नई मां और नए पिता के लिए भी सबसे बड़ा संघर्ष होता है नींद पूरी करना। वे बहुत मेहनत से बेबी को सुलाने की कोशिश करते हैं और बेबी सो भी जाता है। पर जैसे ही उनके सोने का समय होता है, बेबी जाग जाता है। कभी-कभी तो पूरा दिन और रात इसी संघर्ष के साथ बीत जाते हैं। यही वजह है कि पेरेंटिंग के शुरुआती दिनों में ज्यादातर माता-पिता बच्चे की स्लीप साइकल और अपनी नींद पूरी करने के प्रश्न गूगल करते हैं। तो अगर आप भी इसी तरह के संघर्ष से गुजर रहीं हैं, तो आपकी मदद करने के लिए हम यहां हैं। यहां हम लाए हैं एक्सपर्ट के सुझाव जो बेबी की नींद (Baby Sleep) समझने में आपकी मदद करेंगे। ताकि आप भी नींद पूरी कर सकें।
जब बच्चे पैदा होते हैं, तो नई मां यह नहीं समझ पाती कि उसका बच्चा कब सोता है और कब जागता है? जब मां के सोने का समय होता है, तो बच्चा जाग जाता है और मां को परेशान करने लगता है। ऐसी स्थिति में मां की नींद पूरी नहीं हो पाती है। हालांकि नवजात शिशु दिन और रात के ज्यादातर समय सोते रहते हैं। वह कुछ घंटों पर केवल दूध पीने के लिए जागते हैं। नए माता-पिता के लिए अक्सर यह जानना मुश्किल होता है कि नवजात शिशु को कितनी देर और कितनी बार सोना चाहिए।
शुरुआत में बच्चे के सोने का कोई निर्धारित कार्यक्रम नहीं होता है। वे कभी दिन में सोता है, तो कभी रात में जागता रहता है। नई मां बेबी के स्लीप साइकल को कैसे समझे और कैसे उसे ठीक करे, यह जानने के लिए हमने बात की गुरुग्राम के पारस हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट, पीडिएट्रिक्स ऐंड नीयोनेटोलॉजी डॉ. राकेश तिवारी से।
डॉ. राकेश तिवारी बताते हैं, ‘आमतौर पर नवजात शिशु दिन में करीब 8 से 10 घंटे और रात में लगभग 9 घंटे सोते हैं। कम से कम 3 महीने की उम्र तक कुछ बच्चे रात में 5-6 घंटे तक जागे रह जाते हैं, तो कुछ बच्चे 1 वर्ष के करीब तक रात में 3-4 घंटे नहीं सो पाते हैं।
इसके पीछे वजह यह है कि नवजात शिशुओं का पेट छोटा होता है और उन्हें दूध पीने के लिए हर कुछ घंटों में जागना पड़ता है। ज्यादातर मामलों में वे हर 3 घंटे में भूखे हो जाते हैं। यह उम्र और वजन के अनुसार दूध की मात्रा पर भी निर्भर करता है। कभी-कभी कुछ दिक्कतों के कारण भी शिशु रात में ज्यादा देर तक जागता रहता है।’
जानकारी के अभाव में नई मांएं नींद लाने के लिए बच्चे को बेड पर लिटाकर मुंह में बॉटल पकड़ा देती हैं। यह एक गलत अभ्यास है। इससे कान में संक्रमण और घुटन हो सकती है।
यदि आपका शिशु लंबे समय तक सोता रहता है या सोते हुए अचानक जाग जाता है और रोने लगता है, तो उसे कान में संक्रमण की समस्या हो सकती है। इसके लिए तुरंत अपने पेडिएट्रिशियन से मिलें।
वयस्कों की तरह बच्चों की नींद के भी कई प्रकार होते हैं। गर्भावस्था के अंतिम महीनों के दौरान शिशु की नींद के पैटर्न बनने लगते हैं। पहले एक्टिव स्लीप, फिर लगभग आठवें महीने तक क्वाइट स्लीप।
रैपिड आई मूवमेंट(REM) : यह एक हल्की नींद है जब बच्चों को सपने आते हैं और उनकी आंखें तेजी से आगे-पीछे होती हैं। हालांकि बच्चा दिन भर में लगभग 16 घंटे सोता है, लेकिन इसका लगभग आधा हिस्सा REM नींद होती है।
नॉन रैपिड आई मूवमेंट (Non-REM sleep): इसमें कई चरण होते हैं। शुरुआत में आंखें कई बार खुलती और बंद होती हैं। हल्की नींद या बच्चा हिलता-डुलता रहता है और आवाज के साथ चौंक भी सकता है। तीसरे-चौथे चरण में बच्चा शांत होकर गहरी नींद और फिर बेहद गहरी नींद में सो जाता है।
जब बच्चे को नींद आती है, तो वह अलग-अलग एक्टिविटीज से संकेत देता है
आंखें मलना
उबासी लेना
कहीं और देखने लग जाना
अंगड़ाई लेना
रोना
बच्चों के रोने की अवस्था में पहुंचने से पहले उन्हें दूध पिलाना सबसे अच्छा होता है। क्योंकि भूख लगने पर वे इतने परेशान होकर रोने लगते हैं कि ब्रेस्टफीडिंग या बॉटल को भी मना कर देते हैं।
शिशु अपने सोने और जागने के पैटर्न को स्थापित करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, खासकर सोने में। आप अपने बच्चे को सोने के लिए तैयार होने के संकेतों को पहचानकर, उसे अपने आप सो जाना सिखा सकती हैं। उसे आरामदायक और सुरक्षित नींद के लिए हमेशा सही वातावरण देने की कोशिश करें।
बच्चे खुद साेना नहीं जानते। वे सिर्फ नींद आने का संकेत देते हैं। ऐसी स्थिति में मां उनकी स्लीप साइकिल को ठीक कर उन्हें सुला सकती हैं। यह सबसे आम है कि जैसे ही बच्चे को नींद आने के संकेत मिलते हैं, तो ज्यादातर मांएं बच्चे को सोने के लिए हिलाना या स्तनपान कराना शुरू कर देती हैं।
मां को बच्चे का एक रूटीन विकसित करना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गोद में दूध पीते समय बच्चा सोए नहीं। इससे उसका स्लीप पैटर्न वैसा ही बन जाएगा। यह आदत डालने की कोशिश करें कि ब्रेस्टफीडिंग कराने के बाद या थोड़ी देर उसे बाहों में झुलाएं। तब जब उसकी आंखें नींद में जाने लगें, तो उसे धीरे से बेड पर डाल दें। इस तरह बच्चा अपने आप सो जाना सीख जाता है।
जब आपका बच्चा सो रहा हो, तब सॉफ्ट व स्लो म्यूजिक बजाएं। इससे उसे सोने के समय की दिनचर्या स्थापित करने में मदद मिल सकती है।
बच्चे का बिस्तर नरम सतह वाला हो।
बिस्तर सख्त नहीं, बल्कि ढीला हो।
बच्चे के ऊपर बहुत अधिक कंबल न डालें, इससे उसे सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
उसे पेट के बल नहीं, बल्कि एक करवट लेकर सोने की आदत डालें।
वह जिस पालने में सोता है, उसका गद्दा सही फिटिंग वाला होना चाहिए। बहुत अधिक हार्ड गद्दा नींद को खराब कर सकता है।
पालने से तकिए, रजाई, किसी भी प्रकार के खिलौने को हटा दें।
नए जन्मे बच्चे को ठंड लगती है। इसलिए गर्मी के दिन में भी सोते समय हल्की चादर या कंबल से उसे ढंक दें। कंबल से चेहरा न ढंके, ताकि वह अच्छी तरह सांस लेता रहे। सांस लेने में दिक्कत होने पर भी बच्चा सो नहीं पाता है।
शिशु का सिर खुला रहना चाहिए।
सुलाने के लिए इनफैंट सीट, कार सीट, स्ट्रॉलर, इन्फैंट करियर, इन्फैंट स्विंग्स का प्रयोग कभी न करें। इससे बच्चे की सांसें घुटने का खतरा बना रहता है।
बच्चे को सोते समय हमेशा हल्के कपड़े पहनाएं।
कमरे में तेज बल्ब न जलाएं। बच्चे के सोने के समय डिम लाइट का प्रयोग करें। ध्यान रखें कि लाइट उसकी आंखों की उल्टी दिशा में हो।
उसके जगने के पहले उसका दूध तैयार कर दें या ब्रेस्टफीडिंग के लिए स्वयं को तैयार कर लें।
यह भी पढ़ें:-टेस्टी और हेल्दी साबूदाना बर्फी बदल देगी आपका मीठे का अंदाज