नई मां के मन में नवजात और छोटे बच्चों को किस तरह संभाला जाए इसको लेकर कई सवाल रहते हैं। उन्हीं में से एक सबसे बड़ा सवाल हो सकता है “को स्लिपिंग” (Co-sleeping) क्या ब्रेस्टफीडिंग मॉम्स को बच्चों के साथ बेड शेयर करना चाहिए या नहीं।
को स्लीपिंग उस स्थिति को कहते हैं, जब बच्चा अपने पेरेंट्स के सोशली और फिजिकली कांटेक्ट में सोता है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने सलाह देते हुए कहां है कि, यदि कोई महिला ब्रेस्टफीडिंग करवाती है, तो उसे अपने बच्चे को पास में लेकर सोना चाहिए।
बेडशेयरिंग ब्रेस्टफीडिंग की शुरुआत है। इसके साथ ही यह अवधि और विशिष्टता को बढ़ावा देती हैं। नए माता-पिता को को स्लीपिंग के फायदे एवं नुकसान की पूरी जानकारी होना जरूरी है। ताकि वह इस विषय पर खुद से एक उचित निर्णय ले सकें। अभी तक मिले एविडेंस इस बात से पूरी तरह खारिज करते हैं, कि ब्रेस्टफीड कर रहे बच्चों के साथ बेड शेयर करने से उन्हें सडेन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (Sudden infant death syndrome ) हो सकता है। को स्लीपिंग ब्रेस्टफीडिंग बच्चों में एक्सीडेंटल सफोकेशन डेथ होने का आंकड़ा न के बराबर है।
ज्यादातर ब्रेस्टफीडिंग करवाने वाली महिलाएं अपने बच्चों को साथ लेकर सोती हैं। बच्चे के साथ सोने से बच्चों के रात की भूख का पता लगाना आसान होता है। वहीं कई स्टडीज इस बात का दावा करती हैं कि को स्लीपिंग बच्चों के भूख को भी बढ़ाती है और साथ ही साथ मां के मिल्क प्रोडक्शन को भी प्रमोट करती हैं।
ब्रेस्टफीड करवा रही महिलाओं को रात को छोटी छोटी अवधि पर जागना पड़ता है। ऐसे में बच्चों के साथ सोने से उन्हें ज्यादा नींद प्राप्त करने में मदद मिलेगी। वहीं जो मायें अपने बच्चों के साथ नही सोती हैं, उनमे नींद की कमी देखने को मिल सकती है।
यह बच्चों के शरीर को ठंड से बचाता है और ब्रेस्ट फीडिंग के अवधि को भी बढ़ा देता है।
मां के प्रति बच्चे के लगाओ को बढ़ाता है। वहीं शिशु में व्यवहार और शारीरिक परिवर्तन की संभावना को भी बढ़ा देता है।
बच्चों के साथ बेड शेयर करने से मां उनके प्रति ज्यादा संवेदनशील और जिम्मेदार रहती हैं।
बच्चे के साथ सोने से उनके शारीरिक हाव-भाव से मां को उनकी स्थिति का पता चल जाता है।
इसके साथ ही यह शिशु के हार्ट रेट, स्लीप और बॉडी टेंपरेचर को मेंटेन रखता है।
अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें
कस्टमाइज़ करेंबच्चे के साथ सोने से पहले एक सुरक्षित वातावरण बनाना आवश्यक है। वहीं असुरक्षित रुप से बेड शेयर करने के कारण सडेन इंफेंट डेथ सिंड्रोम होने की संभावना बनी रहती है।
मैटर्नल स्मोकिंग और बाहरी वातावरण का स्मोक।
शिशु को सोफा या काउच पर लेकर सोना।
वाटरबेड और नरम बिस्तर का उपयोग करना।
बिस्तर को कोई ऐसी जगह पर रखना जहां शिशु के फंसने की संभावना हो।
शिशु के साथ गलत पोजीशन में सोना भी उनकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।
माता पिता द्वारा शराब का सेवन करना हानिकारक हो सकता है।
माता-पिता द्वारा माइंड अल्टरिंग ड्रग्स लेना शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है।
बेबी को सु्पाइन पोजिशन में सुलाएं।
मुलायम और फ्लैट सतह पर सुलाएं।
वॉटरबेड, काउच, सोफा, पिलो और बहुत नरम बिस्तर का इस्तेमाल करने से बचें।
शिशु को ढकने के लिए पतली कमर का प्रयोग करें।
ध्यान रहे कि बच्चे का सिर न ढकें।
बच्चे के कमरे में मोटी रजाई, अन्य आरामदायक गद्दे और पालतू जानवरों को न छोड़ें।
शिशु को तकिया या फिर तकिए के बगल में न सुलाएं।
बच्चे को बड़ों के बिस्तर पर अकेला छोड़ने से बचें।
सुनिश्चित करें कि गद्दे और हेडबोर्ड, दीवारों और अन्य सतहों के बीच कोई जगह नहीं है, जो शिशु को फंसा सकती है और घुटन का कारण बन सकती है।
दीवारों से दूर फर्श पर सीधे सख्त गद्दे लगाना एक सुरक्षित विकल्प हो सकता है।
सी-पोज़िशन (“कडल कर्ल”) को अपनाना जिसमें शिशु का सिर स्तन से, पैर और हाथ शिशु के चारों ओर मुड़ा हुआ हो।
फॉर्मूला दूध पिलाने से इसआईडीएस का खतरा काफी ज्यादा बढ़ जाता है। मां के दूध की तुलना में फॉर्मूला वाले दूध को पचा पाना बच्चों के लिए आसान नहीं होता। ऐसे में बच्चे कभी-कभी गहरी नींद में चले जाता है, और यह विशेष रूप से नवजात शिशु के लिए अधिक खतरनाक हो सकता है।
यह भी पढ़ें : हेयर फॉल से निजात दिला सकता है खट्टा दही, जानिए ऐसे ही 4 DIY दही हेयर मास्क