अस्थमा के रोगी के लिए काफी मुश्किलें आती हैं। वे यह नहीं जान पाते हैं कि अगला अस्थमा अटैक उन्हें कब आ जाएगा। इससे उनकी सांस फूलने लग जाती है। वे बुरी तरह से थक जाते हैं। एलोपैथ मेडिसिन तत्काल राहत तो दे देती है। इसके साइड इफेक्ट भी बहुत हैं। आयुर्वेद की मदद से बीमारी का प्रबंधन किया जा सकता है।आयुर्वेद एक ऐसा तरीका है, जिससे अस्थमा के रोगियों को दर्दनाक स्थिति से राहत और आराम मिलता है। जानते हैं कि आयुर्वेद किस तरह अस्थमा को मैनेज (Ayurvedic treatment for Asthma) करने में मदद करता है?
अस्थमा एक क्रोनिक रेस्पिरेटरी डिजीज है, जो एयर पाथवेज में सूजन और संकुचन का कारण बनती है। पाथवेज फेफड़ों में हवा को अंदर और बाहर ले जाने वाली ट्यूब हैं। इससे अस्थमा से पीड़ित व्यक्तियों के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है। यह रिएक्शन पोलेन ग्रेन्स, धूल कण और पालतू पशुओं के बाल और रूसी से एलर्जी के कारण हो जाती है। यह एयर पोलूशन, सांस में संक्रमण, एक्सरसाइज और यहां तक कि तनाव के संपर्क में आने के कारण भी हो सकती है।
एयर पाथवेज की सूजन के कारण अत्यधिक बलगम का उत्पादन भी हो सकता है। यह हवा के मार्ग में और अधिक संकुचन का कारण बनता है।
इसके कारण रोगियों को घरघराहट, खांसी, सीने में जकड़न और सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या बार-बार हो सकती है। स्थिति की गंभीरता हर व्यक्ति और हर मौसम में अलग-अलग होती है। ट्रिगर्स की पहचान करके, जीवनशैली में कुछ बदलाव लाकर और लक्षणों का उचित उपचार कर अस्थमा को मैनेज किया जा सकता है।
आयुर्वेद एक्सपर्ट और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत राज गुप्ता बताते हैं, ‘आयुर्वेद से न केवल अस्थमा के लक्षणों का इलाज किया जा सकता है, बल्कि ट्रिगर्स को भी खत्म किया जा सकता है। इससे तीव्रता को कम कर श्वसन तंत्र को मजबूत किया जा सकता है। फेफड़ों की कार्यक्षमता में भी सुधार हो सकता है। इससे व्यक्ति के संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार होता है।’
डॉ. प्रशांत राज गुप्ता बताते हैं,’आयुर्वेदिक चिकित्सा में अस्थमा को ‘तामक श्वास (‘Tamaka Shwasa)’ कहा जाता है। इसे दोषों के असंतुलन के कारण श्वसन तंत्र का विकार माना जाता है।
आयुर्वेद चिकित्सा की एक समग्र प्रणाली है। यह मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन पर जोर देती है। अस्थमा के उपचार में दोषों को संतुलित करना और शरीर में सामंजस्य स्थापित करना शामिल है। विशिष्ट दोषों में असंतुलन विशिष्ट लक्षण का कारण बनता है। इसलिए सबसे पहले दोष को पहचानना जरूरी है। जैसे कि वात दोष के कारण हुए अस्थमा में सूखी खांसी और घरघराहट होती है।
यह शुष्क और ठंडे मौसम के संपर्क में आने से शुरू हो सकती है। पित्त (अग्नि तत्व) अस्थमा में गर्मी, सूजन और छाती में जलन महसूस होती है। यह आमतौर पर संक्रमण, एलर्जी और प्रदूषण से शुरू होता है। कफ अस्थमा के कारण बलगम अधिक आता है। यह एलर्जी, कुछ खाद्य पदार्थों और नम वातावरण के संपर्क में आने से शुरू हो सकता है।’
डॉ. प्रशांत राज गुप्ता के अनुसार, हर्बल उपचार, आहार, जीवनशैली में बदलाव, पंचकर्म। इससे दोष संतुलित होने के साथ-साथ सूजन में कमी आती है और श्वसन प्रणाली मजबूत होती है।
हर्ब और स्पाइसेज ब्रोन्कोडायलेटर और एक्सपेक्टोरेंट गुण दिखाते हैं। ये वायुमार्ग खोलने और कंजेशन को कम करने में मदद करते हैं। सबसे प्रभावी में से कुछ में शामिल हैं:
वसाका (Vasaka)
तुलसी (Tulsi)
मुलेठी (Liquorice)
मिर्च (Long pepper)
इलायची (Cardamom)
दालचीनी (Cinnamon)
शहद (Honey)
अदरक (Ginger)
अस्थमा के रोगियों को आम तौर पर आसानी से पचने वाले और पौष्टिक खाद्य पदार्थ लेने चाहिए। उन्हें गर्म सूप, पकी हुई सब्जियां और हर्बल टी का सेवन करना चाहिए। अस्थमा के मरीज को भारी, तैलीय और ठंडे खाद्य पदार्थों से परहेज़ करना चाहिए। फ़ूड ट्रिगर्स से बचना, भोजन को छोड़े बिना नियमित खाने के कार्यक्रम का पालन करना और ध्यान से खाना ये सभी पाचन प्रक्रिया पोषक तत्वों को शरीर में पहुंचाने में मदद करते हैं।
जीवनशैली में बदलाव में के लिए एलर्जी, धूल, पोलेन ग्रेन और धुएं जैसे सामान्य ट्रिगर्स से बचना चाहिए। श्वसन तंत्र को मजबूत करने और फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार करने वाली तकनीकें भी अपनाना चाहिए। हाफ स्पाइनल ट्विस्ट और कोबरा पोज़ जैसे कुछ योग आसन चेस्ट को खोलने में मदद करते हैं। अनुलोम विलोम जैसे गहरी सांस लेने के व्यायाम श्वसन मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करते हैं।
पंचकर्म चिकित्सा शरीर से बलगम और विषाक्त पदार्थों को निकालने में प्रभावी है। ये दोषों में संतुलन लाने में मदद करते हैं। वमन और विरेचन (शुद्धिकरण) जैसे उपचार (Ayurvedic treatment for Asthma) कुछ लोगों के लिए फायदेमंद हैं। जिन लोगों को कफ और पित्त दोषों में असंतुलन होता है।
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