मां बनना एक सुखद अनुभूति है। इसमें 9 महीने तक सामान्य रूप से जीवन जीते हुए नये जीव को जन्म देने का एहसास बराबर महसूस होता रहता है। जब तक कि कोई कॉम्प्लिकेशन नहीं हो। गर्भवती स्त्री रोज़मर्रा की गतिविधियों को बरकरार रख सकती है, मामूली बदलाव के साथ। उन्हें कुछ बातों का ख़ास ख्याल रखना (things not to do in pregnancy) पड़ सकता है, ताकि वे और गर्भ में पल रहा उनका बच्चा दोनों स्वस्थ रह सकें। कुछ गतिविधियां डेवलप हो रहे भ्रूण को संभावित रूप से नुकसान पहुंचा सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान कौन-कौन से काम नहीं(things not to do in pregnancy) करने चाहिए, इसके लिए हमने बात की नोएडा इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में गायनेकोलोजिस्डॉट डॉ. पूजा दीवान से।
डॉ. पूजा बताती हैं, ‘गर्भावस्था के दौरान कुछ खाद्य पदार्थों का सेवन नुकसानदायक हो सकता है। कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जिन्हें गर्भवती स्त्री को खाने से बचना चाहिए। ऐसा भोजन जिसमें लिस्टिरिया बैक्टीरिया होने की संभावना हो, जैसे कि कम प्रोसेस किये हुए मीट, कच्चा मांस, चिकन सलाद, बिना धुले फल या सब्जियां, अनपाश्चुराइज़्ड जूस, डेयरी प्रोडक्ट आदि। इसमें मौजूद लिस्टेरिया प्लेसेंटा को पार कर भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है। जिन मछली (sea fish) में मरकरी होने की संभावना हो, नहीं खाएं। पारा भ्रूण के मस्तिष्क को क्षति पहुंचा सकता है। किसी प्रकार से खराब हुए भोजन से फ़ूड पॉयजनिंग होने की संभावना बनी रहती है। डीहायड्रेशन, फीवर और अंतर्गर्भाशयी सेप्सिस (blood infection) भी हो सकता है। यह भ्रूण के लिए घातक हो सकता है। कच्चे अंडे में साल्मोनेला बैक्टीरिया हो सकता है। गर्भवती को कच्चे अंडे वाले किसी भी खाद्य पदार्थ को लेने से बचना चाहिए। बहुत ज्यादा कैफीन भी प्लेसेंटा को पार कर सकता है और भ्रूण को प्रभावित कर सकता है।’
गर्म पानी में आराम करना गर्भावस्था की परेशानी को कम करने में प्रभावी हो सकता है, लेकिन बहुत अधिक गर्म पानी का प्रयोग, अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आना नुकसानदेह भी हो सकता है। यह हाई बॉडी टेमप्रेचर का कारण बन सकता है, जिससे जन्मजात असामान्यताएं हो सकती हैं। इसलिए हॉट टब और सौना बाथ कम लेना चाहिए। गुनगुने पानी का प्रयोग करना चाहिए।
डॉ. पूजा बताती हैं, ‘कॉन्टैक्ट स्पोर्ट्स से प्लेसेंटल एब्डॉमिनल प्रॉब्लम होने का खतरा बढ़ जाता है। इसमें से प्लेसेंटा गर्भाशय की दीवार से समय से पहले अलग हो जाता है। इससे एबॉर्शन की स्थिति भी हो सकती है, जो समय से पहले जन्म, गर्भावस्था के नुकसान या मरे हुए बच्चे के जन्म का कारण बन सकती है। गर्भवती लोगों को भी चोट लगने का खतरा अधिक होता है। इस समय शरीर में हार्मोनल परिवर्तन होते रहते हैं, जिससे लिगामेंट ढीले पड़ जाते हैं। गर्भावस्था के दौरान पेट आगे की ओर निकलने के कारण गुरुत्वाकर्षण का केंद्र बदल जाता है। इसलिए गर्भावस्था के समय गिरने से बचना चाहिए। स्कीइंग, आइस-स्केटिंग और रॉक क्लाइम्बिंग से परहेज करें।किसी भी झटका लगने वाली गति से बचना चाहिए, जिससे प्लेसेंटल बाधा उत्पन्न होती हो। यह मोशन सिकनेस पैदा कर सकता है।’
डॉ. पूजा कहती हैं, ‘धूल, मिटटी, कूड़े-कचरे की सफाई, पोछा लगाना, भारी सामान उठाने से परहेज करना चाहिए। इससे न सिर्फ इन्फेक्शन होने का खतरा रहता है, बल्कि अधिक वजन उठाने से एबॉर्शन की भी समस्या हो सकती है।’
गंदगी में मौजूद बक्टीरिया से टोक्सोप्लाज्मोसिस का खतरा हो सकता है। इससे बच्चा अंधा या मेंटली रेटारडेड हो सकता है।
प्रेगनेंसी के दौरान ज्यादा व्यायाम नहीं करें। डॉक्टर से परामर्श लेने के बाद ही किसी भी प्रकार की एक्सरसाइज करें। किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या होने पर व्यायाम सीमित करने की भी सलाह दी जा सकती है। स्वस्थ होने पर गर्भवती स्त्री रोज 20-30 मिनट के लिए मध्यम गति के व्यायाम कर सकती है।
पहली तिमाही के बाद पीठ के बल लेटने से बचना चाहिए और ऐसे व्यायाम को बिल्कुल नहीं करना चाहिए, जो उनके असंतुलन या गिरने का कारण बन सकते हैं।
इनके अलावा स्मोकिंग, ड्रिंकिंग या ऐसी दवाओं के प्रयोग से बचना चाहिए, जो हार्मोनल इमबैलेंस के लिए जिम्मेदार हों या एबॉर्शन का जोखिम बढ़ाते हों।
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