अपने नवजात बच्चे को दूध पिलाना सुखद एहसास से भर देता है। अक्सर यह एहसास उन मांओं को परेशान कर देता है, जो स्तनपान संबंधी जटिलताओं का अनुभव करती हैं। ये तब और भी समस्या बढ़ा देते हैं, जब इनके साथ फटे हुए और दर्द वाले निपल्स, रैशेज या स्तनपान कराते समय दर्द भी होता है। बच्चे के विकास के लिए स्तनपान कराना जरूरी है। यदि कुछ बातों को ध्यान में रखा जाये, तो यह प्रक्रिया भी ख़ुशी देने वाली हो सकती (breastfeeding complications) है।
स्तनपान जरूरी है, क्योंकि स्तन का दूध नवजात शिशु को वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन सहित जरूरी पोषक तत्व प्रदान करता है। यह मां और बच्चे की बोन्डिंग में भी मदद करता है। नवजात शिशुओं के लिए स्तनपान किस प्रकार जरूरी है, यह समझने के लिए हेल्थ शॉट्स ने लैक्टेशन कंसल्टेंट डॉ. अनघा मधुराज कुलकर्णी से बातचीत की।
डॉ. अनघा मधुराज बताती हैं, “स्तनपान से शिशुओं में अस्थमा, मोटापा, मधुमेह और अचानक चाइल्ड डेथ सिंड्रोम का खतरा काफी कम हो सकता है। मांओं को स्तन और ओवरी कैंसर, टाइप 2 डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा कम होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले छह महीनों के लिए स्तनपान की विशेष सिफारिश करता है। इससे जुड़ाव, विकास, मस्तिष्क के विकास और बीमारियों से सुरक्षा हो पाती है।‘’
ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कुछ समस्या हो सकती है।
स्तनपान ठीक से नहीं होने पर आम तौर पर निप्पल में दर्द उत्पन्न हो सकता है। जब बच्चा स्तन को जोर से पकड़ता है, तो यह दूध के उचित प्रवाह को बनाता है। यह निपल पर घर्षण को कम करता है, जिससे दरारें या घर्षण का खतरा कम हो जाता है। यह पहचानना जरूरी है कि स्तनपान के शुरुआती दिनों में माँ और बच्चे दोनों के समायोजन के दौरान क्षणिक असुविधा हो सकती है; लगातार या तीव्र दर्द एक संकेत है कि किसी चीज़ पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है, ”डॉ कुलकर्णी कहते हैं।
स्तनपान कराते समय स्तनों पर चकत्ते पड़ना आम है। ये एलर्जी के कारण हो सकता है। स्तनपान के कारण कुछ चकत्ते भी हो सकते हैं, जिसमें लगातार दूध पिलाने के कारण निपल के आसपास की संवेदनशील त्वचा में सूजन हो सकती है। वास्तव में, स्तन के दूध की नमी या टाइट फिटिंग वाली ब्रा भी इस दाने का कारण बन सकती है।
डॉ. कुलकर्णी के अनुसार, याद रखने वाली बात है, ‘स्तनपान के कारण बच्चे की त्वचा पर चकत्ते आमतौर पर नहीं होते हैं। अगर मां एलर्जी पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करती है, तो यह स्तन के दूध के माध्यम से बच्चे में जोखिम पैदा कर सकता है। स्तन के दूध में मौजूद पदार्थ मां के सेवन के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। आम एलर्जी पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों में गाय का दूध, अंडे, मूंगफली, ड्राई फ्रूट्स, सोया, गेहूं और मछली शामिल हैं।
यदि स्तनपान कराने वाली मां इन एलर्जी कारकों का सेवन करती है, तो उसके बच्चे में एलर्जी होने की संभावना हो जाती है। एलर्जी पैदा करने वाला प्रोटीन स्तन के दूध के माध्यम से बच्चे में आना संभव है। यह संभावित रूप से चकत्ते, एक्जिमा या पित्ती जैसी स्किन संबंधी प्रतिक्रियाओं को जन्म दे सकता है।
गलत ढंग से स्तनपान कराने और खराब लैचिंग के कारण डक्ट या स्तन की नली अवरुद्ध हो सकती है। मिल्क डक्ट के संकड़े होने पर निपल टेंडर हो जाते हैं। ब्रेस्ट में इन्फेक्शन होने पर मास्टिटिस हो जाता है। इसके कारण लालिमा, सूजन और फ्लू जैसे लक्षण हो जाते हैं। यह दूध न पिलाने, अपर्याप्त दूध पिलाने और पिलाने के दौरान ध्यान नहीं देने के कारण भी हो सकता है।
डॉ. कुलकर्णी के अनुसार, आमतौर पर स्तनपान कराने से दर्द नहीं होता है। शुरुआत में दर्द हो सकता है, लेकिन उचित लैचिंग तकनीक से निपल्स को फटने से बचाया जा सकता है। स्तनपान के दौरान गर्दन, पीठ या कंधे में दर्द नहीं होना चाहिए।
कुछ महिलाओं के निपल्स चपटे, उल्टे या बड़े हो सकते हैं। इसके कारण बच्चों को ठीक से स्तन पकड़ में न आने की समस्या हो सकती है। अन्य प्रॉब्लम में कम दूध आना, बढ़े हुए स्तन, हाइपरलैक्टेशन और स्तन पर फोड़ा हो जाना हो सकता है। कुछ महिलाओं को निपल वैसोस्पास्म, थ्रश इन्फेक्शन और इमोशनल चुनौतियां भी शामिल हैं।
सावधानियों से स्तनपान संबंधी प्रॉब्लम को बिलकुल रोका जा सकता है। स्तनपान कराने की तकनीक के बारे में सही जानकारी होना जरूरी है। बच्चे की भूख के संकेतों को समझना, सही भोजन पैटर्न बनाए रखना और ब्रेस्टफीडिंग एडवाइजर से सलाह लेना भी जरूरी है।
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