मॉनसून का मौसम अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। एलर्जिक अस्थमा (Allergic asthma) एक ऐसी स्थिति है, जहां लंग्स एयरवेज एलर्जेन के ट्रिगर होने के कारण टाइट हो जाते हैं। जिस वजह से अस्थमा बढ़ सकता है। यह आपकी नियमित दिनचर्या को बुरी तरह प्रभावित करता है, इसलिए एलर्जिक अस्थमा (Tips to avoid Allergic asthma) से बचने के लिए महत्वपूर्ण उपायों की जानकारी होना बहुत जरूरी है।
आमतौर पर धूल, मोल्ड बीजाणु और पालतू जानवरों की रूसी जैसे एलर्जी इस समस्या को ट्रिगर करती हैं। जब आप किसी एलर्जेन को अंदर लेती है। तो यह आपके वायु मार्ग को संकुचित कर देता है। जिसके परिणामस्वरूप एलर्जिक अस्थमा जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, इस प्रकार के एलर्जी से बचना बहुत जरूरी है, क्योंकि एलर्जिक अस्थमा काफी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। वहीं कुछ खाद्य पदार्थों का सेवन और एक्सरसाइज के साइड इफेक्ट के तौर पर आपको इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार 2016 में 235 मिलियन लोगों को अस्थमा (Asthma) से पीड़ित पाया गया। इसमें से लगभग 15 से 20 मिलियन लोग भारतीय थें। अस्थमा से पीड़ित मरीजों की बढ़ती संख्या के पीछे वायु प्रदूषण को एक सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है।
हेल्थ शॉट्स ने इस विषय पर मणिपाल हॉस्पिटल कि कंसलटेंट फिजिशियन डॉक्टर सुरुचि मंड्रेकर से बातचीत की। उन्होंने इस विषय पर अपनी राय देते हुए कहा कि “अस्थमा दीर्घकालीन बीमारी है, जोकि आपके एयरवेज में इन्फ्लेमेशन और स्वेलिंग का कारण बन सकती है। वहीं इस वजह से नाक से लंग्स तक पर्याप्त मात्रा में सही तरीके से हवा जाने में दिक्कत आती है।
एक्सपर्ट के अनुसार अस्थमा का कोई स्थाई इलाज नहीं है। लेकिन एक उचित उपचार इसके प्रभाव को कम कर सकता हैं। यदि आप डॉक्टर की सलाह माने और कुछ जरूरी टिप्स को फॉलो करें तो बार बार अस्थमा अटैक आने जैसी समस्याएं नहीं होती।
अस्थमा को रोकने के लिए सबसे पहले उसके ट्रिगर पॉइंट्स को जानना बहुत जरूरी है। कुछ परिस्थिति में अस्थमा लगातार खांसी आने, घबराहट होने और सांस लेने में तकलीफ होने जैसे लक्षणों का कारण बन सकते हैं। इसलिए इन्हें बढ़ावा देने वाले परिस्थितियों की जानकारी होना बहुत जरूरी है।
यदि आपको अपने अस्थमा के लक्षणों की जानकारी है तो इसे एक डायरी में लिखना शुरू करें।
कुछ दिनों तक लगातार खुद को ऑब्जर्व करती रहें। ध्यान रखें कि कौन सा एनवायरमेंटल और इमोशनल फैक्टर आपके अस्थमा को बढ़ावा दे रहा है।
यदि कभी आपको अस्थमा अटैक आए तो ऐसे में किस वजह से ऐसा हो रहा है इसे सबसे पहले दिमाग में रखे। हालांकि, कई बार नए-नए कारणों से भी यह समस्या ट्रिगर हो सकती है।
एक बार अपने अस्थमा ट्रिगर्स को पहचान लेंगे तो इसे अवॉइड करना आपके लिए काफी ज्यादा आसान हो जाएगा। हालांकि, पॉल्यूशन, एलर्जी, फ्लू वायरस और स्मोक कुछ आम अस्थमा ट्रिगर्स के रूप में जाने जाते हैं।
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कस्टमाइज़ करेंअस्थमा एक्शन प्लान तैयार करने से पहले विशेषज्ञ की राय लेना बहुत जरूरी है। यह योजनाएं लिखित रूप से आपके साथ होनी चाहिए। जैसे की कौन सी दवाई कब लेनी है, अस्थमा अटैक को मैनेज करने के तरीके और अस्थमा के लक्षणों को किस तरह नियंत्रित रख सकते हैं। अधिकांश रूप से डॉक्टर द्वारा सुझाए गए प्लांस अस्थमा के लक्षणों को तीन रंगों में विभाजित करती हैं हरा, पीला और लाल।
रेड जोन – यदि आपको अस्थमा के गंभीर लक्षण है, तो आपकी अस्थमा प्लान रेड जोन में रहेगी। जैसे की चलते बोलते आराम करते समय यदि आपको समय सांस लेने में तकलीफ होती है, तो यह रेड जोन अस्थमा के लक्षण हैं।
यलो जोन – यलो जोन अस्थमा अटैक की ओर इशारा करती है, इसके साथ ही यह कुछ आवश्यक उपचारों की ओर भी संकेत देती है। वहीं अस्थमा के लक्षण आपको नियमित गतिविधियों में भाग लेने से रोकते हैं, साथ ही आपकी नींद की कमी का कारण भी बन सकते हैं। वहीं यलो जोन के कुछ लक्षणों में घबराहट और लगातार खांसी आने जैसी समस्याएं शामिल हैं।
ग्रीन जोन – ग्रीन जोन 1 सुरक्षित क्षेत्र है जहां आपको अस्थमा के कोई भी लक्षण प्रभावित नहीं करते हैं।
अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जो कि नियमित रूप से उपचार और ध्यान की मांग करती है। एक सही उपचार और सही एहतियात बरत कर आप इसे नियंत्रित रख सकती हैं।
अस्थमा जैसी समस्या से बचने के लिए सबसे पहले खुद को एलर्जी से बचाने का प्रयास करें। ऐसे में धूल वाले क्षेत्रों में मास्क का प्रयोग करें। घर और घर के आसपास के जगह पर धूल जमा न होने दें। साथ ही आपको किस चीज से एलर्जी है, इस बात का पता करें और उससे खुद को पूरी तरह दूर रखने की कोशिश करें। अन्यथा यह आपके लक्षणों को ट्रिगर कर सकती हैं।
अस्थमा एक दीर्घकालीन स्थिति है, जिसे निरंतर निगरानी और देखभाल की आवश्यकता होती है। इसका मतलब यह है कि यदि आपको एक बार अस्थमा हो गया तो जीवन भर उसका डर बना रहता है। हालांकि, इसे नियंत्रित रखने के लिए डॉक्टर की सलाह और जरूरी एहतियात बरतने की आवश्यकता होती है।
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