प्रकार के टेस्ट के चुनाव के बारे में प्रेग्नेंट महिलाओं को अपने गाइनेकोलॉजिस्ट से भी सलाह लेनी (prenatal testing) चाहिए।

जन्मजात विकार का चल सकता है पता (birth defects)

प्रेग्नेंसी के दौरान दो प्रकार की प्रीनेटल टेस्टिंग प्रमुख होती हैं। पहला टेस्ट यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि क्या गर्भ में पल रहे भ्रूण में किसी प्रकार की क्रोमोसोम संबंधी असामान्यता तो नहीं है। दूसरे टाइप की प्रीनेटल टेस्टिंग को डायग्नोस्टिक टेस्टिंग कहा जाता है। ये टेस्ट निश्चित तौर पर यह पता लगा सकते हैं कि भ्रूण किसी प्रकार की जेनेटिक कंडीशन या जन्मजात विकार (prenatal testing) से तो प्रभावित नहीं है।

स्क्रीनिंग और डायग्नोस्टिक टेस्ट (Screening and Diagnostic Test)

स्क्रीनिंग और डायग्नोस्टिक टेस्ट प्रेगनेंसी के पहले या दूसरे ट्राइमेस्टर में संकेतकों को ध्यान में रखकर किए जा सकते हें। इनमें अल्ट्रासाउंड जांच (NT scan) और मां के खून का नमूना (Dual Marker, Quadruple Marker, Non-Invasive Prenatal Testing) की जाती है। कुछ महिलाओं के मामले में पहले और दूसरे ट्राइमेस्टर में स्क्रीनिंग की सलाह दी जाती है, जिसे ‘इंटीग्रेटेड’ या ‘कंबाइंड’ स्क्रीनिंग (integrated or combined screening) कहा जाता है। स्क्रीनिंग के नतीजे आमतौर से एक हफ्ते में मिल जाते हैं। यदि ये नतीजे पॉजिटिव होते हैं, तो डायग्नॉस्टिक टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है।

prenatal testing se birth defect ka pata chalta hai.
स्क्रीनिंग और डायग्नोस्टिक टेस्ट प्रेगनेंसी के पहले या दूसरे ट्राइमेस्टर में संकेतकों को ध्यान में रखकर किए जा सकते हें चित्र : अडोबी स्टॉक

क्रोमोसोम संबंधी विकार (Chromosomal disorder)

डायग्नोस्टिक टेस्ट ऐसी प्रक्रिया होती है जिससे 99.9%तक की एक्यूरेसी के साथ यह पता चल जाता है कि भ्रूण में क्रोमोसोम संबंधी विकार है या नहीं। दो प्रकार के डायग्नोस्टिक टेस्ट हैं – कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (CVS) जिसे प्रेग्नेंसी के 10.5 से 13.5 हफ्ते में किया जाता है। एम्नियोसेंटेसिस को प्रेग्नेंसी के 15वें हफ्ते के बाद किया जाता है। आमतौर से डायग्नोस्टिक टेस्ट की प्रक्रियाओं के साथ गर्भपात की आशंका भी होती है, जो कि CVS में 1%तक तथा एम्नियोसेंटेसिस में 1%से कम होती है। कुछ खास जेनेटिक रोगों से संबंधित डायग्नोस्टिक टेस्ट प्रायः संकेतकों के आधार पर किए जाते हैं। क्रोमोसोमल एनेलिसिस के नतीजे आमतौर पर 2 से 3 हफ्तों में मिल जाते हैं।

डाउन सिंड्रोम सम्बन्धी सलाह (Down Syndrome)

जेनेटिक काउंसलिंग का एक बड़ा फायदा यह होता है कि यदि भ्रूण डाउन सिंड्रोम जैसी कंडीशन से ग्रस्त होता है, तो पैरेंट्स को उनके नवजात शिशु के बारे में शुरू से ही समुचित सलाह-मश्विरा मिल जाती है। यदि शिशु में किसी अन्य प्रकार के विकार होते हैं, जैसे कि जन्मजात हृदय विकार या आंतों में अवरोध आदि, तो मेडिकल टीम प्रसव के बाद इन विकारों को दुरुस्त करने की तैयारी कर सकती हैं।

down syndrome ka pata prenatal testing me chal jata hai.
यदि बच्चा डाउन सिंड्रोम जैसी कंडीशन से ग्रस्त होता है, तो पैरेंट्स को प्रीनेटल टेस्टिंगसे इसका पता चल जाता है । चित्र : अडोबी स्टॉक

कब करवानी चाहिए प्रीनेटल टेस्टिंग

प्रीनेटल टेस्टिंग (prenatal testing) आमतौर पर गर्भावस्था के 11 से 13 सप्ताह में किया जाता है।अगर आप अपनी फैमिली में नए शिशु को लाने की तैयारी कर रही हैं या फैमिली में पहले से ही जेनेटिक विकारों तथा क्रोमोसोमल एब्नॉर्मेलिटी की हिस्ट्री रही है, तो प्रीनेटल टेस्टिंग (prenatal testing) और इससे जुड़े संभावित नतीजों की जानकारी प्राप्त करना फायदेमंद होता है।

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 डॉक्टर इन चार्जमेडिकल जेनेटिक्स, मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर लिमिटेड ...और पढ़ें

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