वक्त बदला है और अब बच्चे बहुत प्लानिंग के बाद पैदा होते हैं। इसने प्रेगनेंसी के अनुभवों को तो काफी हद तक बदला है। मगर प्रसव के बाद अब भी बहुत सारी महिलाएं कमजाेरी, थकान, तनाव और उदासियों का अनुभव करती हैं। इनमें शहरी, ग्रामीण और विभिन्न आर्य वर्ग की सभी महिलाएं शामिल हैं। प्रसवोत्तर समय में महिलाओं में पोषण और खून की कमी सबसे ज्यादा देखी जाती है। मानसिक तौर पर जो एक नई मां को सबसे ज्यादा परेशान करता है, वह है सहयोग की कमी। राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के दौरान चलिए उन मुद्दों पर ध्यान देते हैं, जो किसी भी महिला में प्रसव के बाद कमजोरी अर्थात पोस्टपार्टम वीकनेस (Postpartum weakness) का कारण बनते हैं।
डॉ ज्योत्स्ना मिश्रा वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं और पिछले दो दशक से अधिक समय से इस क्षेत्र में हैं। वे कहती हैं, “चीजें बहुत बदली हैं। पर अब भी सब कुछ आसान हो गया हो, ऐसा नहीं है। गर्भावस्था और प्रसव किसी भी महिला के लिए एक चुनाैतीपूर्ण समय होता है। फिर चाहें वह अपने बारे में कितनी भी जागरुक क्यों न हो। वास्तव में यह पूरे परिवार का कलैक्टिव एफर्ट होता है, जो एक स्त्री के लिए मातृत्व के इस समय को आसान और सकारात्मक बना सकता है। अपने शरीर की चुनौतियां तो उसे अकेले ही झेलनी हैं, मगर सही पोषण और सहयोग उसकी मुश्किल को आसान बना सकता है।”
प्रसव के बाद बहुत सारी महिलाएं पोस्टपार्टम कमजोरी का सामना करती हैं। यह कमजोरी सामान्य है, लेकिन इसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। सिर्फ एक महिला ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार को उन कारणों के बारे में जानना चाहिए, जो पोस्टपार्टम कमजोरी के लिए जिम्मेदार हैं।
प्रेगनेंसी के 36 सप्ताह में हर महिला बहुत सारे हार्मोनल बदलावों का सामना करती है। पर ऐसा नहीं है कि प्रसव के बाद वे सभी हॉर्मोन वापस ट्रैक पर आ जाते हैं। बल्कि वास्तविकता यह है कि प्रसव के बाद हॉर्मोन्स का ज्वार-भाटा और भी तेज हो जाता है। इस दौरान एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टरोन का स्तर घट जाता है। जिसकी वजह से नई मां लो फील कर सकती है या उसे कमजोरी महसूस हो सकती है।
एक बच्चे को जन्म देना शारीरिक तौर पर लड़ी जाने वाली जंग से कम नहीं है। जिसमें आपके शरीर का हर हिस्सा प्रभावित होता है। फिर चाहें वह प्रसव सामान्य योनि प्रसव हो या सी सेक्शन से होने वाली डिलीवरी। यह थकान एक दिन या एक सप्ताह में रिकवर होने वाली नहीं है। खास बात यह कि इसके बाद बेबी और अपने शरीर की देखभाल करना भी एक महिला को थका सकता है। अगर उसे पूरा आराम नहीं मिलता है तो यह कमजोरी लंबे समय तक रह सकती है।
आहार एवं पोषण विशेषज्ञ डॉ अर्चना बत्तरा कहती हैं, “ प्रेगनेंसी के दौरान और प्रसव के बाद शरीर को पर्याप्त पोषण की आवश्यकता होती है। मगर ज्यादातर महिलाएं इस तरफ ध्यान नहीं दे पातीं। बेबी को संभालना, नींद पूरी न होना और सही आहार विकल्प उपलब्ध न होना तो एक कारण है ही, जो महिलाएं एकल परिवार में रहती हैं उनके लिए भी पोषण की बदली हुई आवश्यकता के साथ सामंजस्य बैठा पाना मुश्किल होता है।
अकसर मां या सास फैट या लड्डू वगैरह पर फोकस करती हैं। ये भी हेल्दी हैं, मगर ये नई मां की पोषण की सारी जरूरताें को पूरा नहीं करते। पोषण की कमी पोस्टपार्टम वीकनेस का एक बड़ा कारण है। आपको यह समझना होगा कि अब एक महिला पर अपने साथ-साथ बच्चे के पोषण की भी जिम्मेदारी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व भर में लगभग 42 फीसदी महिलाएं प्रसवोत्तर एनीमिया (Postpartum anemia) का सामना करती हैं। इसका एक बड़ा कारण प्रेगनेंसी के दौरान आयरन की कमी और प्रसव के दौरान रक्तस्राव है। भारत में यह आकड़ा और भी अधिक विशाल है।
आहार एवं पोषण विशेषज्ञ डॉ अर्चना बत्तरा कहती हैं, “कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान सही पोषण नहीं मिल पाता। जबकि कुछ को यह नहीं पता होता कि पोषण के सही अवशोषण के लिए उन्हें किस तरह के खाद्य पदार्थों को कॉम्बिनेशन में खाना चाहिए। जिसके चलते वे एनीमिया की शिकार हो जाती हैं।”
रक्त की कमी न केवल कमजोरी और थकान का कारण बनती है, बल्कि यह त्वचा, नींद और बालों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। यह एक गंभीर प्रसवोत्तर कमजोरी है। जिस पर ध्यान देना सबसे ज्यादा जरूरी है।
ऊपर के चार कारण मिलकर इस पांचवें कारण का निर्माण करते हैं। प्रेगनेंसी और प्रसव के बाद हुए हॉर्मोन्स के उतार-चढ़ाव, बढ़ी हुई जिम्मेदारी, नींद पूरी न हो पाना, सही पोषण और सहयोग न मिल पाना किसी भी महिला को तनावग्रस्त कर सकता है। जो एंग्जाइटी और पोस्टपार्टम डिप्रेशन को जन्म देता है।
डॉ ज्योत्स्ना कहती हैं, “जनरेशन गैप और लाइफस्टाइल में बदलाव भी नई मां को तनाव देता है। उसकी जरूरतें अलग होती हैं और पुरानी जनरेशन उन्हें अपने चुनौतियों से खारिज कर रहती है। वे महिलाएं ज्यादातर तनावग्रस्त होती हैं, जिन्हें घर में या कार्यस्थल पर उचित सहयोग नहीं मिल पाता।”
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। जब आप तनाव में होंगी तो कुपोषित भी होंगी। ठीक इसी तरह अगर आप कुपोषित हैं, तो आपके चिंता और अवसादग्रस्त होने का जोखिम भी अधिक रहेगा। प्रसव के बाद आपको इन दोनों पर ही ध्यान देने की जरूरत है। वरना शरीर में कमजोरी बनी रह सकती है।
हो सकता है कि आपकी मां और सासू मां ने आपके लिए घी और मेवों के बहुत सारे लड्डू बनाए हों। हेल्दी फैट के लिए आप इन्हें जरूर खाएं। मगर इन्हीं को पर्याप्त न मानें। आपको अपने आहार में दालें, सब्जियां, कैल्शियम रिच फूड और विटामिन डी भी शामिल करना जरूरी है। प्रोटीन एक अत्यावश्यक पोषक तत्व है, जिसे प्रेगनेंसी के दौरान और प्रसव के बाद जरूर लेना चाहिए। प्रसव के बाद पहले 6 महीने आपको हर दिन 80 ग्राम प्रोटीन का सेवन जरूर करना चाहिए।
जब आप डिहाइड्रेट होती हैं, तो अपने आप को अतिरिक्त रूप से थका हुआ महसूस करती हैं। वास्तव में आपके शरीर और ब्रेन को वह ऊर्जा और ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जो पानी आपको देता है। मगर प्रसव के बाद सिर्फ पानी पीना ही पर्याप्त नहीं है। इसके साथ आपको फलों के रस, सूप, दालों आदि को भी अपने आहार में शामिल करना चाहिए।
शिशु को पर्याप्त मात्रा में स्तनपान करवाने के लिए भी आपको हाइड्रेटेड रहना जरूरी है। वरना यह स्तनों में दूध की कमी, फटे होंठों, सिर दर्द और मूड स्विंग्स का कारण बन सकता है। पोस्टपार्टम वीकनेस के इन संकेतों से बचने के लिए खुद को हाइड्रेटेड रखना जरूरी है
आपका शरीर एक जटिल लड़ाई के बाद खुद को रिकवर कर रहा है। यह तभी संभव हो पाएगा जब आप उस पर अतिरिक्त बोझ न डालें और उसे आराम करने दें। प्रसव के बाद पर्याप्त रूप से आराम करना और अच्छी नींद लेना पोस्टपार्टम वीकनेस से उबरने में आपकी मदद कर सकता है।
डॉ ज्योत्स्ना कहती हैं, परिवार के अन्य लोगों का सहयोग लें।
जिम्मेदारियां बांटें और अपनी नींद पूरी करने का समय निकालें। बच्चे की भूख और नींद के समय का पता न होने के कारण कभी-कभी यह जटिल लग सकता है। मगर सही तरह से ट्रैक करें, तो धीरे-धीरे आपको सब समझ आने लगेगा। बेबी के साथ अपनी नींद को सिंक करें।
बच्चों के जन्म का समय साल का कोई भी महीना हो सकता है। सर्दियों में जहां आपके लिए धूप मिलना मुश्किल होगा वहीं गर्मियों के मौसम में धूप में बैठना उससे भी ज्यादा मुश्किल लग सकता है। मगर आपको यह समझना होगा कि विटामिन डी का सर्वोत्तम स्रोत सुबह की धूप है। कैल्शियम युक्त आहार लेने के साथ सुबह पंद्रह से बीस मिनट का समय धूप के लिए निकालें। यह आपके शरीर को रिकवर होने में मदद करेगा।
बेबी की जिम्मेदारी से लेकर घर-रसोई की छोटी-बड़ी जिम्मेदारियों तक, सब का जिम्मा खुद न उठाएं। इस समय आपकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी अपना और बेबी का ध्यान रखना है। नींद की कमी और हॉर्मोनल बदलाव आपको थोड़ा चिड़चिड़ा बना सकते हैं। मगर सजग होकर आपको इसे खुद पर हावी होने से बचाना है। नए समय को एन्जॉय करें और खुश रहें।
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