नींद हमें स्वस्थ रखती है। यह हमारे जीवन की गुणवत्ता को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। यदि हम नींद के लिए जरूरी घंटे पूरी नहीं कर पाते हैं, तो इसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। ऐसे समाज में जहां शिफ्ट में काम करना आम बात है, नाइट शिफ्ट में काम करने वालों की नींद का पैटर्न अक्सर बाधित होता है। हालिया शोध बताते हैं कि नाइट शिफ्ट पैटर्न के कारण स्लीप डिसऑर्डर के साथ-साथ अन्य स्वास्थ्य समस्याएं (night shift work effect) भी हो सकती हैं।
नीदरलैंड के शोधकर्ताओं ने अलग-अलग शिफ्ट में काम करने वाले लोगों और उनकी स्लीपिंग पैटर्न पर शोध किया गया। नींद संबंधी विकारों और वर्किंग शिफ्ट के बीच संबंध को समझने के लिए शोधकर्ताओं की टीम ने 37,000 से ज़्यादा लोगों पर रिसर्च किया। उन्होंने पाया कि नियमित रूप से रात की शिफ्ट में काम करने वाले आधे से ज़्यादा लोगों में नींद संबंधी विकार था। उन्हें अनिद्रा, स्लीप एपनिया या रेस्टलेस लेग सिंड्रोम की समस्या थी। नींद बाधित होने के कारण अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी देखी गई।
रात में सोने के स्थान पर जागने के कारण सर्कैडियन रिद्म आमतौर पर बाधित हो जाती है। शोध से पता चलता है कि सर्कैडियन रिद्म पर्यावरण के संकेतों, मुख्य रूप से सूर्य के प्रकाश पर प्रतिक्रिया करती है। रात की शिफ्ट (Night Shift) में काम करने वाले एम्प्लॉई की सर्कैडियन रिद्म (Circadian Rythm) दिन में सोने के लिए एडजस्ट नहीं हो पाती है। इसके कारण हुआ असंतुलन महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। शोध से यह भी पता चलता है कि बाधित नींद का प्रभाव अक्सर कई दिनों तक बना रह सकता है। इसके कारण कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
शिफ्ट में काम करने वाले लोग अकसर काम के कारण तनाव में रहते हैं। तनावपूर्ण वर्किंग कल्चर के कारण उन्हें घबराहट, चिड़चिड़ापन और एंग्जायटी का अनुभव करना पड़ता है। सर्कैडियन लय की लगातार गड़बड़ी के कारण लगातार नींद की कमी हो जाती है। इसके कारण क्रोनिक थकान, न्यूरोटिसिज्म, क्रोनिक एंग्जायटी और डिप्रेशन होता है। साथ हो मूड स्विंग का भी अनुभव होता है।
नाइट शिफ्ट में काम करने और हृदय संबंधी विकारों के विकास के बीच एक मजबूत संबंध देखा जाता है। नाइट शिफ्ट में काम करने वाले लोगों में औसतन इस्केमिक हृदय रोग का जोखिम 40% अधिक हो सकता है। इसके अलावा, शिफ्ट में काम करने वाले लोगों में जीवनशैली की ऐसी आदतें विकसित हो जाती हैं, जो बाद में हृदय संबंधी जोखिम के प्रमुख कारक बन जाते हैं। स्मोकिंग, ओबेसिटी और कुल कोलेस्ट्रॉल का हाई लेवल।
नाइट शिफ्ट का सीधा प्रभाव मेटाबोलिज्म पर पड़ता है। इसके कारण सामूहिक रूप से मोटापा, ट्राइग्लिसराइड्स का हाई लेवल, लो एचडीएल कोलेस्ट्रॉल,फास्टिंग में हाई ग्लूकोज और हाई ब्लड प्रेशर हो सकता है। मेटाबोलिक सिंड्रोम टाइप 2 डायबिटीज और हार्ट डिजीज के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है।
कई अध्ययनों में रात की शिफ्ट में काम करने वाले एम्प्लॉई में मेटाबोलिज्म संबंधी गड़बड़ी की अधिक सूचना दी गई। इनमें अधिक वजन, मोटापा, ट्राइग्लिसराइड्स और कोलेस्ट्रॉल लेवल में वृद्धि शामिल है। इन प्रभावों को बिगड़ी हुई सर्कैडियन लय, पाचन संबंधी गड़बड़ी, साथ ही जीवनशैली की आदतों में बदलाव का परिणाम माना जाता है। इसमें भोजन की गुणवत्ता और समय के साथ-साथ अधिक स्नैकिंग शामिल है।
शिफ्ट में काम करने वाले एम्प्लॉई द्वारा खाए जाने वाले भोजन की कुल मात्रा कुल ऊर्जा सेवन को प्रभावित नहीं करती है। खाने की फ्रेक्वेंसी और समय अक्सर अलग-अलग होते हैं। इसके अलावा नाइट शिफ्ट में काम करने वाले कर्मचारी कभी-कभी नींद की कमी के कारण अधिक फैट और कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करने लग जा सकते हैं। साथ ही छोटे ब्रेक के दौरान अधिक बार स्नैकिंग भी कर सकते हैं।
रात की शिफ्ट में काम करने वाले 20 से 75% कर्मचारी पाचन संबंधी परेशानियों का अनुभव करते हैं। ये भोजन के समय और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कार्यों के बीच असंतुलन से जुड़े होते हैं। इन कार्यों में गैस्ट्रिक, पित्त और पैनक्रीआज के सीक्रेशन, आंतों की गति, एंजाइम गतिविधि, आंत में भोजन अवशोषण की दर और भूख से संबंधित हार्मोन का स्राव शामिल होते हैं।
1.खूब पानी पिएं, लेकिन सोने से कई घंटे पहले पीना बंद कर दें।
2. दिन के अंत में स्वीट क्रेविंग से बचें।
3.रात की शिफ्ट में काम करते समय तले हुए, मसालेदार और प्रोसेस्ड फ़ूड खाना बंद करें।
4.अपने आहार में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा का जरूरी संतुलन शामिल करें।
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