बच्चों के शरीर पर वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव अधिक चिंता का विषय होता है, क्योंकि उनका प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) और फेफड़ों का विकास पूरी तरह से नहीं हुआ होता। ऐसे में उनके शरीर पर प्रदूषक अधिक गंभीर असर डालते हैं।
दूसरे, बच्चे घर से बाहर ज्यादा समय बिताते हैं, जहां ट्रैफिक से पैदा होने वाले प्रदूषक, पावर प्लांट से निकलने वाला धुंआ और अन्य ज्वलनशील पदार्थों से पैदा होने वाले हानिकारक तत्व आमतौर पर ज्यादा मात्रा में मौजूद होते हैं।
हालांकि वायु प्रदूषण के कारण छोटी-मोटी बीमारियों के बढ़ने की आशंका बनी रहती थी। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण की वजह से शिुशुओं की मृत्यु दर बढ़ती है। साथ ही उनमें अस्थमा तथा एटॉपी का जोखिम बढ़ जाता है। ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि वायु प्रदूषण की वजह से मृत्यु का जोखिम बढ़ता है।
इसके चलते बच्चों में भी क्रोनिक रोग बढ़ते हैं। गर्भावस्था प्रभावित हो सकती है और रोगों की गंभीरता बढ़ती है।
बहुत से लोगों को यह भ्रांति है कि बच्चों को वायु प्रदूषण के संपर्क में आना चाहिए। ताकि उनकी इम्युनिटी बेहतर बन सके, लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा होने पर वे रोगाणुओं की बजाय कैंसरकारी विषाक्त तत्वों के संपर्क में ज्यादा आते हैं। दिल्ली जैसे शहर में तो 24 घंटे वायु प्रदूषण को झेलना करीब 10 सिगरेट पीने जितना नुकसान करता है।
आए दिन एयर क्वालिटी में भारी बदलाव आता रहता है। जिसके चलते प्रदूषण के स्तर में हर दिन उतार-चढ़ाव बना बना रहता है। आमतौर से सवेरे 6 से 8 बजे का समय सबसे खराब होता है। जबकि दोपहर से लेकर शाम 5 बजे का समय कमोबेश बेहतर होता है क्योंकि तापमान कुछ अधिक रहता है।
एयर क्वालिटी पर नज़र रखने से आप बच्चों के बाहर खेलने-कूदने के समय को बेहतर ढंग से तय कर सकते हैं। बाहरी गतिविधियों के लिए दोपहर से लेकर शाम 5 बजे तक का समय ज्यादा सही होता है।
प्रदूषण और कोविड-19 दोनों ही चीजों से मास्क आपको और आपके बच्चों का बचा सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप बच्चे को मास्क को सही तरीके से पहनना सिखाएं। खासतौर से तब जब वह अन्य किसी के भी संपर्क में आ रहा है।
कम से कम 8 से 10 घंटे के लिए, सोने के दौरान साफ हवा होना महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में एयर प्योरिफायद आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं। रात के समय घर में एयर प्योरिफायर का इस्तेमाल करें।
इन दिनों कई कारों में बिल्ट-इन-हीपा फिल्टर्स लगे होते हैं या स्टैंडर्ड एसी फिल्टर्स के स्थान पर हीपा फिल्टर्स लगाए जाते हैं। इनका प्रयोग यात्रा के दौरान आपके बच्चों को प्रदूषण से बचा सकता है।
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कस्टमाइज़ करेंअनेक अवसरों पर, घरों के अंदर प्रदूषण का स्तर बाहरी प्रदूषण से अधिक हो सकता है। खाना पकाने, साफ-सफाई करने, रूम फ्रैशनर के प्रयोग, अगरबत्तियां या मोमबत्तियां जलाने से ही घर के अंदर पीएम 2.5 लैवल में बढ़ोतरी हो सकती है। ऐसे में एग्ज़ॉस्ट का प्रयोग अवश्य करें।
जिस प्रदूषित हवा को हम अपनी सांसों के रास्ते शरीर में उतारते हैं, उनके जरिए ओज़ोन, नाइट्रोजन डायऑक्साइड, प्रदूषक तत्व, डीज़ल एग्ज़ॉस्ट पार्टिकल्स वगैरह भी हमारे फेफड़ों में समाते हैं। भोजन में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट आपके शरीर को दुष्प्रभावों से बचाने के लिए आवश्यक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
धनिया पत्ती, चौलाई का साग, सहजन की फलियां, पार्सले, बंद गोभी और शलगम विटामिन सी के अच्छे स्रोत होते हैं।
आंवला, संतरा और अमरूद भी विटामिन सी से भरपूर होते हैं। विटामिन सी की दैनिक खुराक लेने का सबसे आसान तरीका है अपनी दैनिक खुराक में 2 नींबुओं का रस शामिल करें। सिट्रस फ्रूट्स जरूर खाएं।
हमारे भोजन में विटामिन ई आमतौर पर वनस्पति तेलों से आती है। सनफ्लावर, सैफफ्लावर और राइस ब्रैन ऑयल इसके सबसे प्रमुख स्रोत हैं और इनके बाद कनोला, पीनट तथा ऑलिव ऑयल आते हैं।
इसी तरह, बादाम तथा सूरजमुखी के बीजों में भी विटामिन ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
सैलमन, रो और ई में विटामिन ई काफी मात्रा में होता है।
मिर्ची पाउडर, काली मिर्च, लौंग, ओरेगेनो, बेसिल और पार्सले में भी विटामिन ई पाया जाता है।
पत्तेदार सब्जियां जैसे कि चौलाई का साग, धनिया, मेथी, पालक और लेटस आदि में बीटा कैरोटिन की अधिक मात्रा पायी जाती है। मूली की पत्तियों और गाजर में भी बीटा कैरोटिन प्रचुरता से होता है।
1. मेवे और बीज जैसे कि अखरोट, चिया सीड्स तथा फ्लैक्स सीड्स
2. मेथी बीज, सरसों बीज, हरी पत्तेदार सब्जियां, काला चना, राजमा आदि ऐसे भोज्य पदार्थ हैं जो काफी मात्रा में ओमेगा-3 प्रदान करते हैं।
शारीरिक रूप से सक्रिय रहें और नियमित व्यायाम करें।
इन सभी सावधानियों का पालन करने से आपके बच्चों की सेहत पर वायु प्रदूषण का असर घटता है, लेकिन ये उपाय सीमित अवधि के लिए कारगर हो सकते हैं। हमें प्रदूषण से निपटने के दीर्घकालिक उपाय तलाशने के लिए संकल्प लेना ही होगा।
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