ब्रेस्ट कैंसर यानी स्तन कैंसर, दुनिया में सबसे आम कैंसर है। जब भी किसी व्यक्ति को इस कैंसर के होने का पता चलता है तो परिवार के सदस्यों के दिमाग में सबसे पहला सवाल यही आता है कि क्या यह बीमारी पुरानी पीढ़ियों से चली आ रही है। लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि इसके करीब 5 से 10% मामले ही अनुवांशिक होते हैं जबकि अधिकतर मामलों का इससे कोई लेना-देना नहीं होता है। तो अगर, किसी महिला को ब्रेस्ट कैंसर हुआ है तो क्या यह निश्चित है कि उसकी बेटी को भी यह बीमारी होगी? इसका जवाब है कि यह निश्चित नहीं है।
इस बीमारी का अभी तक कोई एक विशिष्ट कारण ज्ञात नहीं है। इस बीमारी के मुख्य लक्षण, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए, वह है ब्रेस्ट या बगल में किसी ऐसी गांठ की मौजूदगी। इसमें दर्द नहीं होता, निप्पल से डिस्चार्ज होता है। निप्पल या त्वचा का हटना, मोटा होना, अल्सर होना और त्वचा या निप्पल पर लालपन रहना, ये सभी ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण हैं।
1. 45 वर्ष की आयु से पहले युवा महिला में ब्रेस्ट कैंसर का पता चलना।
2. 50 साल से कम की उम्र में ब्रेस्ट कैंसर होना और किसी करीबी फर्स्ट डिग्री रिश्तेदार को पहले ब्रेस्ट कैंसर हुआ हो।
3. 60 साल से कम की उम्र में एक विशिष्ट सबटाइप जैसे ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर का पता चलना।
4. परिवार में पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर या ओवेरियन कैंसर का इतिहास।
5. एक व्यक्ति में दो से अधिक प्रकार के कैंसरों का होना।
6. किसी रिश्तेदार में बीआरसीए 1 व 2 म्यूटेशन की मौजूदगी।
अगर किसी महिला में उपर्युक्त कोई भी बात लागू होती है, तो जरूरी जेनेटिक काउंसलिंग के बाद टेस्ट कराने को कहा जा सकता है। जेनेटिक काउंसिल करना बहुत आवश्यक होता है। अगर टेस्ट पॉज़िटिव आता है, तो यह उस परिवार के सदस्यों के साथ ही उनके फर्स्ट डिग्री रिश्तेदारों के लिए भी मायने रखता है।
एक प्रशिक्षित जेनेटिक काउंसलर ही जेनेटिक काउंसलिंग करता है।
यह टेस्ट कैंसर से पीड़ित व्यक्ति का किया जाता है। अगर उसका टेस्ट पॉज़िटिव आता है तो अन्य करीबी रिश्तेदारों का भी टेस्ट होता है। आमतौर पर यह टेस्ट प्राइमरी केस में ही होता है।
इसकी पहचान का पहला कदम है किसी कैंसर विशेषज्ञ से उचित क्लीनिकल जांच कराना। मैमोग्राफी और ब्रेस्ट अल्ट्रासाउंड ब्रेस्ट कैंसर की जांच के लिए सबसे विश्वसनीय और सस्ता डायग्नोस्टिक व स्क्रीनिंग टूल्स हैं। उम्र 40 वर्ष से अधिक होने के बाद व्यक्ति को साल में एक बार मैमोग्राम अवश्य कराना चाहिए। संदिग्ध या पॉज़िटिव मैमोग्राफी स्क्रीनिंग होने पर बीमारी की मौजूदगी की पुष्टि करने के लिए बायोप्सी या फाइन नीडल ऐस्पिरेशन साइटोलॉजी (FNAC) की जाती है। कैंसर की मौजूदगी की पुष्टि होने के बाद यह बीमारी शरीर में कहां तक फैली है,इसकी जांच के लिए और टेस्ट किए जाते हैं। मेटास्टैटिक वर्कअप किया जाता है।
सीधे शब्दों में कहा जाए तो घबराने से बचना चाहिए और मामले को इलाज करने वाले डॉक्टर के साथ आराम से समझना चाहिए जिससे आगे क्या करना है इसपर सोच-समझकर फैसला किया जा सके।
मेडिकल क्षेत्र के नवीनतम एडवांसेज़ के कारण ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में बहुत अधिक बदलाव देखने को मिला है। अगर इस बीमारी की शुरुआत में ही जांच और उपयुक्त इलाज हो जाए तो इससे मुक्ति पाना संभव है। कुछ साल पहले तक इस बीमारी के बाद बच पाने की संभावना बहुत कम होती थी।
आज के समय की महिलाओं के बीच इसे लेकर बढ़ी जागरूकता, जांच के लिए बेहतर तकनीक और इलाज के लिए नए एडवांस्ड तरीके जैसे सर्जरी, कीमोथेरेपी, टार्गेटेड इम्यूनोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और हॉर्मोनल थेरेपी के कारण अब यह संभावना बहुत बढ़ गई है। मेटास्टैटिक बीमारी के मामले में भी बचने की संभावना बहुत बढ़ी है।
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