युवाओं में हार्ट अटैक का खतरा बढ़ा रहा है सेडेंटरी लाइफस्टाइल और ज्यादा स्क्रीन टाइम, सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट से जानिए कैसे
आज के डिजिटल युग में, टेक्नोलॉजी हमारी दैनिक जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी है। ज्यादातर युवाओं की जिंदगी स्मार्टफोन और टेबलेट्स से लेकर गेमिंग कंसोल्स और कंप्यूटरों तक पर ओवर डिपेंडेंट है। बेशक, इसका फायदा है, जैसे सूचनाओं और बेहतर कम्युनिकेशन की बुनियाद यही टेक्नोलॉजी है। मगर इसमें भी दो राय नहीं कि इनकी वजह से लोगों के लाइफस्टाइल में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। उनका सेडेन्ट्री स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। इन बदलती आदतों ने कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को भी जन्म दिया है। जिनमें हृदय रोग (Heart Disease) भी शामिल हैं। ऐसा देखा जा रहा है कि भारत में युवाओं (Heart diseases in young adults) में इन रोगों के मामले बढ़ रहे हैं।
हृदय स्वास्थ्य पर सेडेन्ट्री लाइफस्टाइल का असर (Sedentary lifestyle effect on heart health)
कार्डियोलॉजिस्ट के तौर पर, मैं देख रहा हूं कि युवाओं में हार्ट संबंधी मामले बढ़ रहे हैं, जिनमें से कइयों का कारण उनकी व्यायाम रहित जीवनशैली (Sedentary lifestyle) है। लंबा स्क्रीन टाइम जो कई बार घंटों-घंटों तक टीवी शो, गेमिंग या सोशल मीडिया पर स्क्रॉलिंग की वजह से होता है, प्रायः शारीरिक गतिविधि रहित लाइफस्टाइल को बढ़ावा देता है।
इसके चलते वज़न बढ़ने (Weight gain), हाई ब्लड प्रेशर (High blood pressure) और कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ने (High cholesterol level) जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। ये सभी हृदय रोगों के प्रमुख कारण हैं। सेडेन्ट्री लाइफस्टाइल की वजह से शरीर की इंसुलिन को नियंत्रित करने की क्षमता भी प्रभावित होती है, जो टाइप 2 डायबिटीज़ (Type 2 diabetes) का जोखिम बढ़ाती है। और यह भी हार्ट रोगों के रिस्क में वृद्धि के लिए जिम्मेदार है।
टीनएजर और युवाओं में क्यों बढ़ रहे हैं हृदय रोगों के मामले (Heart disease among teenagers and young adults)
ये रिस्क फैक्टर कुछ समय पहले तक अधिक उम्र के लोगों/बुजुर्गों से जुड़े होते थे, लेकिन अब तो टीनेजर और यंग एडल्ट्स भी इनसे बचे नहीं हैं। टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रयोग के कारण स्क्रीन टाइम और स्ट्रैस बढ़ने से केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर ही असर नहीं पड़ता है। इसके कारण मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।
1 क्रोनिक स्ट्रेस
सोशल मीडिया के लगातार संपर्क में रहने, गेमिंग कंपीटिशन, या कई बार कामकाज की वजह से भी स्ट्रैस, एंग्जाइज़ी और यहां तक कि डिप्रेशन भी बढ़ता है। स्ट्रैस का सीधा असर हार्ट हेल्थ पर पड़ता है। क्रोनिक स्ट्रैस रहने से ब्लड प्रेशर (chronic stress cause high BP) और हार्ट रेट बढ़ने की शिकायत होती है, जिससे हार्ट पर दबाव पड़ता है।
2 ओवरईटिंग और ज्यादा स्क्रीन टाइम
इनका एक और पहलू भी है। स्ट्रैस की वजह से कई बार ओवरईटिंग, स्मोकिंग या अल्कोहल के अधिक सेवन जैसी आदतें भी बढ़ती हैं। जो धीरे-धीरे कार्डियोवास्क्युलर समस्याओं को बढ़ाती हैं। मोटापे और हृदय रोगों के बीच भी संबंध है। भारत में हाल के दिनों में बच्चों में भी मोटापे की समस्या दिखायी दे रही है। जो उनके सेडेन्ट्री लाइफस्टाइल और खानपान की गलत आदतों की वजह से है।
3 एक्सरसाइज न करना
बचपन या किशेर उम्र में मोटापा जीवन में आगे चलकर हार्ट डिजीज का संकेत होता है। अत्यधिक स्क्रीन टाइम, व्यायाम का अभाव, हाइ कैलोरीयुक्त जंक फूड का अधिक सेवन करने से अक्सर वजन बढ़ने की समस्या होती है। यह सभी हृदय रोगों के लिए जिम्मेदार हैं।
अध्ययनों से यह सामने आया है कि जो बच्चे और किशोर हर दिन तीन घंटे से अधिक समय स्क्रीन पर बिताते हैं, वे ओवरवेट या मोटापे से ग्रस्त होते हैं। जितना ज्यादा समय बैठे-बैठे बिताया जाता है, शरीर उतनी ही कम कैलोरी खपाता है। यह असंतुलन ही वजन बढ़ने का कारण होता है।
4 स्लीप पैटर्न खराब करता है स्क्रीन टाइम
दुर्भाग्यवश, बहुत से युवा इसके दीर्घकालिक हेल्थ रिस्क से अनजान होते हैं। टेक्नोलॉजी की वजह से नींद की कमी भी रहती है और यह ऐसा साइड इफेक्ट है जिस पर अक्सर हम गौर नहीं करते। बहुत से युवा रात में देर तक फोन या लैपटॉप पर काम करते रहते हैं, जिससे उनके स्लीप पैटर्न पर असर पड़ता है। खराब स्लीप क्वालिटी और पर्याप्त आराम नहीं लेने से भी हार्ट रोगों का रिस्क बढ़ता है।
नींद की कमी की वजह से शरीर में स्ट्रैस हार्मोनों का स्राव ज्यादा होता है, हाइ ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है और शरीर में इंफ्लेमेशन भी बढ़ता है – इनके चलते हृदय की सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
क्या इन समस्याओं से बचा जा सकता है (How to control screen time side effects on heart)
1 एक्टिव स्क्रीन टाइम को प्रोत्साहन दें
बतौर कार्डियोलॉजिस्ट, मैं बेशक टेक्नोलॉजी के आकर्षण को बखूबी समझता हूं और यह भी जानता हूं कि युवाओं से स्क्रीन को पूरी तरह से अनदेखा करने की उम्मीद रखना बेमानी है। इसकी बजाय हमें उन्हें ‘एक्टिव स्क्रीन टाइम’ के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। इसका मतलब यह है कि वे टेक्नोलॉजी को इस तरह से इस्तेमाल करें कि गतिशीलता और शारीरिक गतिविधियां भी बनी रहें।
मसलन, कई फिटनेस ऐप्स और वीडियो गेम्स इस तरह के होते हैं कि उनके लिए प्लेयर्स को खड़े होना होता है, मूवमेंट जरूरी होती है और वे शारीरिक व्यायाम करते हैं। ये ऐप्स दरअसल देर तक बैठे रहने और सेडेन्ट्री आदतों में बदलाव लाते हैं। इस प्रकार के प्रयासों को बढ़ावा देने में पैरेंट्स की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है।
2 स्क्रीन से रेगुलर ब्रेक लें
समय-समय पर स्क्रीन से रेगुलर ब्रेक लें, फालतू स्क्रीन टाइम से बचें और आउटडोर गतिविधियां बढ़ाने से बच्चों को आगे चलकर हृदय रोगों से बचाया जा सकता है। बच्चों को ऐसी शारीरिक गतिविधियों से जोड़ें जिन्हें वे पसंद करते हैं – चाहे साइकिल चलाना हो, तैराकी, डांस, या अन्य किसी स्पोर्ट से जुड़ना – ये आदतें सेहतमंद लाइफस्टाइल की सही बुनियाद रखती हैं।
3 एक्शन लें
युवाओं को हार्ट-हेल्दी लाइफस्टाइल के लिए प्रेरित करना जरूरी है और इसके लिए जरूरी है प्रोएक्टिव एप्रोच। यहां कुछ महत्वपूर्ण नुस्खे बताए जा रहे हैं, जो आपको अत्यधिक स्क्रीन टाइम से जुड़े जोखिमों को दूर रखने में मददगार हो सकते हैंः
स्क्रीन टाइम को करें सीमितः युवाओं को गैर-जरूरी स्क्रीन टाइम हर दिन 1 से 2 घंटे तक सीमित रखने के लिए प्रोत्साहित करें। परिवारों के स्तर पर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा दें जिनमें स्क्रीन टाइम से बचा जा सकता है, जैसे आउटडोर गेम्स, हाइकिंग और बोर्ड गेम्स आदि।
शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करेंः यह सुनिश्चत करें कि बच्चे हर दिन कम से कम 60 मिनट तक मध्यम से लेकर तीव्र शारीरिक गतिविधियों से जरूर जुड़ें। दौड़ना, तैरना और टीम स्पोर्ट्स कार्डियोवास्क्युलर हेल्थ के लिए अच्छे होते हैं।
स्वास्थ्यवर्धक खानपान को बढ़ावा देंः फलों, सब्जियों, साबुत अनाजों और लीन प्रोटीन युक्त संतुलन आहार का सेवन करना काफी फायदेमंद होता है। शूगरयुक्त ड्रिंक्स और जंक फूड से बचें, इनसे मोटापा और हृदय रोगों की आशंका बढ़ती है।
क्वालिटी नींद सुनिश्चत करेंः पर्याप्त नींद लेना हृदय की सेहत के लिए महत्वपूर्ण होती है। अपने बेडरूम को जहां तक हो सके टेक्नोलॉजी से मुक्त रखें और हर दिन सोने के लिए एक जैसे बेडटाइम रूटीन का पालन करें।
नियमित हेल्थ चेक-अप करवाएंः रेग्युलर चेक-अप करवाने से शीघ्र रिस्क फैक्टर्स की पहचान करने में मदद मिलती है जिससे भविष्य में हृदय रोगों से बचने में मदद मिलती है। अपने कार्डियोलॉजिस्ट से परामर्श ताकि वह आपको हार्ट हेल्थ के बारे में पर्सनलाइज़्ड सलाह दे सकें।
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