वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन के अनुसार, तंबाकू सेवन हर साल करीब 8 मिलियन मौतों का कारण बनता है। हालांकि तंबाकू सेवन करने वाले प्रमुख रूप से धूम्रपान करते हैं, लेकिन इधर कुछ समय से स्मोकलैस यानी धुंआरहित तंबाकू (Smokeless tobacco) सेवन में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। इसका मुख्य कारण है यह गलत प्रचार कि यह धूम्रपान के मुकाबले यह कम नुकसानदायक होता है। जबकि वास्तविकता यह है कि स्मोकलैस तंबाकू भी आपकी प्रजनन क्षमता, प्रोडक्टिविटी, हार्ट और लंग हेल्थ को प्रभावित करता है।
भारत, धुंआरहित तंबाकू (Smokeless tobacco) सेवन के मामले में दुनियाभर में 75% हिस्सेदारी रखता है। महिलाओं और युवतियों में इसका प्रयोग तेजी से बढ़ा है। उल्लेखनीय है कि भारत में बीड़ी और धुंआरहित तंबाकू न सिर्फ सबसे सस्ते हैं, बल्कि इन पर टैक्स भी सबसे कम है। ऐसे में इनका चलन काफी बढ़ गया है। जहां तक स्वास्थ्य संबंधी चेतावनियों का सवाल है, तो बीड़ी पर ऐसी कोई चेतावनी नहीं होती।
हालांकि धुंआरहित तंबाकू उत्पादों पर यह दर्ज होती है, लेकिन अंग्रेज़ी में और वो भी काफी छोटे प्रिंट में रहती है। इस बीच, सरकार लगातार तंबाकू नियंत्रण नीतियों को लागू करने की कोशिश कर रही है, लेकिन इंडस्ट्री किसी-न-किसी तरीके से इसे रोकने में अब तक सफल रही है।
GATS सर्वे के मुताबिक, 15 साल से अधिक उम्र की 12.8% महिलाएं SLT का सेवन करती हैं और भारत में, करीब 17% महिलाओं ने 15 साल की कम उम्र में SLT का सेवन शुरू कर दिया था जो कि पुरुषों (11%) की तुलना में अधिक है। उन महिलाओं का धुंआरहित तंबाकू सेवन अधिक होता है जिनके पार्टनर या यार-दोस्तों की मंडली में तंबाकू सेवन आम होता है।
एक नेशनल सर्वे के मुताबिक, करीब 45.3 % महिला (Smokeless tobacco) यूज़र्स ने इन उत्पादों पर स्वास्थ्य संबंधी चेतावनियों को नहीं देखा होता जो कि पुरुषों (21.5%) की तुलना में काफी अधिक है।
कभी-कभी तंबाकू सेवन की शुरुआत गर्भावस्था के दौरान होती है और यह माना जाता है कि यह सेहत के लिए फायदेमंद है और गंर्भावस्था से जुड़ी आम तकलीफों जैसे कि चक्कर और मितली, कब्ज आदि से राहत दिलाता है।
धुंआरहित तंबाकू उत्पादों में चबाना (तंबाकू की सूखी पत्तियों का सेवन), ओरल या स्पिट टबेको, सूंघना (बारीकी पीसा सूखा या नमीयुक्त तंबाकू), मिश्री (बेक या जलाकर पीसा गया तंबाकू) और गुटखा (जिसमें चूना, सुपारी, कत्था और अन्य मसाले मिलाए जाते हैं) जैसे उत्पाद शामिल हैं।
अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि धूम्रपान की तुलना में धुंआरहित तंबाकू का सेवन करने से आपके ब्लड में निकोटिन की अधिक मात्रा जाती है, क्योंकि इसे देर तक मुंह में रखना पड़ता है। बीड़ी से भी पारंपरिक सिगरेटों की तुलना में 3-5 गुना अधिक निकोटिन, टार और कार्बन मोनोऑक्साइड शरीर में प्रवेश करते हैं। यह भी पाया गया है कि बीड़ी में सिगरेटों की तुलना में 1.5 गुना अधिक कैंसरकारी हाइड्रोकार्बन मौजूद होते हैं।
धुंआरहित तंबाकू उत्पादों में मुख्य रूप से निकोटिन और अन्य कई कैंसरकारी पदार्थ जैसे कि तंबाकू में पाए जाने वाले एन-नाइट्रोसैमिन्स (TSNA), बेंज़ो पायरीन (benzo[a]pyrene), नाइट्रेट, कैडमियम, लैड, आर्सनिक, निकल और क्रोमियम प्रमुख हैं।
इस तरह के तंबाकू का सेवन करने से निकोटिन की लत पड़ सकती है। युवतियां इसकी आदी हो सकती हैं और यहां तक कि वे इस मामले में सिगरेट पीने वालों को भी पीछे छोड़ सकती हैं।
किशोरों में, निकोटिन का सेवन उनके मस्तिष्क द्वारा संचालित कई गतिविधियों जैसे एकाग्रता, लर्निंग, मूड और इम्पल्स कंट्रोल आदि पर बुरा असर डालता है। इसकी वजह से आगे चलकर वे अन्य नशीले पदार्थों की लत में पड़ सकते हैं। एन-नाइट्रोसैमिन्स (TSNA) से मुंह, भोजन नली और अग्नाशय के कैंसर जैसे गंभीर रोगों का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है।
महिलाओं में, धुंआरहित तंबाकू का प्रयोग उनके शरीर की अनेक महत्वपूर्ण क्रियाओं पर बुरा असर डाल सकता है, मसलन, डिंबग्रंथि (ओवरी) का फंक्शन प्रभावित हो सकता है, उसकी मॉर्फोलॉजी पर असर पड़ सकता है, डिंब बनाने वाली कोशिकाओं (ऊसाइट) की क्वालिटी बिगड़ सकती है और हार्मोनल रैग्युलेशन पर भी असर पड़ता है।
यह महिलाओं की प्रजनन क्षमताओं पर असर डालता है। गर्भावस्था के दौरान, इसकी वजह से समय से पहले प्रसव (अर्ली डिलीवरी) या मृतजन्म (स्टिलबर्थ) जैसी आशंकाएं बढ़ सकती हैं। यह जन्म से पहले भ्रूण के मस्तिष्क विकास को प्रभावित करता है और शिशु के स्वास्थ्य पर भी दीर्घकालिक रूप से असर डालता है।
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साथ ही, इसके कारण हृदय रोगों और स्ट्रोक से मौत का खतरा बढ़ सकता है। यह मुंह में सलेटी धब्बों (leukoplakia), जबड़ों के रोग, दांतों में सड़न, और दांत या दांतों के आसपास हड्डी को नुकसान पहुंचा सकता है।
तंबाकू उत्पादों को किसी भी रूप में बढ़ावा न देने के तमाम प्रयासों के बावजूद, लोगों को स्मोकलैस टबेको (smokeless tobacco) के दुष्प्रभावों की जानकारी बहुत कम है। भारत में, ओरल और लंग कैंसर के बढ़ते मामलों के पीछे काफी हद तक बीड़ी और धुंआरहित तंबाकू जिम्मेदार है।
तंबाकू कंपनियां बहुत चालाकी से उन स्थानों पर स्मोकलैस टबेको की मार्केटिंग स्मोकिंग के विकल्प के रूप में करती हैं, जहां स्मोकिंग की मंजूरी नहीं होती। ऐसे उत्पादों के निर्माता अक्सर यह दावा करते हैं या तथ्यों को तोड़-मरोड़कर यह बताने की कोशिश करते हैं कि ये उत्पाद आपको धूम्रपान की लत से छुटकारा दिलाने में सहायक होते हैं।
जबकि सच्चाई यह है कि अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है कि कोई स्मोकलैस टबेको प्रोडक्ट लोगों को स्मोकिंग की लत से बाहर निकाल सकता है। दूसरी ओर, अगर यह लोगों को स्मोकिंग की लत से बाहर आने में किसी हद तक मदद करता भी है, तो भी इसकी वजह से स्वास्थ्य संबंधी दूसरे जोखिम और कैंसर आदि का खतरा तो रहता ही है। इसलिए, किसी सुरक्षित विकल्प के चक्कर में नहीं फंसे, यह खुद आपको लत का शिकार बना सकता है।
धुंआरहित तंबाकू (SLT) के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी देने के लिए उपयोगी सामग्री, शिक्षा और संचार की मदद ली जानी चाहिए क्योंकि हमारी युवा पीढ़ी को, खासतौर से महिलाओं और युवतियों को गुमराह होने से बचाना बहुत जरूरी है।
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