रस्सी कूदना हम सभी को अपने बचपन के दिनों में वापस ले जाता है। यह न केवल समग्र स्वास्थ्य के लिए एक उचित व्यायाम है, बल्कि एक तरह का नॉस्टेलजिया भी है। पर शायद आप नहीं जानती कि ये आपके मन को ही प्रफुल्लित नहीं करता, बल्कि आपके दिल का भी ख्याल रखता है। जी हां, हाल ही में सामने आए कई शोध यह बताते हैं, कि रस्सी कूदना आपके हृदय स्वास्थ्य को किसी भी हैवी वर्कआउट से ज्यादा फायदा पहुंचा सकता है। आइए जानते हैं हृदय स्वास्थ्य (jump rope benefits for heart) पर क्या होता है रस्सी कूदने का प्रभाव।
यदि हम नियमित रूप से कुछ देर तक स्किपिंग करें, तो हमारे पूरे शरीर का व्यायाम हो सकता है। यह एक बढ़िया कार्डियो एक्सरसाइज है और वेट लॉस में भी मदद करता है। आइए सबसे पहले जानते हैं स्किपिंग के बारे में क्या कहती है रिसर्च।
एमजीआर एजुकेशनल एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, चेन्नई में फिजिकल फिटनेस और कार्डियोवस्कुलर फिटनेस पर स्किपिंग रोप के प्रभाव को जांचने के लिए एक स्टडी की गई। यह स्टडी वीणा कृतिका के नेतृत्व में 18-25 वर्ष के लोगों पर 12 सप्ताह तक की गई। सभी लोागों को दो समूहों में बांट दिया गया। एक ग्रुप को प्रति दिन दो सेशन स्किपिंग करने को कहा गया।
निश्चित समय सीमा के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि जिन लोगों ने नियमित स्किपिंग की, उनकी कार्डियोवस्कुलर फिटनेस इंप्रूव हुई थी। साथ ही उनका फिजकल फिटनेस भी बढ़ा था।
वर्ष 2014 में अमेरिकन-यूरेशियन नेटवर्क फॉर साइंटिफिक इंफॉर्मेशन के अंतर्गत डी. के. मोहम्मद के नेतृत्व में बहुत कम सक्रिय कॉलेज स्टूडेंट पर स्किपिंग के इफेक्ट पर स्टडी की गई। छात्रों के इस ग्रुप ने लगातार 8 सप्ताह तक स्किपिंग की। देखा गया कि स्किपिंग से न सिर्फ छात्रों का वजन घटा, बल्कि हार्ट की एफिशिएंसी भी बढ़ गई।
यदि आप छोटे टाइम पीरियड में ज्यादा कैलोरी बर्न करना चाहती हैं, तो रस्सी कूदने से पूरे शरीर पर प्रभाव पड़ता है। यदि आप रस्सी कूदती हैं, तो 1 मिनट में 10 कैलोरी बर्न हो सकती है।
स्किपिंग में भुजाएं, पैर और मसल्स भी शामिल होते हैं। यह फिटनेस लेवल को मेंटेन करने के लिए बढ़िया एक्सरसाइज है। कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अमित सिन्हा स्किपिंग को न सिर्फ कार्डियोवस्कुलर फिटनेस के लिए सही मानते हैं, बल्कि इसे पूरे शरीर केे लिए संपूर्ण व्यायाम मानते हैं।
डाॅ सिन्हा कहते हैं कि स्किपिंग के लिए पूरी तरह फिट होना जरूरी है। यदि आपको घुटनों में दर्द है या किसी प्रकार की नी इंजरी है, बैक पेन या किसी भी प्रकार की फिजिकल समस्या है, तो स्किपिंग न करें। यदि आप हाई ब्लड प्रेशर, अस्थमा, हार्ट डिजीज से गुजर रही हैं, तो इस इंटेंस एरोबिक फॉर्म एक्सरसाइज से बचें। यह आपके हार्ट और लंग्स को प्रभावित कर सकता है।
डॉ. अमित कहते हैं, यदि आप पूरी तरह फिट हैं, तो नियमित रूप से 30 मिनट तक स्किपिंग कर सकती हैं। हां बीच-बीच में ब्रेक जरूर लें।
ज्यादातर स्पोर्ट पर्सन खुद को फिट रखने के लिए स्किपिंग भी करते हैं। डॉ. अमित बताते हैं, रस्सी कूदने से हृदय गति और सांस की गति में उतनी ही वृद्धि होती है, जितनी जॉगिंग के बाद होती है। यदि आप प्रतिदिन दस मिनट स्किपिंग करती हैं, तो यह आपके हृदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। इससे न सिर्फ ब्लड प्रेशर कम होता है, बल्कि हार्ट रेट भी संतुलित होता है।
इससे कार्डियोरेस्पिरेटरी फिटनेस भी बढ़ जाती है। आपका शरीर ऑक्सीजन लेने और उसका उपयोग करने में अधिक कुशल हो जाता है। बेहतर कार्डियोरेस्पिरेटरी फिटनेस ब्लडप्रेशर को कम करने, इंसुलिन सेंसिटिविटी में सुधार, शरीर में सूजन को कम करने और डायबिटीज के विकास की संभावना को भी कम करता है।
बेली फैट को मेंटेन करने के लिए रस्सी कूदने से जल्दी रिजल्ट मिल सकते हैं। ट्रंक मसल्स और एब्स के चारों ओर बढ़े फैट को कम करने के लिए यह सबसे बढ़िया उपाय है। यह कोर टाइट करने में मदद करता है।
यदि आप 30 मिनट रोज रस्सी कूद लेती हैं, तो लगभग 300 कैलोरी खर्च हो सकती है। शुरुआत में 2 मिनट से अधिक न कूदें। इससे कंधे और पैर बहुत ज्यादा दर्द करते हैं।
स्किपिंग करने के लिए आपकी पेट की मांसपेशियां, कूदने के लिए दोनों पैर और रस्सी को मोड़ने के लिए कंधों और बाहों का उपयोग किया जाता है। इसलिए यह संपूर्ण शरीर का कसरत है। फुल बॉडी वर्कआउट से मांसपेशियां टोन होती हैं। इससे सभी दैनिक गतिविधियों में मदद मिलती है। यह मेटाबोलिक रेट को बढ़ाती है।
शोध से पता चला है कि यह बड़ों के साथ-साथ बच्चों के मेंटल हेल्थ को भी मजबूत करता है। यह कॉर्डिनेशन, बैलेंस और बेसिक मूवमेंट स्किल में भी सुधार लाता है।
यदि हम रस्सी कूदते हैं, तो हर छलांग के साथ जमीन पर बहुत अधिक जोर डालते हैं। इससे हमारी हड्डियां खुद को मजबूत बनाने के लिए तैयार होती हैं। शोध बताते हैं कि इससे बोंस डेंसिटी बढ़ जाती है। उम्र बढ़ने के साथ हड्डी टूटने या ऑस्टियोपोरोसिस विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। बोन डेंसिटी बढ़ने से हड्डी टूटने की संभावना कम हो जाती है।
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